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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की वर्तमान वित्तीय स्थिति क्या है? अपने स्तर पर राजस्व के सृजन में PRIs के समक्ष आने वाली बाधाओं का विश्लेषण करते हुए इनकी वित्तीय स्वायत्तता को मज़बूत करने के उपाय बताइये। (250 शब्द)

    12 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • देश में स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने वाले भारतीय संविधान के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारत में पंचायती राज संस्थानों (PRIs) की वर्तमान वित्तीय स्थिति पर चर्चा कीजिये।
    • आंतरिक राजस्व उत्पन्न करने में PRIs के समक्ष आने वाली बाधाओं का विश्लेषण कीजिये।
    • इनकी वित्तीय स्वायत्तता को मज़बूत करने के उपाय बताइये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा भारत में स्थानीय निकायों को राजकोषीय हस्तांतरण तथा राजस्व सृजन सहित स्वशासन हेतु सशक्त बनाया गया है। केंद्रीय अधिनियम की रूपरेखा पर विभिन्न राज्यों के पंचायती राज अधिनियमों द्वारा कराधान एवं संग्रह के प्रावधान किये गए। इन अधिनियमों के प्रावधानों के आधार पर पंचायतों ने अपने स्वयं के संसाधन सृजित करने के अधिकतम प्रयास किये।

    मुख्य भाग:

    पंचायती राज संस्थाओं के वित्त की वर्तमान स्थिति:

    • राजस्व संबंधी आँकड़े:
      • RBI के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में पंचायतों ने कुल 35,354 करोड़ रुपए का राजस्व दर्ज किया ।
      • हालाँकि, उनके स्वयं के कर राजस्व से केवल 737 करोड़ रुपए उत्पन्न हुए, जो पेशे और व्यापार पर कर, भूमि राजस्व, स्टांप एवं पंजीकरण शुल्क, संपत्ति कर तथा सेवा कर के माध्यम से अर्जित हुए।
      • गैर-कर राजस्व 1,494 करोड़ रुपए रहा, जो मुख्य रूप से ब्याज भुगतान और पंचायती राज कार्यक्रमों से प्राप्त हुआ।
      • उल्लेखनीय है कि पंचायतों को केंद्र सरकार से 24,699 करोड़ रुपए और राज्य सरकारों से 8,148 करोड़ रुपए का अनुदान प्राप्त हुआ।
    • राजस्व प्रति पंचायत:
      • औसतन प्रत्येक पंचायत ने अपने स्वयं के कर राजस्व से केवल 21,000 रुपए और गैर-कर राजस्व से 73,000 रुपए अर्जित किये।
      • इसके विपरीत, केंद्र सरकार से प्राप्त अनुदान प्रति पंचायत लगभग 17 लाख रुपए रहा, जबकि राज्य सरकार का अनुदान प्रति पंचायत 3.25 लाख रुपए से अधिक रहा।
    • राज्य राजस्व हिस्सेदारी और अंतर-राज्य असमानताएँ:
      • संबद्ध राज्य के राजस्व में पंचायतों की हिस्सेदारी न्यूनतम बनी हुई है।
        • उदाहरण के लिये, आंध्र प्रदेश में पंचायतों की राजस्व प्राप्तियाँ राज्य के स्वयं के राजस्व का केवल 0.1% है, जबकि उत्तर प्रदेश में यह 2.5% है जो भारत के सभी राज्यों में सर्वाधिक है।
      • प्रति पंचायत अर्जित औसत राजस्व के संबंध में राज्यों में व्यापक भिन्नताएँ मौजूद हैं।
        • केरल एवं पश्चिम बंगाल क्रमशः 60 लाख रुपए और 57 लाख रुपए प्रति पंचायत के औसत राजस्व के साथ सबसे आगे हैं।
        • असम, बिहार, कर्नाटक, ओडिशा, सिक्किम और तमिलनाडु में प्रति पंचायत राजस्व 30 लाख रुपए से अधिक था।
        • आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मिज़ोरम, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों का औसत राजस्व प्रति पंचायत 6 लाख रुपए से भी कम है।

    आंतरिक राजस्व उत्पन्न करने में PRIs के समक्ष चुनौतियाँ:

    • अनुदान पर अत्यधिक निर्भरता:
      • पंचायतें करों के माध्यम से राजस्व का केवल 1% अर्जित करती हैं, शेष भाग राज्य और केंद्र से अनुदान के रूप में जुटाया जाता है। यह विशेष रूप से बताता है कि इन्हें 80% राजस्व केंद्र से और 15% राज्यों से प्राप्त होता है।
    • राज्यों के बीच भिन्नताएँ:
      • कई राज्यों में ग्राम पंचायतों के पास कर संग्रहण का अधिकार नहीं है, जबकि कई अन्य राज्यों में मध्यवर्ती और ज़िला पंचायतों को कर संग्रहण की ज़िम्मेदारी नहीं सौंपी गई है।
      • समान हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिये संपूर्ण त्रि-स्तरीय पंचायतों हेतु राजस्व के अपने स्रोत (Own Source of Revenue- OSR) का सीमांकन करने की आवश्यकता है।
    • स्वयं की आय सृजित करने के प्रति सामान्य अरुचि:
      • केंद्रीय वित्त आयोग (CFC) के अनुदान के आवंटन में वृद्धि के साथ, पंचायतें OSR के संग्रहण में कम रुचि दिखा रही हैं।
      • 10वें एवं 11वें CFC से ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिये आवंटन क्रमशः 4,380 करोड़ रुपए और 8,000 करोड़ रुपए रहा था।
        • लेकिन 14वें एवं 15वें CFC द्वारा प्रदत्त अनुदान में भारी वृद्धि हुई जहाँ यह क्रमशः 2,00,202 करोड़ रुपए और 2,80,733 करोड़ रुपए रहा।
        • वर्ष 2018-19 में 3,12,075 लाख रुपए का कर संग्रहण हुआ जो वर्ष 2021-2022 में घटकर 2,71,386 लाख रुपए हो गया। इसी अवधि में संग्रहित गैर -कर राजस्व 2,33,863 लाख रुपए और 2,09,864 लाख रुपए रहा।
    • राज्य सरकारों द्वारा प्रोत्साहन :
      • कुछ राज्यों ने संगत अनुदान प्रदान करने के माध्यम से प्रोत्साहन (incentivisation) की नीति अपनाई है, लेकिन इसे बहुत कम लागू किया गया। पंचायतों को डिफॉल्टरों को दंडित करने की भी कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनका मानना है कि OSR को एक आय के रूप में नहीं माना गया है जो पंचायत वित्त से जुड़ा हुआ है।
    • फ्रीबीज़ कल्चर’ के कारण बाधाएँ:
      • राजस्व बढ़ाने के हर सक्षम कारक के बावजूद, पंचायतें संसाधन जुटाने में कई बाधाओं का सामना करती हैं; समाज में व्याप्त मुफ्तखोरी की संस्कृति (Freebies Culture) करों के भुगतान में व्याप्त उदासीनता का कारण है। निर्वाचित प्रतिनिधियों को लगता है कि कर अधिरोपण से उनकी लोकप्रियता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

    PRIs के वित्तीय संसाधनों को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक सुझाव क्या हैं?

    • विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट:
      • पंचायती राज मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट राज्य अधिनियमों के विवरण पर विस्तार से चर्चा करती है जिसमें कर और गैर-कर राजस्व शामिल किया गया है जिसे पंचायतों द्वारा संग्रहित एवं उपयोग किया जा सकता है।
      • संपत्ति कर, भूमि राजस्व पर उपकर, अतिरिक्त स्टांप शुल्क पर अधिभार, टोल, पेशे पर कर, विज्ञापन, जल एवं स्वच्छता और प्रकाश व्यवस्था के लिये उपयोगकर्त्ता शुल्क ऐसे प्रमुख OSRs हैं जहाँ पंचायतें अधिकतम आय अर्जित कर सकती हैं।
    • अनुकूल वातावरण की स्थापना करना:
      • पंचायतों से अपेक्षा की जाती है कि वे उचित वित्तीय विनियमनों को लागू कर कराधान के लिये अनुकूल वातावरण स्थापित करें। इसमें कर एवं गैर-कर आधारों के संबंध में निर्णय लेना, उनकी दरें निर्धारित करना, आवधिक संशोधन के लिये प्रावधान स्थापित करना, छूट क्षेत्रों को परिभाषित करना और संग्रह के लिये प्रभावी कर प्रबंधन एवं प्रवर्तन कानून बनाना शामिल है।
    • गैर-कर राजस्व के लिये स्रोतों का विविधीकरण:
      • गैर-कर राजस्व की विशाल संभावनाओं में शुल्क, किराया और निवेश बिक्री से प्राप्त आय तथा किराया प्रभार (hires charges) एवं प्राप्तियाँ शामिल हैं। ऐसी नवोन्मेषी परियोजनाएँ भी हैं जो OSR सृजित कर सकती हैं।
      • इसमें ग्रामीण व्यापार केंद्रों,नवोन्मेषी वाणिज्यिक उद्यमों, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं, कार्बन क्रेडिट, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) निधि और दान शामिल हैं।
    • स्थानीय संसाधनों का लाभ उठाना:
      • राजस्व सृजन के लिये स्थानीय संसाधनों का लाभ उठाकर ज़मीनी स्तर पर आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और सतत् विकास को बढ़ावा देने में ग्राम सभाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
        • वे कृषि और पर्यटन से लेकर लघु-स्तरीय उद्योगों तक की राजस्व-सृजन पहलों के योजना निर्माण, निर्णयन एवं कार्यान्वयन में संलग्न हो सकते हैं।
        • उनके पास कर, शुल्क एवं लेवी अधिरोपित करने और प्राप्त धन को स्थानीय विकास परियोजनाओं, सार्वजनिक सेवाओं तथा सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों की ओर निर्देशित करने का प्राधिकार है।
    • भागीदारी को बढ़ावा देना:
      • पारदर्शी वित्तीय प्रबंधन और समावेशी भागीदारी के माध्यम से, ग्राम सभाएँ जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं तथा सामुदायिक भरोसे को बढ़ावा देती हैं; इस प्रकार, अंततः ग्रामों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र एवं प्रत्यास्थी बनने के लिये सशक्त करती हैं।
      • इस प्रकार, ग्राम सभाओं को उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और राजस्व सृजन प्रयासों की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये बाहरी हितधारकों के साथ भागीदारी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • RBI की सिफारिशें:
      • RBI वृहत विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देने और स्थानीय नेताओं एवं अधिकारियों को सशक्त करने का सुझाव देता है। यह पंचायती राज की वित्तीय स्वायत्तता एवं संवहनीयता को बढ़ाने के उपायों की वकालत करता है।
      • रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया है कि PRIs पारदर्शी बजटिंग, राजकोषीय अनुशासन, विकास प्राथमिकता में सामुदायिक भागीदारी, कर्मचारी प्रशिक्षण और कठोर निगरानी एवं मूल्यांकन को अपनाकर संसाधन उपयोग को बेहतर बना सकते हैं।
    • निर्वाचित प्रतिनिधियों और आम लोगों को शिक्षित करना:
      • पंचायतों को स्वशासी संस्थाओं के रूप में विकसित करने के लिये राजस्व जुटाने के महत्त्व पर निर्वाचित प्रतिनिधियों और आम लोगों को शिक्षित करने की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष:

    अंततः अनुदान निर्भरता सिंड्रोम का उचित समय पर समाधान करना होगा ताकि पंचायतें अपने संसाधनों पर संचालित हो सकें। पंचायतें ऐसी स्थिति तभी प्राप्त कर सकती हैं जब शासन के सभी स्तरों (जिसमें राज्य एवं केंद्रीय स्तर भी शामिल हैं) पर समर्पित प्रयास हों।

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