भारत में मुगल साम्राज्य के पतन तथा उत्तराधिकारी राज्यों के उदय हेतु उत्तरदायी विभिन्न कारकों का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मुगल साम्राज्य और उसके पतन के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- उन कारकों की चर्चा कीजिये जिनके कारण मुगल साम्राज्य का पतन हुआ था।
- मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भारत में उत्तराधिकारी राज्यों के उद्भव पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
मुगल साम्राज्य (जो 16वीं सदी की शुरुआत से 19वीं सदी के मध्य तक अस्तित्त्व में था) भारतीय इतिहास में सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली साम्राज्यों में से एक था। यह अकबर के शासनकाल में अपने चरम पर पहुँच गया, उसके बाद इसका पतन होना शुरू हो गया, जिससे भारत के विभिन्न भागों में उत्तराधिकारी राज्य के रूप में कई साम्राज्यों का उदय हुआ।
मुख्य भाग:
मुगल साम्राज्य के पतन हेतु उत्तरदायी कारक:
- आर्थिक कारक:
- कृषि संकट: मुगल साम्राज्य में भू-राजस्व की अत्यधिक मांग जैसे कारकों से कृषि स्थिरता पर संकट आया जिसके कारण कृषि उत्पादकता के साथ ग्रामीण समृद्धि में गिरावट आई।
- राजस्व प्रणाली: समय के साथ जागीरदारी और ज़मींदारी प्रणालियों का बोझ बढ़ने से किसानों में असंतोष पैदा हुआ जिससे साम्राज्य के राजस्व संग्रह में गिरावट आई।
- व्यापार और वाणिज्य में गिरावट: ब्रिटिश, डच और पुर्तगाली जैसी यूरोपीय शक्तियों के उद्भव के कारण प्रमुख व्यापारिक मार्गों पर मुगल साम्राज्य का नियंत्रण कमज़ोर हो गया, जिससे व्यापार से होने वाले राजस्व में गिरावट आई।
- धन की निकासी: कुलीनों की असाधारण जीवनशैली, एक बड़ी सेना को बनाए रखने की लागत तथा यूरोपीय शक्तियों के साथ व्यापार करने के क्रम में कीमती धातुओं के बहिर्वाह के कारण साम्राज्य की संपत्ति में कमी आई थी।
- प्रशासनिक कारक:
- कमज़ोर उत्तराधिकारी: औरंगज़ेब के शासनकाल के बाद कमज़ोर शासक हुए जो साम्राज्य की एकता और स्थिरता को बनाए रखने में असमर्थ थे।
- सत्ता का विकेंद्रीकरण: साम्राज्य की प्रशासनिक संरचना का तेज़ी से विकेंद्रीकरण हुआ, इससे प्रांतीय गवर्नरों को अधिक स्वायत्तता मिल गई, जिससे मुगल सम्राट की केंद्रीय शक्ति कमज़ोर हो गई।
- राजनीतिक कारक:
- क्षेत्रीय विद्रोह: साम्राज्य के भीतर विभिन्न क्षेत्रों जैसे- दक्कन, बंगाल और अवध ने अपनी स्वतंत्रता का दावा शुरू करने के साथ मुगल सत्ता को चुनौती दी, जिससे साम्राज्य का विखंडन हुआ।
- बाहरी आक्रमण: मुगल साम्राज्य को फारसी और अफगान शासकों जैसी विभिन्न बाहरी शक्तियों के आक्रमणों का सामना करना पड़ा था, जिससे इस साम्राज्य की शक्ति में कमज़ोरी आई थी।
- सामाजिक और सांस्कृतिक कारक:
- धार्मिक असहिष्णुता: औरंगज़ेब की नीतियों (जिन्होंने गैर-मुसलमानों पर प्रतिबंध लगाए और अन्य धर्मों पर अत्याचार किया) ने आबादी के बड़े हिस्से को अलग-थलग कर दिया जिससे आंतरिक कलह को बढ़ावा मिला।
- सामाजिक विविधता: मुगल साम्राज्य एक जटिल सामाजिक पदानुक्रम वाला एक विविध साम्राज्य था जिसमें विभिन्न समुदायों एवं जातियों को एकीकृत करने में विफलता के कारण सामाजिक अशांति उत्पन्न हुई।
उत्तराधिकारी शासकों का उदय:
- मराठों का उदय:
- शिवाजी और बाद में पेशवाओं के नेतृत्व में मराठाओं का पश्चिमी भारत में एक प्रभावी शक्ति के रूप में उदय हुआ।
- उनकी गुरिल्ला युद्ध रणनीति तथा मज़बूत प्रशासनिक प्रणालियों ने मुगल सत्ता को चुनौती देने में सक्षम बनाया।
- मराठों ने वर्तमान महाराष्ट्र और आस-पास के क्षेत्रों के बड़े हिस्से पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया।
- सिख शक्ति का विस्तार:
- सिख मिस्लों ने पंजाब में अपना अधिकार स्थापित करने के लिये कमज़ोर होते मुगल साम्राज्य का फायदा उठाया।
- बंदा बहादुर सिंह जैसे शासकों के नेतृत्व में सिखों ने खुद को सैन्य संघों में संगठित किया और महाराजा रणजीत सिंह के अधीन सिख साम्राज्य की नींव रखी।
- क्षेत्रीय शक्तियों का उदय:
- मुगल काल के बाद बंगाल, अवध और हैदराबाद के नवाबों सहित विभिन्न क्षेत्रीय शक्तियाँ प्रभावशाली शक्तियों के रूप में उभरीं।
- इन क्षेत्रीय शक्तियों ने अपनी स्वायत्तता पर बल देने तथा अपने क्षेत्रों का विस्तार करने के लिये मुगलों के पतन का फायदा उठाया।
- उदाहरण के लिये बंगाल के नवाबों ने मुगल आधिपत्य को चुनौती देकर महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति हासिल की।
- यूरोपीय औपनिवेशिक शक्ति का हस्तक्षेप:
- मुगल साम्राज्य के पतन से यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों के लिये भारत के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण स्थापित करने का मार्ग भी प्रशस्त हो गया।
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिये राजनीतिक विखंडन एवं आर्थिक अस्थिरता का फायदा उठाया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन स्थापित हुआ।
निष्कर्ष:
मुगल साम्राज्य का पतन आर्थिक, प्रशासनिक, सैन्य और सामाजिक-धार्मिक कारकों से प्रभावित एक जटिल प्रक्रिया थी। इसके पतन से विभिन्न उत्तराधिकारी राज्यों के साथ यूरोपीय शक्तियों के लिये भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करने के अवसर मिले, जिससे आने वाले समय में भारतीय इतिहास की दिशा तय हुई।