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प्रश्न :
प्राचीन भारत के सांस्कृतिक, आर्थिक तथा सामाजिक जीवन को आकार देने में सिंधु घाटी सभ्यता के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
18 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- प्राचीन काल में IVC के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- प्राचीन भारत के सांस्कृतिक, आर्थिक तथा सामाजिक जीवन को आकार देने में IVC की प्रासंगिकता का विश्लेषण कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
सिंधु घाटी सभ्यता (जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है) प्राचीन भारत की सबसे पुरानी शहरी सभ्यताओं में से एक थी। यह सिंधु नदी बेसिन में विकसित हुई, जो वर्तमान पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम भारत और अफगानिस्तान तथा ईरान के कुछ हिस्सों तक विस्तारित थी। लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक रही इस सभ्यता ने प्राचीन भारत के सांस्कृतिक, आर्थिक तथा सामाजिक जीवन को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुख्य भाग:
सांस्कृतिक महत्त्व:
- शहरी नियोजन:
- IVC, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे नियोजित शहरों की तरह थी, जिनमें अच्छी सड़कें, जल निकासी प्रणालियाँ एवं उन्नत जल प्रबंधन तकनीकें शामिल थीं।
- इस तरह की योजना ने भारत में बाद की शहरी बस्तियों के लिये आधार तैयार किया।
- लिपि और संचार:
- सिंधु सभ्यता की लिपि से संचार की एक विकसित प्रणाली के संकेत मिलते हैं।
- हालाँकि इसको पढ़ा नहीं जा सका है लेकिन यह भाषा एवं लेखन में इस सभ्यता की प्रगति को रेखांकित करती है।
- कलाकृतियाँ:
- सिंधु सभ्यता की मुहरें, मिट्टी के बर्तन और मूर्तियाँ जैसी कलाकृतियाँ एक समृद्ध कलात्मक परंपरा को प्रदर्शित करती हैं, जिनमें जानवरों, मानव आकृतियों तथा जटिल प्रतिरूप का अंकन है।
- यह कलात्मक विरासत इस सभ्यता की सौंदर्य संबंधी संवेदनाओं एवं सांस्कृतिक गहराई को दर्शाती हैं।
- धर्म और अनुष्ठान:
- पुरातात्त्विक खोजों से देवताओं, अनुष्ठान प्रथाओं और औपचारिक स्थलों पर केंद्रित एक विश्वास प्रणाली का संकेत मिलता है।
- अग्नि वेदियों और मूर्तियों (जैसे पशुपति मुहरों की उपस्थिति) से धार्मिक अनुष्ठानों के संकेत मिलते हैं, जो प्राचीन भारतीय आध्यात्मिकता के संबंध में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
आर्थिक महत्त्व:
- व्यापार नेटवर्क:
- IVC के मेसोपोटामिया, मध्य एशिया और अरब प्रायद्वीप जैसे क्षेत्रों के साथ व्यापक व्यापार संबंध थे, जिसका प्रमाण मोतियों, चीनी मिट्टी की वस्तुओं एवं धातुओं से मिलता है। इस व्यापार ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा आर्थिक समृद्धि को सुविधाजनक बनाया।
- कृषि पद्धतियाँ:
- सिंधु नदी के उपजाऊ मैदानों में कृषि को बढ़ावा मिला, जहाँ गेहूँ, जौ और कपास की कृषि के प्रमाण मिले हैं।
- उन्नत सिंचाई प्रणालियों ने कुशल कृषि उत्पादन को सक्षम बनाया, जिससे इस सभ्यता की आर्थिक स्थिरता में योगदान मिला।
- शिल्प कौशल और उद्योग:
- मिट्टी के बर्तनों, धातुकर्म और वस्त्रों के उत्पादन में कौशल देखने को मिलता है।
- इस दौरान मनके बनाने और धातुकर्म जैसे विशिष्ट उद्योग फले-फूले, जो सभ्यता की आर्थिक विविधता एवं तकनीकी कौशल को प्रदर्शित करते हैं।
- मानकीकृत बाट और माप:
- मानकीकृत बाटों और मापों की उपस्थिति, व्यापार एवं वाणिज्य की एक विनियमित प्रणाली का सुझाव देती हैं।
- ऐसी एकरूपता एक ऐसी सुव्यवस्थित आर्थिक संरचना का संकेत देती है, जो इस सभ्यता की सीमाओं के भीतर और बाहर व्यावसायिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनाती है।
सामाजिक महत्त्व:
- शहरी समाज:
- इस समय में नियोजित शहरों की उपस्थिति से शासन प्रणाली, सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे तथा सामाजिक पदानुक्रम के साथ एक संरचित शहरी समाज का संकेत मिलता है।
- इस संगठित शहरी जीवन से यहाँ के निवासियों के बीच सामुदायिक एवं नागरिक ज़िम्मेदारी की भावना को बढ़ावा मिला।
- जातिगत भूमिकायें:
- यहाँ की कलाकृतियाँ लिंग-विशिष्ट भूमिकाओं को दर्शाती हैं, जिसमें विभिन्न गतिविधियों में लगे पुरुष और महिलाओं से संबंधित चित्रण शामिल हैं।
- इस समय जहाँ पुरुष शिकार और युद्ध से संबंधित थे, वहीं महिलाएँ संभवतः घरेलू कामकाज एवं शिल्प उत्पादन में शामिल थीं, जो उस समय के सामाजिक मानदंडों के परिचायक हैं।
- दफन प्रणाली:
- इस समय के दफन स्थल सामाजिक स्तरीकरण में अंतर्दृष्टि प्रदान करने के साथ दफन प्रथाओं में भिन्नताएँ, सामाजिक स्थिति में अंतर का संकेत देती हैं।
- इसमें अन्य वस्तुओं की उपस्थिति मृत्यु के बाद के जीवन के साथ धन एवं स्थिति के आधार पर सामाजिक अंतर का संकेत देती हैं।
निष्कर्ष:
सिंधु घाटी सभ्यता प्राचीन भारतीय सभ्यता की सरलता एवं उपलब्धियों के प्रमाण की परिचायक है। इसका सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक महत्त्व भारतीय इतिहास को आकार देने के साथ उपमहाद्वीप में हुए बाद के विकास का आधार बना।
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