स्वतंत्र भारत में रियासतों के एकीकरण से संबंधित चुनौतियों एवं रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। इससे स्वतंत्रता के पश्चात भारत की क्षेत्रीय अखंडता को किस प्रकार आकार मिला? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- रियासतों के एकीकरण के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- स्वतंत्र भारत में रियासतों के एकीकरण में शामिल चुनौतियों तथा रणनीतियों पर चर्चा कीजिये।
- स्वतंत्रता के बाद भारत की क्षेत्रीय अखंडता को आकार देने में इसके प्रभाव पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
स्वतंत्र भारत में रियासतों का एकीकरण एक जटिल प्रक्रिया थी जिसमें कई चुनौतियों के साथ नवगठित राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करने के लिये तार्किक रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता थी। वर्ष 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भारत को एक एकीकृत राष्ट्र-राज्य के रूप में मज़बूती प्रदान करने के लिये यह एकीकरण महत्त्वपूर्ण था।
मुख्य भाग:
संबंधित चुनौतियाँ:
- विविध राजनीतिक परिदृश्य: भारत में 500 से अधिक रियासतें थीं, जिनमें से प्रत्येक का अपना शासक और प्रशासनिक ढाँचा था, जिससे खंडित राजनीतिक परिदृश्य बना हुआ था।
- सहयोगात्मक प्रणाली में अंतर: कुछ रियासतें स्वेच्छा से भारत में शामिल हो गईं लेकिन जूनागढ़, कश्मीर आदि जैसी रियासतें धार्मिक पहचान, ऐतिहासिक शिकायतों या स्वतंत्रता की आकांक्षाओं जैसे कारकों के कारण भारत में शामिल होने के प्रति अनिच्छुक होने के साथ उनका स्पष्ट रूप से विरोध कर रही थीं।
- सामरिक भू-राजनीतिक चिंताएँ: कुछ रियासतें (विशेष रूप से पाकिस्तान या चीन जैसे अन्य देशों की सीमा से लगी रियासतें) रणनीतिक महत्त्व रखती थीं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा एवं क्षेत्रीय अखंडता के बारे में चिंताएँ बढ़ गईं।
- कानूनी अस्पष्टता: एकीकरण प्रक्रिया के लिये स्पष्ट कानूनी ढाँचे की कमी के कारण भारत सरकार एवं रियासतों के शासकों के बीच बातचीत जटिल हो गई।
- बाहरी हस्तक्षेप: कुछ रियासतों (जैसे हैदराबाद) को बाहरी शक्तियों से प्रोत्साहन या समर्थन मिला, जिससे एकीकरण प्रक्रिया और जटिल होने के साथ भारत की संप्रभुता के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं।
नियोजित रणनीतियाँ:
- कूटनीतिक विमर्श: भारतीय राजनेता (विशेष रूप से सरदार वल्लभभाई पटेल) रियासतों के शासकों को स्वेच्छा से भारत में शामिल होने के लिये उनके साथ कूटनीतिक बातचीत में लगे रहे।
- विलय-पत्र: विलय-पत्र द्वारा रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने के लिये एक कानूनी तंत्र प्रदान किया गया, जिससे उन्हें आंतरिक मामलों में स्वायत्तता प्रदान की गई, जबकि रक्षा, विदेशी मामलों और संचार पर नियंत्रण भारत के डोमिनियन के पास रखा गया।
- सैन्य हस्तक्षेप: ऐसे मामलों में जहाँ राजनयिक प्रयास विफल हो गए या जब रियासतों को आंतरिक अशांति का सामना करना पड़ा तो भारत सरकार ने विलय हेतु सैन्य हस्तक्षेप का सहारा लिया, जैसा कि हैदराबाद और जूनागढ़ के मामलों में देखा गया था।
- एकीकरण समितियाँ: भारतीय संघ में रियासतों के प्रशासनिक एकीकरण की निगरानी करने, सुचारु परिवर्तन एवं संवैधानिक सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करने के लिये एकीकरण समितियाँ बनाई गईं।
- राजनीतिक प्रोत्साहन: भारत सरकार ने रियासतों को भारत में शामिल होने के लिये सहमत करने हेतु वित्तीय सहायता, भारतीय संसद में प्रतिनिधित्व तथा सांस्कृतिक एवं धार्मिक स्वायत्तता की गारंटी जैसे राजनीतिक प्रोत्साहन की पेशकश की।
क्षेत्रीय अखंडता पर प्रभाव:
- एकीकृत राष्ट्र का निर्माण: स्वतंत्र भारत में रियासतों के सफल एकीकरण से परिभाषित क्षेत्रीय सीमाओं के साथ एकीकृत राष्ट्र-राज्य का निर्माण होने से भारत की क्षेत्रीय अखंडता मज़बूत हुई।
- सामरिक सीमाओं का संरक्षण: जम्मू-कश्मीर जैसी रणनीतिक रियासतों को एकीकृत करके, भारत सीमाओं तथा अपने क्षेत्रीय हितों की रक्षा करने में सक्षम हुआ (खासकर बाहरी खतरों से ग्रस्त क्षेत्रों में)।
- विविधता में एकता को बढ़ावा: भारत का उद्देश्य एकीकरण प्रक्रिया के तहत विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं एवं परंपराओं वाली विविध रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करना था ताकि विविधता में एकता की भावना को बढ़ावा मिल सके।
- संप्रभुता का सुदृढ़ीकरण: भारत की रियासतों के सफल एकीकरण से संप्रभुता का दावा करने और अपने क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखने की भारत की क्षमता का प्रदर्शन हुआ, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में इसका प्रभाव बढ़ गया।
- संघवाद की विरासत: एकीकरण प्रक्रिया से भारत की संघीय संरचना को आधार मिला, जिसमें रियासतों को एकीकृत राष्ट्र के ढाँचे के भीतर कुछ हद तक स्वायत्तता दी गई, जिससे देश के लोकतांत्रिक लोकाचार को मज़बूती मिली।
निष्कर्ष:
स्वतंत्र भारत में रियासतों का एकीकरण एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव था जिससे कई चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं लेकिन अंततः इससे भारत की क्षेत्रीय अखंडता को मज़बूती मिली। कूटनीतिक बातचीत, विधिक ढाँचे एवं रणनीतिक हस्तक्षेप के माध्यम से भारत ने एकीकृत राष्ट्र-राज्य निर्माण के क्रम में विविध रियासतों का सफलतापूर्वक एकीकरण किया, जिससे इसे वैश्विक मंच पर एक संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में उभरने के लिये आधार मिला।