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प्रश्न :
निर्णय निर्माण में नैतिकता एवं अभिक्षमता के बीच संबंधों का परीक्षण कीजिये। प्रशासनिक परिदृश्यों में नैतिक दुविधाओं को प्रभावी ढंग से किस प्रकार हल किया जा सकता है? (250 शब्द)
14 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- नैतिकता और अभिक्षमता का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- निर्णय निर्माण में नैतिकता और अभिक्षमता के बीच संबंधों का परीक्षण कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि प्रशासनिक परिदृश्यों में नैतिक दुविधाओं को प्रभावी ढंग से किस प्रकार हल किया जा सकता है।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
प्रशासनिक परिदृश्यों में निर्णय को प्रभावित करने में नैतिकता और अभिक्षमता दो महत्त्वपूर्ण घटक हैं। नैतिकता का आशय ऐसे नैतिक सिद्धांतों के समूह से है जिससे किसी व्यक्ति का व्यवहार या किसी गतिविधि के संचालन का नियंत्रण होता है, जबकि अभिक्षमता का आशय किसी व्यक्ति की किसी विशेष कार्य को करने की प्राकृतिक क्षमता या रूचि से है।
मुख्य भाग:
निर्णय लेने में नैतिकता और अभिक्षमता के बीच संबंध:
1. नैतिक दिशा-निर्देश और निर्णय लेना:
- आधार के रूप में नैतिकता: नैतिकता से ऐसे मूलभूत सिद्धांत मिलते हैं जिससे निर्णय लेने में सहायता मिलती है। इससे व्यक्तियों को अपने कार्यों के सही या गलत आधार पर आकलन करने में मार्गदर्शन मिलता है, जिससे सुनिश्चित होता है कि निर्णय, नैतिक मूल्यों के अनुरूप हों।
- विश्लेषण में अभिक्षमता की भूमिका: अभिक्षमता से जटिल परिस्थितियों के विश्लेषण में मदद मिलती है, जिससे प्रशासकों को विभिन्न दृष्टिकोणों से अपने निर्णयों के निहितार्थ को समझने में मदद मिलती है।
2. सत्यनिष्ठा और जवाबदेहिता:
- नैतिकता और सत्यनिष्ठा: नैतिकता से सत्यनिष्ठा को बढ़ावा मिलने के साथ यह सुनिश्चित होता है कि निर्णय, सिद्धांतों से समझौता किये बिना ईमानदारी और पारदर्शिता पर आधारित हों।
- जवाबदेहिता में अभिक्षमता की भूमिका: अभिक्षमता से यह सुनिश्चित होता है कि प्रशासक अपने निर्णयों के लिये जवाबदेह हों, क्योंकि इससे तर्कसंगत विश्लेषण के आधार पर अपनी पसंद को उचित ठहराने का कौशल प्राप्त होता है।
- उदाहरण: यदि किसी सिविल सेवक को जरूरतमंद समुदाय को संसाधन आवंटित करने का कार्य सौंपा गया है तो यह नैतिकता का उपयोग करते हुए, सिविल सेवक इस बात पर विचार करेंगे कि इसमें करुणा और निष्पक्षता को ध्यान में रखा जाए।
3. हितधारक दृष्टिकोण:
- हितधारकों के लिये नैतिक विचार: नैतिकता से प्रशासकों को जनता, कर्मचारियों एवं सरकार सहित विभिन्न हितधारकों के संबंध में अपने निर्णयों के प्रभाव पर विचार करने की प्रेरणा मिलती है।
- हितों को संतुलित करने में अभिक्षमता: अभिक्षमता से प्रशासकों को हितधारकों के परस्पर विरोधी हितों को संतुलित करने में मदद मिलती है और इससे यह सुनिश्चित होता है कि निर्णय निष्पक्ष एवं उचित हों।
4. नैतिक दुविधाएँ और निर्णय लेना:
- नैतिक दुविधाओं की पहचान करना: प्रशासकों को अक्सर ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है जहाँ नैतिक सिद्धांतों में टकराव होता है, जिससे नैतिक दुविधाएँ पैदा होती हैं। उदाहरण के लिये, कोई ऐसा निर्णय जो किसी एक हितधारक को लाभ पहुँचाता है वह दूसरे को नुकसान पहुँचा सकता है।
- संसाधन आवंटन: संसाधन सीमित होने पर निर्णयकर्त्ताओं को आवंटन को प्राथमिकता देने की नैतिक दुविधा का सामना करना पड़ता है। सभी हितधारकों की जरूरतों पर विचार करके और अधिकतम लोगों के अधिकतम कल्याण को सुनिश्चित करके,निर्णयकर्त्ता इस दुविधा को नैतिक रूप से हल कर सकते हैं।
- निर्णय लेने में योग्यता: अभिक्षमता प्रशासकों को कार्रवाई के विभिन्न तरीकों के परिणामों को समझने में सक्षम बनाती है और इससे ऐसे विकल्प चुनने में सहायता मिलती है जो नैतिक सिद्धांतों के साथ समग्र सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देते हों।
प्रशासनिक परिदृश्यों में नैतिक दुविधाओं का समाधान:
- प्रशासनिक परिदृश्यों में नैतिक दुविधाओं को प्रभावी ढंग से हल करने के लिये एक ऐसे व्यवस्थित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिससे नैतिक सिद्धांतों को व्यावहारिक विचारों के साथ संतुलित किया जा सके। इसके लिये कई रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं:
1. नैतिक ढाँचा:
- उपयोगितावाद: यह अधिकतम लोगों के अधिकतम कल्याण पर केंद्रित है, जिससे प्रशासकों को उन निर्णयों को प्राथमिकता देने में मदद मिलती है जिनसे बहुसंख्यकों को लाभ होता है।
- उदाहरण: एक सरकारी अधिकारी को यह तय करना होगा कि ऐसी विकास परियोजना को मंज़ूरी दी जाए या नहीं जिससे नौकरियाँ तो सृजित होंगी लेकिन पर्यावरण को नुकसान पहुँच सकता है। उपयोगितावादी दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए, अधिकारी सबसे नैतिक निर्णय लेने के लिये पर्यावरणीय लागतों के संदर्भ में परियोजना के आर्थिक लाभों पर विचार करेंगे।
- डेनटोलॉजी: इसमें नैतिक कर्त्तव्यों एवं सिद्धांतों के पालन पर बल दिया जाता है, जिससे प्रशासकों को परिणामों की परवाह किये बिना नैतिक नियमों के अनुसार कार्य करने के लिये मार्गदर्शन मिलता है।
- उदाहरण: एक पुलिस अधिकारी को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है जिसमें एक संदिग्ध अपराध कबूल करता हो लेकिन वह अधिकारी से इसकी रिपोर्ट न करने के लिये कहता हो। डेनटोलॉजी दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए, अधिकारी विधि को बनाए रखने को प्राथमिकता देगा, भले ही इससे संदिग्ध को नुकसान हो।
2. हितधारक परामर्श:
- हितधारकों को शामिल करना: हितधारकों के साथ परामर्श करने से उनके दृष्टिकोण और चिंताओं को समझने में मदद मिलती है, जिससे सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिये जाते हैं।
- पारदर्शिता: निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बनाए रखने से विश्वास बढ़ता है, जिससे नैतिक संघर्षों की संभावना कम हो जाती है।
3. नैतिक नेतृत्व:
- उदाहरण स्थापित करना: नैतिक नेतृत्व से नैतिक व्यवहार हेतु उदाहरण स्थापित होते हैं जिससे अन्य लोग इसका पालन करने के लिये प्रेरित होते हैं तथा संगठन के भीतर नैतिकता की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
- व्हिसलब्लोइंग: जब कोई कर्मचारी किसी संगठन के भीतर अनैतिक प्रथाओं को उजागर करता है और उन्हें उचित अधिकारियों को रिपोर्ट करता है, तो इसे गलत कार्य को हल करने के क्रम में कार्रवाई करने की अभिक्षमता के साथ जोड़ा जाता है।
- निर्णय लेने की रूपरेखा: प्रशासकों को निर्णय लेने की रूपरेखा और दिशानिर्देश प्रदान करने से उन्हें नैतिक दुविधाओं से अधिक प्रभावी ढंग से निपटने में मदद मिल सकती है।
4. प्रशिक्षण और शिक्षा:
- नैतिक प्रशिक्षण: नैतिकता एवं निर्णय निर्माण के संबंध में नियमित प्रशिक्षण प्रदान करने से प्रशासकों की नैतिक मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ने के साथ उन्हें संतुलित करने की क्षमता बढ़ सकती है।
- केस अध्ययन: वास्तविक जीवन के मामले के अध्ययन का विश्लेषण करने से प्रशासकों को नैतिक दुविधाओं को पहचानने तथा हल करने के क्रम में कौशल विकसित करने में मदद मिलती है।
5. समीक्षा तंत्र:
- नैतिकता संबंधी समितियाँ: नैतिक समितियों के गठन से जटिल नैतिक मुद्दों पर चर्चा करने और उन्हें हल करने के लिये एक मंच मिल सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि निर्णय नैतिक रूप से सही हों।
- ऑडिट और मूल्यांकन: नियमित ऑडिट और निर्णयों के मूल्यांकन से किसी भी नैतिक अवहेलना की पहचान करने तथा उसे सुधारने में मदद मिल सकती है।
निष्कर्ष:
निर्णय लेने में नैतिकता और अभिक्षमता के बीच परस्पर संबंध होता है, नैतिकता से प्रभावी निर्णय लेने के लिये आवश्यक व्यावहारिक विश्लेषण को सक्षम करने के क्रम में नैतिक आधार मिलता है। प्रशासनिक परिदृश्यों में नैतिक दुविधाओं को हल करने के लिये नैतिक ढाँचे के साथ हितधारक परामर्श, नैतिक नेतृत्व, प्रशिक्षण एवं समीक्षा तंत्र के संयोजन की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्णय नैतिक रूप से सुदृढ़ और व्यावहारिक रूप से व्यवहार्य हों।
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