क्या आपको लगता है कि "राजनीति" एवं "नैतिकता" असंगत हैं? उदाहरण देते हुए तर्क सहित स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रश्न के संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- नैतिकता एवं राजनीति के बीच असंगत दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिये।
- नैतिकता एवं राजनीति के बीच अभिन्न संबंध पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
नैतिकता एवं राजनीति के बीच संबंध इतिहास में बहस और अन्वेषण का विषय रहा है, विभिन्न दृष्टिकोण इस जटिल परस्पर क्रिया के बारे में हमारी समझ को आकार देते हैं।
मुख्य भाग:
पुनर्जागरण काल के राजनीतिक दार्शनिक निकोलो मैकियावेली, नैतिकता एवं राजनीति पर अपने व्यावहारिक दृष्टिकोण के लिये प्रसिद्ध हैं। अपनी कृति, "द प्रिंस" में मैकियावेली ने शासन के लिये एक व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है जिसमें नैतिक दृष्टिकोण की तुलना में राजनीतिक औचित्य एवं सत्ता को बनाए रखने को प्राथमिकता दी गई है।
नैतिकता और राजनीति के बीच संबंध पर मैकियावेली का दृष्टिकोण:
- नैतिकता और राजनीति का पृथक्करण: मैकियावेली ने तर्क दिया कि राजनीति को पारंपरिक नैतिक मानदंडों एवं धार्मिक सिद्धांतों से अलग किया जाना चाहिये। उनका मानना था कि शासकों को अपने अधिकारों के संरक्षण के साथ राज्य की स्थिरता को प्राथमिकता देनी चाहिये, भले ही इसके लिये नैतिक रूप से संदिग्ध रणनीति का सहारा लेना पड़े।
- नैतिक सापेक्षवाद: मैकियावेली के लेखन नैतिक सापेक्षवाद को दर्शाते हैं, जिसमें नैतिक निर्णय राजनीतिक वास्तविकताओं के संदर्भ पर निर्भर होते हैं। उन्होंने कहा कि किसी कार्य की नैतिकता का मूल्यांकन उसके आंतरिक नैतिक मूल्य के बजाय उसके परिणामों के आधार पर किया जाना चाहिये।
- व्यावहारिकता और वास्तविक राजनीति: मैकियावेली ने राजनीति के लिये एक व्यावहारिक दृष्टिकोण की वकालत की, जिसमें नैतिक रूप से सही होने के बजाय कार्य की विशिष्टता पर बल दिया गया। इन्होंने यथार्थवाद के महत्त्व पर बल देते हुए कहा कि राजनेताओं को सत्ता की गतिशीलता की जटिलताओं से निपटने तथा अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये और अनुकूलनीय होना चाहिये।
- सदाचारी शासक: मैकियावेली ने अक्सर नैतिकता पर अधिक बल नहीं दिया है लेकिन उन्होंने राजनीतिक नेतृत्व में कुछ गुणों के महत्त्व को पहचाना है। उनका मानना था कि प्रभावी ढंग से शासन करने और नियंत्रण बनाए रखने के लिये शासकों को साहस एवं चालाकी जैसे गुणों को अपनाने का प्रयास करना चाहिये।
इसके विपरीत महात्मा गांधी नैतिकता एवं राजनीति के बीच अविभाज्य संबंध में दृढ़ता से विश्वास करते थे। राजनीति के प्रति उनका दृष्टिकोण नैतिक सिद्धांतों में गहराई से निहित था और उन्होंने शासन एवं सार्वजनिक जीवन के सभी पहलुओं में नैतिक मूल्यों के महत्त्व पर बल दिया।
नैतिकता और राजनीति पर गांधी का दृष्टिकोण:
- अभिन्न संबंध: गांधी जी नैतिकता और राजनीति को स्वाभाविक रूप से एक दूसरे से संबंधित मानते थे। उनका मानना था कि नैतिक विचारों से रहित राजनीति भ्रष्टाचार, अन्याय और शोषण को जन्म दे सकती है।
- सत्याग्रह: गांधी के अहिंसक प्रतिरोध या सत्याग्रह के दर्शन का केंद्र सत्य और अहिंसा का सिद्धांत था। उनका मानना था कि राजनीतिक संघर्षों में उत्पीड़न तथा अन्याय के बावजूद भी सत्य एवं अहिंसक साधनों के प्रति अटूट निष्ठा बनाए रखनी चाहिये।
- सेवक की भावना: राजनीति के प्रति गांधी का दृष्टिकोण सेवा भाव का था, जिसमें अपेक्षित था कि नेता व्यक्तिगत हितों या सत्ता से अधिक उन लोगों के कल्याण को प्राथमिकता दें जिनकी वे सेवा करते हैं। उनका मानना था कि राजनेताओं को विनम्र, निस्वार्थ एवं समाज के सबसे हाशिये पर रहने वाले सदस्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिये प्रतिबद्ध होना चाहिये।
- नैतिक शासन: गांधी ने शासन के विकेंद्रीकृत और सहभागी रूपों की वकालत की जो सत्य, न्याय एवं करुणा जैसे नैतिक मूल्यों पर केंद्रित हों। उन्होंने एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की जहाँ निर्णय लेना नैतिक विचारों द्वारा निर्देशित हो और जहाँ लोगों को अपनी नियति को आकार देने में आवाज उठाने का अधिकार हो।
- व्यक्तिगत ईमानदारी: गांधीजी ने राजनीतिक नेतृत्व में व्यक्तिगत ईमानदारी और नैतिक शुद्धता के महत्त्व पर बल दिया। उनका मानना था कि नेताओं को उदाहरण के तौर पर नेतृत्व करना चाहिये तथा उन मूल्यों को अपनाना चाहिये जिनका वे समर्थन करते हैं। गांधीजी के लिये सत्यनिष्ठा का अर्थ अपनी अंतरात्मा के साथ सद्भाव में रहना तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी नैतिक सिद्धांतों को बनाए रखना था।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, नैतिक विचार राजनीतिक कार्रवाई को निर्देशित करने तथा शासन को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि नैतिक शासन हेतु प्रयास के क्रम में संवाद और नैतिक सिद्धांतों के साथ जुड़ाव की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राजनीतिक प्रक्रियाएँ तथा परिणाम न्याय, निष्पक्षता एवं सामान्य कल्याण जैसे मूल्यों के साथ संरेखित हों।