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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    यदि राष्ट्रपति द्वारा मृत्युदंड प्राप्त दोषी की याचिका खारिज कर दी जाती है तब भी उसके पास न्यायिक विकल्प मौजूद रहता है। उपयुक्त वादों के माध्यम से इस कथन की पुष्टि कीजिये।

    07 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    प्रश्न-विच्छेद

    • राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज कर देने के बाद भी याची के पास उपलब्ध न्यायिक विकल्प को बताना है।
    • उपयुक्त वादों के माध्यम से इसकी पुष्टि करनी है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • प्रभावी भूमिका लिखकर राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के बाद भी उपलब्ध न्यायिक विकल्पों को बताते हुए राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के हाल ही के मुद्दे की चर्चा करें।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु लिखते हुए राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्तियों का उल्लेख करें।
    • उपर्युक्त वादों के माध्यम से राष्ट्रपति के निर्णय के बाद की स्थिति को स्पष्ट करते हुए प्रश्नगत कथन की पुष्टि करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज कर देने के बाद भी मृत्युदंड प्राप्त दोषी के पास न्यायिक विकल्प मौजूद रहता है, क्योंकि राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति न्यायिक समीक्षा के अधीन है। हाल ही में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा मृत्युदंड प्राप्त दोषी जगत राय की याचिका को खारिज कर दिया गया है।

    संविधान के अनुच्छेद 72 के अनुसार, राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति प्राप्त है। अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को भी क्षमादान की शक्ति प्राप्त है लेकिन यह शक्ति मृत्युदंड के लिये नहीं है। राष्ट्रपति सरकार से स्वतंत्र होकर क्षमादान की अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते हैं, क्योंकि राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिमंडल की सलाह के लिये दया याचिका को गृह मंत्रालय के पास भेजा जाता है। मंत्रालय इसे संबंधित राज्य सरकार को भेजता है तथा जवाब के आधार पर मंत्रिपरिषद की ओर से अपनी सलाह तैयार करता है। यद्यपि राष्ट्रपति कैबिनेट की सलाह मानने के लिये बाध्य है लेकिन अनुच्छेद 74(1) के तहत उस विषय को पुनर्विचार के लिये इसे वापस कैबिनेट के पास भेज सकता है । यदि मंत्रिपरिषद किसी भी बदलाव के विरुद्ध फैसला करती है तो राष्ट्रपति के पास इसे स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रहता।

    परंतु, अक्तूबर 2006 में ईपुरु सुधाकर तथा अन्य बनाम आंध्र प्रदेश और अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया था कि अनुच्छेद 72 या 161 के तहत राष्ट्रपति या राज्यपाल की शक्ति न्यायिक समीक्षा के अधीन है तथा उनके निर्णय को निम्न आधारों पर चुनौती दी जा सकती है—

    • यदि निर्णय बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से पारित न किया गया हो।
    • इसे बदनीयति से पारित किया गया हो।
    • यह अपरिपक्व या पूरी तरह से अप्रासंगिक विचारों पर आधारित होकर किया गया हो।
    • प्रासंगिक लक्ष्यों को ध्यान में न रखा गया हो।
    • यह स्वेच्छाचारिता से प्रभावित हो।

    एक अन्य मामला, जिसमें राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका अस्वीकार पर दिये जाने के बाद याची ने दिल्ली उच्च न्यायालय में राष्ट्रपति द्वारा देरी, शक्ति के अनुचित प्रयोग तथा अवैध एकांत कारावास का हवाला देते हुए याचिका को अस्वीकार किये जाने को चुनौती दी थी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में यह तर्क देते हुए नोटिस जारी किया गया कि न्यायिक समीक्षा का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास है और राष्ट्रपति द्वारा खारिज दया याचिका के विरुद्ध दायर याचिका का विचारण सर्वोच्च न्यायालय को करना चाहिये न कि उच्च न्यायालय हो।

    अतः स्पष्ट होता है कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज कर दिये जाने के बाद भी मृत्युदंड प्राप्त दोषी के पास न्यायिक विकल्प होता है।

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