क्षेत्रीय पुनर्गठन के संदर्भ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के महत्त्व को बताते हुए संघवाद पर इसके निहितार्थ की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 का परिचय देते हुए उत्तर शुरू कीजिये।
- क्षेत्रीय पुनर्गठन के संदर्भ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- भारतीय संघवाद के लिये अनुच्छेद 3 के निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
|
परिचय:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 संसद को नए राज्य का निर्माण करने, मौजूदा राज्यों की सीमाओं को बदलने या दो या दो से अधिक राज्यों का विलय करने की शक्ति प्रदान करता है। यह अनुच्छेद भारत की क्षेत्रीय अखंडता एवं संघीय ढाँचे को प्रभावित करने के रूप में महत्त्वपूर्ण है।
मुख्य भाग:
अनुच्छेद 3 का महत्त्व :
- प्रादेशिक पुनर्गठन:
- अनुच्छेद 3 प्रशासनिक, भाषाई, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विचारों के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन हेतु कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश से तेलंगाना का गठन विशिष्ट सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक कारकों के कारण एक अलग राज्य की मांग पर आधारित था।
- क्षेत्रीय आकांक्षाओं को बढ़ावा मिलना:
- इससे क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पहचान एवं महत्त्व मिलता है।
- झारखंड, छत्तीसगढ़ तथा उत्तराखंड जैसे राज्यों के गठन ने आदिवासी एवं हाशिए पर रहने वाले समुदायों की अलग राज्यों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा किया।
- प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि:
- अनुच्छेद 3 के तहत क्षेत्रीय पुनर्गठन से प्रशासनिक दक्षता के साथ शासन में सुधार हो सकता है।
- छोटे राज्य अक्सर स्थानीय ज़रूरतों के प्रति अधिक प्रबंधनीय और उत्तरदायी होते हैं, जिससे सेवाओं की बेहतर डिलीवरी होती है।
- अनेकता में एकता को बढ़ावा मिलना:
- राज्यों के पुनर्गठन के क्रम में अनुच्छेद 3 से विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट पहचान एवं संस्कृतियों को पहचान मिलने से विविधता में एकता सुनिश्चित होती है।
- पूर्वोत्तर में विभिन्न राज्यों का पुनर्गठन (जैसे कि अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और मिज़ोरम), जातीय एवं सांस्कृतिक विविधता को समायोजित करने के क्रम में अनुच्छेद 3 के अनुप्रयोग को दर्शाता है।
- संघीय ढाँचे में लचीलापन:
- अनुच्छेद 3 लोगों की उभरती ज़रूरतों तथा आकांक्षाओं के अनुसार राज्य की सीमाओं में बदलाव की अनुमति देकर संघीय ढाँचे में लचीलापन प्रदान करता है। यह लचीलापन नई सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकताओं एवं चुनौतियों को हल करने में सहायक है।
संघवाद के लिये निहितार्थ:
- केंद्र को एकतरफा शक्तियाँ:
- अनुच्छेद 3 राज्य की सीमाओं में किसी भी बदलाव के लिये संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता के द्वारा राज्यों पर केंद्र को एकतरफा शक्तियाँ प्रदान करता है।
- नियंत्रण एवं संतुलन:
- राज्य विधानमंडलों के दृष्टिकोण पर विचार करने का प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि पुनर्गठन मनमाना नहीं है तथा इसमें संविधान में निहित संघीय सिद्धांतों का सम्मान किया जाता है। इससे केंद्र सरकार की शक्तियों पर नियंत्रण मिलता है।
- एकता का संरक्षण:
- पुनर्गठन का अधिकार देने के क्रम में अनुच्छेद 3 में देश की एकता तथा अखंडता को बनाए रखने के महत्त्व पर भी बल दिया गया है।
- इसमें निहित है कि राज्य की सीमाओं में कोई भी बदलाव राष्ट्रीय हित में होना चाहिये तथा इससे लोगों के कल्याण को बढ़ावा मिलना चाहिये।
- संवैधानिक सुरक्षा उपाय:
- अनुच्छेद 3 में राष्ट्रपति की सहमति तथा संबंधित राज्यों के साथ परामर्श की आवश्यकता जैसे सुरक्षा उपाय शामिल हैं।
- ये सुरक्षा उपाय जल्दबाज़ी या राजनीति से प्रेरित राज्य पुनर्गठन के प्रति सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- न्यायिक समीक्षा:
- सर्वोच्च न्यायालय के पास अनुच्छेद 3 के तहत किये गए कार्यों की संवैधानिकता की समीक्षा करने का अधिकार है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि इससे संघवाद के सिद्धांतों के साथ मूल ढाँचे का उल्लंघन न हो।
निष्कर्ष:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 संघीय सिद्धांतों के संरक्षण के साथ प्रशासनिक दक्षता की आवश्यकता को संतुलित करते हुए, राज्यों के क्षेत्रीय पुनर्गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका महत्त्व भारत की एकता तथा अखंडता को बनाए रखते हुए क्षेत्रीय आकांक्षाओं को समायोजित करने की क्षमता में निहित है।