भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में असहयोग आंदोलन के प्रभाव पर चर्चा कीजिये, इसकी रणनीतियों और परिणामों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- असहयोग आंदोलन के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर असहयोग आंदोलन के प्रभाव की चर्चा कीजिये।
- असहयोग आंदोलन की रणनीतियों एवं परिणामों का विश्लेषण कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
असहयोग आंदोलन (1920-1922) ने महात्मा गांधी द्वारा भारत की स्वतंत्रता के लिये शुरू किये गए संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित किया। इसका उद्देश्य अहिंसक प्रतिरोध, बहिष्कार एवं सविनय अवज्ञा के माध्यम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करना था।
मुख्य भाग:
असहयोग आंदोलन की रणनीतियाँ:
- ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार:
- भारतीयों को ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करने और इसके बजाय खादी (हाथ से बुने हुए कपड़े) अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
- इससे भारत में ब्रिटिश कपड़ा निर्यात में उल्लेखनीय कमी आई, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। इससे आत्मनिर्भरता के साथ स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहन मिला।
- ब्रिटिश संस्थानों से अलग होना:
- लोगों से सरकारी नौकरियों, स्कूलों एवं कॉलेजों से इस्तीफा देने का आग्रह किया गया।
- इससे ब्रिटिश प्रशासन एवं संस्थाएँ कमज़ोर हो गईं, जिससे उनका शासन बाधित हुआ।
- इसने स्वतंत्रता के लिये बलिदान देने की भारतीयों की इच्छा को प्रदर्शित किया।
- सविनय अवज्ञा:
- इसमें अहिंसक विरोध एवं अवज्ञा प्रमुख रणनीति थी।
- उदाहरणों में चौरी-चौरा की घटना शामिल है जहाँ प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिये गांधीजी को कुछ समय के लिये आंदोलन बंद करना पड़ा।
- हिंदू और मुसलमानों के बीच एकता:
- इस आंदोलन का उद्देश्य सांप्रदायिक विभाजन को कम करना तथा हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना था।
- इस एकता से राष्ट्रीय आंदोलन को मज़बूती मिली और भारतीयों में एकजुटता की भावना विकसित हुई।
असहयोग आंदोलन का प्रभाव:
- राजनीतिक चेतना में वृद्धि:
- इस आंदोलन ने भारतीयों में राजनीतिक चेतना के साथ भागीदारी की भावना विकसित की।
- किसानों एवं श्रमिकों सहित समाज के विभिन्न वर्गों के लोग सक्रिय रूप से इस आंदोलन में शामिल हुए।
- ब्रिटिश प्रतिक्रिया:
- ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को रोकने के लिये दमनकारी उपाय लागू किये, जिससे बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ और दमनकारी नीति को अपनाया गया।
- इसने भारतीय लोगों की शक्ति तथा दृढ़ संकल्प को उजागर किया।
- अंतर्राष्ट्रीय ध्यान:
- इस आंदोलन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर (खासकर ब्रिटेन में) पर ध्यान आकर्षित किया और स्वतंत्रता हेतु भारतीय आकांक्षाओं के बारे में जागरूकता में वृद्धि की।
- इस कारण ब्रिटिश सरकार पर भारतीय मांगों पर ध्यान देने का दबाव बढ़ गया।
- नए नेताओं का उदय:
- इस आंदोलन ने जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे नए नेताओं को प्रमुखता से उभरने के लिये एक मंच प्रदान किया।
- इन नेताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन के बाद के चरणों में महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं।
असहयोग आंदोलन के परिणाम:
- ब्रिटिश नीति में परिवर्तन:
- इस आंदोलन ने अंग्रेज़ों को भारत में अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिये मजबूर किया।
- वर्ष 1927 में संवैधानिक सुधारों की सिफारिश करने के लिये साइमन कमीशन की नियुक्ति की गई, हालाँकि भारतीयों ने इसका बहिष्कार किया।
- भारतीय राजनीति में बदलाव:
- इस आंदोलन से भारतीय राजनीति में अधिक मुखर और समावेशी राष्ट्रवाद की ओर बदलाव देखा गया।
- इसने सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे भविष्य के जन आंदोलनों की नींव रखी।
- परंपरा:
- असहयोग आंदोलन को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसक प्रतिरोध की एक स्थायी विरासत मन जाता है।
- इसने संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग जूनियर सहित विश्व भर के भावी नेताओं और आंदोलनों को प्रेरित किया।
निष्कर्ष:
असहयोग आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण क्षण था, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा को आकार दिया तथा भारतीय समाज एवं राजनीति पर स्थायी प्रभाव छोड़ा। इसने स्वतंत्रता प्राप्ति के क्रम में भारतीयों के बीच अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति तथा उद्देश्य की एकता को प्रदर्शित किया।