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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित "संविधान के मूल ढाँचा" की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये। इससे संसद की संविधान संशोधन शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है? (250 शब्द)

    19 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संविधान के मूल ढाँचे का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित "संविधान के मूल ढाँचे" की अवधारणा पर चर्चा कीजिये।
    • संसद की संविधान संशोधन की शक्ति पर इसके प्रभाव के बारे में प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) के ऐतिहासिक मामले में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित मूल ढाँचे के सिद्धांत में यह माना गया कि संविधान की कुछ विशेषताएँ अपरिवर्तनीय हैं और इन्हें संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से भी नहीं बदला जा सकता। यह सिद्धांत संविधान में निहित मूल सिद्धांतों और मूल्यों की रक्षा करने के साथ इसकी स्थिरता एवं अखंडता सुनिश्चित करने के लिये सामने आया।

    मुख्य भाग:

    बुनियादी ढाँचे के घटक:

    • लोकतांत्रिक ढाँचा:
      • यह सिद्धांत संविधान में अंतर्निहित लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बरकरार रखता है, जिसमें स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव, शक्तियों का पृथक्करण तथा विधि का शासन शामिल है।
      • ये सिद्धांत भारत की शासन संरचना की नींव हैं तथा यह नागरिकों के अधिकारों एवं स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिये आवश्यक हैं।
    • संघवाद:
      • मूल ढाँचे का सिद्धांत, संविधान के संघीय ढाँचे को मान्यता देता है, जो केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच शक्ति संतुलन पर आधारित है। संघीय सिद्धांतों को कमज़ोर करने का कोई भी प्रयास बुनियादी ढाँचे के उल्लंघन की श्रेणी में आता है।
    • धर्मनिरपेक्षता:
      • धर्मनिरपेक्षता, भारतीय संविधान की एक मूलभूत विशेषता है, जो राज्य को किसी विशेष धर्म का पक्ष लेने से रोकती है।
      • यह सिद्धांत धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के साथ नागरिकों के बीच समानता सुनिश्चित करता है।
    • न्यायिक समीक्षा:
      • यह सिद्धांत न्यायपालिका को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले या संवैधानिक ढाँचे के विपरीत, कानूनों को रद्द करने का अधिकार देता है।
      • यह सिद्धांत संविधान की सर्वोच्चता सुनिश्चित करने के साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है।
    • मूल अधिकार:
      • मूल अधिकारों को मूल ढाँचे का अभिन्न अंग माना जाता है, क्योंकि ये नागरिकों की गरिमा एवं स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।
      • कोई भी संशोधन जो इन अधिकारों को कमज़ोर या निरस्त करता है वह असंवैधानिक होगा।

    संसद की संविधान संशोधन शक्ति पर प्रभाव:

    संसद के पास अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करने का अधिकार है लेकिन मूल ढाँचे का सिद्धांत इस संशोधन पर सीमाएँ अध्यारोपित करता है:

    • संवैधानिक सीमा: संसद संविधान में इस तरह से संशोधन नहीं कर सकती जो इसकी मूल संरचना का उल्लंघन करती हो। मूल संरचना के विपरीत कोई भी संशोधन अमान्य होगा।
      • इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण (1975): इस मामले में न्यायालय ने मूल ढाँचा सिद्धांत को बरकरार रखते हुए 39वें संशोधन को रद्द कर दिया, जिसने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनावों के संबंध में याचिकाओं पर फैसला करने के सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार को अप्रभावी बनाया।
      • मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980): इसमें न्यायालय ने मूल ढाँचा सिद्धांत को दोहराते हुए माना कि संविधान में संशोधन करने की शक्ति इसकी मूल संरचना या ढाँचे को नष्ट करने की शक्ति नहीं है।
    • न्यायिक समीक्षा: न्यायपालिका संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करती है और उसे संवैधानिक संशोधनों की समीक्षा करने का अधिकार है। यदि किसी संवैधानिक संशोधन को बुनियादी ढाँचे का उल्लंघन करने के लिये न्यायालय में चुनौती दी जाती है, तो न्यायपालिका संविधान के मूल सिद्धांतों के साथ इसकी अनुकूलता का मूल्यांकन करेगी।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने IR कोएल्हो मामले जैसे फैसलों में बार-बार दोहराया है कि न्यायिक समीक्षा बुनियादी ढाँचे का हिस्सा है।
    • विकास एवं समय के अनुसार व्याख्या: समय के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने बदलती सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुकूल बुनियादी ढाँचे के दायरे का विस्तार किया है। इससे सुनिश्चित होता है कि संविधान नई चुनौतियों के आलोक में प्रासंगिक और लचीला बना रहे।
      • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): यह ऐतिहासिक मामला बुनियादी ढाँचे के सिद्धांत की नींव है। न्यायालय ने कहा हालाँकि संसद के पास अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह इसके मूल ढाँचे को नहीं बदल सकती है।

    निष्कर्ष:

    मूल ढाँचे का सिद्धांत मनमाने संवैधानिक संशोधनों के खिलाफ एक सुरक्षा कवच के रूप में स्थापित है जो भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है। यह संसद की शक्ति पर प्रतिबंध लगाता है लेकिन यह संविधान की सर्वोच्चता को मज़बूत करने के साथ लोगों के अधिकारों एवं स्वतंत्रता की रक्षा करता है।

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