सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में भारत की सकारात्मक नीतिगत कार्रवाईयों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करते हुए इससे संबंधित चुनौतियों एवं संभावित सुधारों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत भारत की सकारात्मक नीतिगत कार्रवाईयों के परिचय के साथ कीजिये।
- सामाजिक न्याय की भारत में सकारात्मक कार्रवाई नीतियों की प्रभावशीलता का वर्णन कीजिये।
- सकारात्मक कार्रवाई में आवश्यक निरंतर चुनौतियों और संभावित सुधारों का मूल्यांकन कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
भारत में सकारात्मक कार्रवाई नीतियाँ ऐतिहासिक भेदभाव को दूर करने और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिये लागू की गई हैं। शिक्षा एवं रोज़गार में आरक्षण सहित इन नीतियों का उद्देश्य अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) जैसे हाशिये पर रहने वाले समुदायों का उत्थान करना है।
- भारत में सकारात्मक कार्रवाई की बुनियाद संविधान में रखी गई है, जिसमें अनुच्छेद 15(4) और अनुच्छेद 16(4) जैसे प्रावधान हैं, जो शैक्षणिक संस्थानों एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण की अनुमति देते हैं। वर्ष 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट ने जाति-आधारित असमानताओं को दूर करने की प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए OBC को शामिल करने के लिये आरक्षण का और विस्तार किया।
मुख्य भाग:
सकारात्मक कार्रवाई नीतियों की प्रभावशीलता:
1. सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण:
- सकारात्मक कार्रवाई से शिक्षा और रोज़गार में हाशिये पर रहने वाले समुदायों का प्रतिनिधित्व बढ़ा है।
- 01.01.2016 तक केंद्र सरकार के अधीन पदों और सेवाओं में SC, ST एवं OBC का प्रतिनिधित्व बढ़कर क्रमशः 17.49%, 8.47% तथा 21.57% हो गया।
2. राजनीतिक प्रतिनिधित्व:
- सकारात्मक कार्रवाई ने राजनीतिक सशक्तीकरण की सुविधा प्रदान की है, विधायिकाओं में आरक्षित सीटों से हाशिये पर रहने वाले समूहों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हुआ है।
- उदाहरण के लिये अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का उद्देश्य हाशिये पर रहने वाले समुदायों को भेदभाव और हिंसा से बचाना है।
3. शैक्षिक अवसर:
- आरक्षण नीतियों ने हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिये शिक्षा तक पहुँच बढ़ा दी है, जिससे उनकी सामाजिक गतिशीलता में योगदान हुआ है।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के कार्यान्वयन ने वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों के लिये मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करके इस उद्देश्य को आगे बढ़ाया है।
चुनौतियाँ:
1. क्रीमीलेयर और एलीट कैप्चर:
- क्रीमीलेयर की अवधारणा की आलोचना इस बात के लिये की गई है कि आरक्षित श्रेणियों के समृद्ध व्यक्तियों को लाभ मिलता है, जिससे वास्तव में हाशिये पर रहने वाले लोग नुकसान में रह जाते हैं।
- अभिजात्य वर्ग का कब्ज़ा आरक्षित श्रेणियों के भीतर राजनीतिक और आर्थिक रूप से शक्तिशाली व्यक्तियों के प्रभुत्व को संदर्भित करता है, जो सबसे हाशिये पर रहने वाले लोगों तक लाभ सीमित करता है।
2. गुणवत्ता बनाम मात्रा पर बहस:
- आलोचकों का तर्क है कि आरक्षण योग्यता और गुणवत्ता से समझौता करता है, जिससे शैक्षणिक एवं व्यावसायिक संस्थानों में अक्षमताएँ उत्पन्न होती हैं।
- शैक्षिक योग्यता और नौकरी की आवश्यकताओं के बीच बेमेल चिंता का विषय रहा है, जो सकारात्मक कार्रवाई की प्रभावशीलता को प्रभावित कर रहा है।
3. सामाजिक कलंक और भेदभाव:
- आरक्षण के बावजूद, हाशिये पर रहने वाले समुदायों को सामाजिक कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनका समग्र विकास बाधित हो रहा है।
- रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रहों का कायम रहना हाशिये पर रहने वाले समुदायों के समाज में एकीकरण के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
4. विरोध और प्रतिक्रिया:
- प्रायः प्रमुख समूहों की ओर से विरोध होता है जो इन नीतियों को अनुचित मानते हैं, जिससे सामाजिक तनाव और संघर्ष होते हैं।
संभावित सुधार:
1. कार्यान्वयन तंत्र को सुदृढ़ बनाना:
- सकारात्मक कार्रवाई नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये निगरानी और मूल्यांकन तंत्र को बढ़ाना।
- उल्लंघनों को रोकने के लिये आरक्षण मानदंडों का अनुपालन न करने पर सख्त दंड लागू करना।
2. क्रीमी लेयर और एलीट कैप्चर को संबोधित करना:
- लाभार्थियों की पहचान करने के लिये आय मानदंड पेश करना, यह सुनिश्चित करना कि आरक्षण से आरक्षित श्रेणियों के भीतर आर्थिक रूप से वंचित लोगों को लाभ हो।
- कुलीन वर्ग के कब्ज़े को रोकने और लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिये चयन प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ावा देना।
3. सामाजिक समावेशन और जागरूकता को बढ़ावा देना:
- सामाजिक समावेशन के महत्त्व और भेदभाव के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु अभियान शुरू करना।
- विभिन्न समुदायों के बीच संवाद और समझ को बढ़ावा देने, समावेशिता की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु कार्यक्रम लागू करना।
4. सामाजिक-शैक्षणिक सूचकांक:
- एकाधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण, जो व्यक्तियों की जाति के अतिरिक्त उनकी सामाजिक-शैक्षिक स्थिति पर विचार करता है साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक समूह के सबसे हाशिये पर रहने वाले लोगों को लाभ मिले।
5. लाभार्थियों का विविधीकरण:
- सकारात्मक कार्रवाई नीतियों में धार्मिक अल्पसंख्यकों, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों एवं विकलांगों जैसे अन्य हाशिये पर रहने वाले समूहों को शामिल करने से उन्हें और अधिक समावेशी बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष:
भारत में सकारात्मक कार्रवाई नीतियों ने सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि क्रीमीलेयर मुद्दे, गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ और सामाजिक कलंक जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। सकारात्मक कार्रवाई नीतियों की प्रभावशीलता को बढ़ाने और सभी के लिये सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के उनके लक्ष्य को साकार करने के लिये कार्यान्वयन को मज़बूत करने, अभिजात वर्ग के कब्ज़े को संबोधित करने एवं सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने वाले सुधारों के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।