भारत में संसदीय प्रणाली तथा संघीय प्रणाली के बीच अंतर्संबंध पर चर्चा कीजिये। यह देश के शासन एवं संघीय ढाँचे में किस प्रकार योगदान देता है? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में संसदीय प्रणाली और संघीय प्रणाली को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- संसदीय और संघीय प्रणालियों के बीच अंतर-संबंध का वर्णन कीजिये।
- देश के शासन तथा संघीय ढाँचे में इसके योगदान का विश्लेषण कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारतीय संविधान में अद्वितीय शासन ढाँचे का प्रावधान है जो संसदीय तथा संघीय प्रणाली के मिश्रण पर आधारित है। इसमें सरकार की संसदीय प्रणाली (जहाँ कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है) तथा संघीय प्रणाली (जहां शक्तियाँ केंद्र सरकार और राज्यों के बीच विभाजित होती हैं) का अनुसरण किया गया है।
मुख्य भाग:
संसदीय और संघीय प्रणालियों के बीच परस्पर संबंध:
- कैबिनेट प्रणाली:
- भारत में संसदीय प्रणाली यह सुनिश्चित करके संघीय ढाँचे को प्रभावित करती है कि मंत्रिपरिषद में विभिन्न राज्यों के सदस्य शामिल हों।
- इससे क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलने के साथ यह सुनिश्चित होता है कि केंद्रीय स्तर पर राज्य के हितों पर विचार किया जाए।
- शक्तियों का वितरण:
- संघीय ढाँचा, शक्ति संतुलन सुनिश्चित करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों (7वीं अनुसूची) की शक्तियों को परिभाषित करता है। हालाँकि संसदीय प्रणाली केंद्र सरकार को राष्ट्रपति शासन जैसे तंत्र के माध्यम से राज्य के मामलों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देती है, लेकिन इसे किसी राज्य में संवैधानिक मशीनरी के अक्षम हो जाने की स्थिति में लगाया जा सकता है।
- राष्ट्रपति शासन: अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाना संसदीय और संघीय प्रणालियों के बीच परस्पर संबंध को दर्शाता है। हालाँकि यह संवैधानिक व्यवस्था बनाए रखने का एक उपकरण है, लेकिन इसके दुरुपयोग से केंद्र एवं राज्यों के बीच टकराव हो सकता है।
- विधायी संबंध:
- संसद विशिष्ट परिस्थितियों में (जैसे राष्ट्रीय हित, दो या दो से अधिक राज्यों के अनुरोध पर) राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है (अनुच्छेद 252)।
- यह भारत में संघवाद की सहकारी प्रकृति को दर्शाता है, जहाँ केंद्र एवं राज्य सरकारें प्रभावी शासन हेतु सहयोग करती हैं।
- वित्तीय संबंध:
- संघीय ढाँचे में वित्त आयोग (अनुच्छेद 280), केंद्र एवं राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण की सिफारिश करता है।
- संसदीय प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि इन सिफारिशों को बजटीय आवंटन एवं अन्य वित्तीय तंत्रों के माध्यम से लागू किया जाए।
- वित्त आयोग: वित्त आयोग की सिफारिशें (जो संघीय ढाँचे का एक आयाम है) संसदीय प्रणाली के माध्यम से लागू की जाती हैं। इससे सुनिश्चित होता है कि वित्तीय संसाधनों को राज्यों के बीच समान रूप से वितरित किया जाए।
शासन में योगदान:
- जवाबदेहिता:
- संसदीय प्रणाली से सुनिश्चित होता है कि कार्यपालिका विधायिका के प्रति जवाबदेह रहे।
- यह जवाबदेही केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारों तक विस्तारित है, जिससे शासन में पारदर्शिता तथा जवाबदेहिता सुनिश्चित होती है।
- क्षमता:
- संसदीय और संघीय प्रणालियों का मिश्रण, त्वरित निर्णय लेने में सहायक है, क्योंकि कार्यपालिका विधायी आवश्यकताओं एवं चुनौतियों का त्वरित जवाब दे सकती है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में यह सक्रियता आवश्यक है।
- प्रतिनिधित्व:
- संसदीय प्रणाली से सुनिश्चित होता है कि सरकार में सभी क्षेत्रों तथा समुदायों का प्रतिनिधित्व हो, जिससे शासन में समावेशिता एवं विविधता को बढ़ावा मिल सके।
- क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने तथा समान विकास सुनिश्चित करने के लिये यह प्रतिनिधित्व महत्त्वपूर्ण है।
संघीय ढाँचे में योगदान:
- एकता और विविधता:
- संसदीय और संघीय प्रणालियों के बीच परस्पर क्रिया से विविधता में एकता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता मज़बूत होती है।
- इससे राष्ट्रीय एकता को बनाए रखते हुए देश की विविध भाषाई, सांस्कृतिक एवं क्षेत्रीय पहचानों का समायोजन होता है।
- लचीला संघवाद:
- भारतीय संघीय संरचना लचीली है, जो क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप शासन मॉडल को अपनाने की अनुमति देती है।
- यह लचीलापन भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में आवश्यक है, जहाँ एक जैसी नियम प्रणाली सभी के लिये उपयुक्त नहीं है।
- जीएसटी परिषद: वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद, सहकारी संघवाद का एक उदाहरण है। इसमें केंद्र एवं राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं, जो जीएसटी दरों एवं अन्य संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेते हैं और यह शासन के लिये एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- विवाद समाधान:
- संबंधित प्रणालियों के बीच परस्पर क्रिया, केंद्र एवं राज्यों के बीच संघर्षों को हल करने के क्रम में तंत्र प्रदान करती है।
- इसमें विवाद समाधान के लिये संवैधानिक प्रावधान तथा अंतर-राज्यीय परिषद जैसी संस्थाओं की भूमिका शामिल है।
निष्कर्ष:
भारत में संसदीय प्रणाली तथा संघीय प्रणाली के बीच परस्पर क्रिया लोकतंत्र, संघवाद तथा विविधता में एकता के प्रति देश की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। इस परस्पर संबंध से यह सुनिश्चित होता है कि शासन प्रभावी, जवाबदेह और समावेशी हो, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत की स्थिति को मज़बूत कर सके।