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प्रश्न :
भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के क्रम में राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
26 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के परिचय के साथ कीजिये।
- सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के महत्त्व का वर्णन कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) भारतीय संविधान के भाग IV में निर्धारित दिशा-निर्देशों का एक समूह है। हालाँकि गैर-न्यायसंगत रूप में वे भारतीय सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में कार्य करते हैं।
मुख्य भाग:
- सामाजिक कल्याण नीतियों के लिये रूपरेखा:
- DPSP सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कानून और नीतियाँ तैयार करने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है।
- उदाहरण के लिये अनुच्छेद 39 राज्य को समान कार्य हेतु समान वेतन सुनिश्चित करने का निर्देश देता है, जिसके कारण न्यूनतम वेतन कानून और श्रम कल्याण योजनाएँ लागू हुईं, जिससे आर्थिक असमानताएँ कम हुईं।
- सामाजिक असमानताओं का उन्मूलन:
- अनुच्छेद 38 और 39 का उद्देश्य आय, स्थिति एवं अवसरों में असमानताओं को कम करना है।
- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों जैसे सामाजिक रूप से वंचित समूहों के लिये शिक्षा एवं रोज़गार में आरक्षण जैसी नीतियाँ ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने तथा सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के प्रयासों का उदाहरण हैं।
- शैक्षिक अवसरों को बढ़ावा देना:
- अनुच्छेद 45 राज्य को 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिये मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का आदेश देता है।
- इस प्रावधान से सर्व शिक्षा अभियान (SSA) और शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसी योजनाओं की स्थापना हुई है, जिससे समाज के हाशिये पर रहने वाले वर्गों के लिये शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित हुई है, जिससे सामाजिक समावेशन को बढ़ावा मिला है।
- कमज़ोर वर्गों का सशक्तिकरण:
- DPSP समाज के कमज़ोर वर्गों की सुरक्षा और सशक्तिकरण पर ज़ोर देता है।
- अनुच्छेद 46 एवं 47 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य हाशिये पर रहने वाले समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास के प्रति विशेष देखभाल तथा ध्यान देने की आवश्यकता पर बल देते हैं।
- सकारात्मक कार्रवाई नीतियों और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों जैसी पहलों का उद्देश्य इन वर्गों का उत्थान करना तथा सामाजिक अंतर को पाटना है।
- पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक न्याय:
- अनुच्छेद 48A पर्यावरण संरक्षण और सतत् विकास के महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं।
- पर्यावरणीय क्षरण प्रायः असुरक्षित समुदायों को प्रभावित करता है।
- सतत् विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ न केवल पर्यावरणीय न्याय सुनिश्चित करती हैं बल्कि अपनी आजीविका के लिये प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हाशिये पर रहने वाली आबादी के हितों को भी संरक्षित करती हैं।
- श्रमिकों के लिये कल्याणकारी उपाय:
- DPSP मज़दूरों के कल्याण और उनके अधिकारों की सुरक्षा का समर्थन करता है।
- अनुच्छेद 42 एवं 43 काम की उचित और मानवीय परिस्थितियों तथा मातृत्व अनुतोष के प्रावधान पर ज़ोर देते हैं।
- श्रम कानूनों का कार्यान्वयन, न्यूनतम वेतन मानकों की स्थापना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) जैसी पहल का उद्देश्य मज़दूरों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करना है, जिससे सामाजिक न्याय में योगदान मिलता है।
- सामाजिक एकता को मज़बूत बनाना:
- DPSP सामाजिक एकता और सद्भाव को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- अनुच्छेद 44 जैसे- अनुच्छेद धर्म, लिंग या जाति के आधार पर भेदभावपूर्ण प्रथाओं को खत्म करने के लिये समान नागरिक संहिता को बढ़ावा देने पर ज़ोर देते हैं।
- इस तरह के उपाय एक बहुलवादी समाज के विचार को बढ़ावा देते हैं, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को उनकी पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना समान अधिकार और अवसर प्राप्त होते हैं।
- न्यायिक सक्रियता और DPSP:
- हालाँकि गैर-न्यायसंगत, DPSP ने न्यायिक निर्णयों को प्रभावित किया है, जिससे सामाजिक-आर्थिक अधिकार न्यायशास्त्र का विकास हुआ है।
- न्यायपालिका ने मौलिक अधिकारों की व्याख्या करते समय प्रायः DPSP का इस्तेमाल किया है, जिससे सामाजिक न्याय का दायरा बढ़ गया है।
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य और मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ जैसे ऐतिहासिक फैसले DPSP तथा मौलिक अधिकारों के बीच सहजीवी संबंध को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष:
राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिये आधारशिला के रूप में कार्य करते हैं। आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय एवं राजनीतिक आयामों को शामिल करते हुए अपने बहुआयामी दृष्टिकोण के माध्यम से DPSP ने एक अधिक न्यायसंगत और समावेशी समाज के लिये आधार तैयार किया।
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