यूनेस्को द्वारा योग को ‘मानवता के अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ की सूची में शामिल करने के क्या निहितार्थ हैं? इस सूची में शामिल भारत के अन्य अमूर्त विरासतों की भी चर्चा करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का परिचय लिखें।
- तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में योग को विश्व विरासत सूची में शामिल करने के महत्त्व को इंगित करते हुए भारत की अन्य अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों को सूचीबद्ध करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त और सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
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अमूर्त संस्कृति किसी समुदाय, राष्ट्र आदि की वह निधि है जो सदियों से उस समुदाय या राष्ट्र के अवचेतन को अभिभूत करते हुए निरंतर समृद्ध होती रहती है। जो समय के साथ समकालीन पीढि़यों की विशेषताओं को अपने में आत्मसात करके वर्तमान पीढ़ी के लिये विरासत के रूप में उपलब्ध होती है। अमूर्त संस्कृति समाज की मानसिक चेतना का प्रतिबिंब है, जो कला, क्रिया या किसी अन्य रूप में अभिव्यक्त होती है। योग इसी अभिव्यक्ति का एक रूप है। भारत में योग एक दर्शन भी है और जीवन पद्धति भी। यह विभिन्न शारीरिक क्रियाओं द्वारा व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
इसी कारण ‘योग’ को यूनेस्को ने विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है। इसके निहितार्थों को निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता हैः
- यूनेस्को की सूची में शामिल होने से यह बेहतर ढंग से विश्व पटल पर प्रदर्शित होगा।
- इसके महत्त्व को समझने का और अधिक अवसर मिलेगा।
- योग के परिरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहायता के लिये प्रस्ताव पारित होंगे।
- भारत की महान धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत की विविधता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलेगी।
- योग अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में लोगों, समाजों और संस्कृतियों के बीच सांस्कृतिक एवं सभ्यागत वार्ता को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
- यह कदम विकास एवं शांति की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की रणनीति को नवीकृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
यूनेस्को ने ‘योग’ को भारत की 13वीं अमूर्त विरासत के रूप में अपनी सूची में सम्मिलित किया है। अन्य अमूर्त सांस्कृतिक विरासत निम्नलिखित हैं :
- लद्दाख का बौद्ध मंत्रजाप: पवित्र बौद्ध लेखों का सस्वर पाठ जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
- छऊ नृत्य: पूर्वी भारतीय राज्यों में उत्पन्न भारत का शास्त्रीय नृत्य।
- ठठेरों द्वारा पारंपरिक रूप से पीतल और तांबे से निर्मित बर्तनों की कला।
- हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र का धार्मिक और कर्मकाण्डीय उत्सव ‘रम्मन’।
- मणिपुर में गान, नृत्य और ढोल के साथ जाप किया जाने वाला ‘संकीर्तन’।
- रामलीला-रामायण का पारंपरिक प्रदर्शन।
- राजस्थान का लोकगीत एवं नृत्य ‘कालबेलिया’।
- वैदिक मंत्रजाप की परंपरा।
- कुडियाट्टम: केरल का सांस्कृतिक नाट्य।
- केरल का कर्मकाण्डीय नाट्य ‘मुडियाट्ट’।
- नवरोज: पारसी समुदाय का पवित्र त्योहार।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि अमूर्त विरासत अंतर्राष्ट्रीय विश्वास, अंतर-सांस्कृतिक वार्ता एवं शांति निर्माण का एक तंत्र है। योग इस तंत्र का एक उपागम है जो अज्ञानता के बादलों को दूर करके आध्यात्मिकता और भौतिकता को एक करता है।