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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में गहन औद्योगीकरण की अवधारणा एवं महत्त्व का परीक्षण करते हुए आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने में इससे संबंधित संभावित बाधाओं को रेखांकित कीजिये। (250 शब्द)

    06 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में गहन औद्योगीकरण का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • आर्थिक और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने में इसके महत्त्व तथा संभावित बाधाओं का परीक्षण कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    औद्योगीकरण का आशय आमतौर पर किसी क्षेत्र या देश में उद्योगों के विकास की प्रक्रिया है वहीं गहन औद्योगीकरण का तात्पर्य संवहनीय एवं समावेशी विकास पर बल देते हुए औद्योगीकरण को बढ़ावा देना है।

    इसमें उद्योगों को उन्नत प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकृत करना, नवाचार को बढ़ावा देना और पर्यावरणीय एवं सामाजिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना शामिल है।

    मुख्य भाग:

    भारत में गहन औद्योगीकरण की आवश्यकता:

    • अप्रभावी विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता: विनिर्माण क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिये हाई-टेक अवसंरचना और कुशल जनशक्ति बेहद महत्त्वपूर्ण है। लेकिन भारत को प्रमुख शहरों के बाहर सीमित दूरसंचार सुविधाओं एवं घाटे में चल रहे राज्य बिजली बोर्डों जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
      • भारत में औद्योगिक नीतियाँ विनिर्माण क्षेत्र को आगे बढ़ाने में विफल रही हैं, जिसका सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान वर्ष 1991 से लगभग 16% के स्तर पर गतिहीन बना हुआ है।
    • पर्याप्त परिवहन सुविधाओं का अभाव: अति भाराक्रांत रेल नेटवर्क और विभिन्न समस्याओं से घिरे सड़क परिवहन के साथ भारत की परिवहन अवसंरचना दबाव में है। ये चुनौतियाँ माल की कुशल आवाजाही में बाधा डालती हैं और विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित करती हैं।
    • MSME क्षेत्र की बाधाएँ: मध्यम और बड़े पैमाने के उद्योगों की तुलना में MSME क्षेत्र को ऋण प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। MSME क्षेत्र के विकास को समर्थन देने के लिये इस पूर्वाग्रह में सुधार की आवश्यकता है, जो भारत के आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • आयात पर उच्च निर्भरता: भारत अभी भी परिवहन उपकरण, मशीनरी, लौह एवं इस्पात, रसायन और उर्वरक सहित विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिये विदेशी आयात पर निर्भर है। यह निर्भरता आयात प्रतिस्थापन रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
      • भारत में उपभोक्ता वस्तुओं का कुल औद्योगिक उत्पादन 38% योगदान देता है।
    • प्रभावी औद्योगिक नीति सुधारों का अभाव: ऐतिहासिक रूप से, औद्योगिक स्थानों को प्रायः लागत-प्रभावशीलता के बजाय राजनीतिक कारणों से चुना गया। इसके अतिरिक्त, आरंभिक पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करने से लालफीताशाही एवं श्रम-प्रबंधन संबंधी मुद्दों के कारण अक्षमता एवं हानि की स्थिति बनी, जिससे उन्हें बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण सरकारी व्यय की आवश्यकता हुई।
    • निवेश का चयनात्मक प्रवाह: उदारीकरण के बाद निवेश के वर्तमान चरण में, जबकि कुछ उद्योगों में पर्याप्त निवेश आ रहा है, कई बुनियादी एवं रणनीतिक उद्योगों जैसे- इंजीनियरिंग, बिजली, मशीन टूल्स आदि में निवेश की धीमी गति चिंता का विषय है।
    • विषम उपभोग-प्रेरित विकास: व्यापार नीति सुधार पर अधिक बल दिये बिना आंतरिक उदारीकरण पर ध्यान केंद्रित करने के परिणामस्वरूप ‘निवेश’ या ‘निर्यात-प्रेरित विकास’ के बजाय ‘उपभोग-आधारित विकास’ की राह खुली।

    भारत के औद्योगीकरण की संभावित चुनौतियाँ:

    • महामारी के बाद भारत का विकृत आर्थिक परिदृश्य: भारत ने महामारी से अपेक्षाकृत तेज़ी से उबरते हुए अपनी विकास गति को बनाए रखा है। हालाँकि यह ‘समय-पूर्व विऔद्योगीकरण’ (premature deindustrialization) का अनुभव कर रहा है, जहाँ उच्च विकास से एक छोटे से अल्पसंख्यक वर्ग को लाभ होता है, जिससे मौजूदा असमानताएँ बढ़ जाती हैं।
      • जहाँ महँगी कारें काफी अधिक मात्रा में बिक रही हैं, वहीं आम लोग उच्च खाद्य कीमतों से जूझ रहे हैं, जो भारत के विकास मॉडल में संरचनात्मक खामियों को उजागर करता है।
    • सेवा-आधारित विकास की कमियाँ: हालाँकि 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध से सेवा-संचालित विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है, लेकिन इसने कृषि से श्रम को उतने प्रभावी ढंग से अवशोषित नहीं किया है जितना कि विनिर्माण ने किया।
      • इसके अतिरिक्त, सेवा क्षेत्र को अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है, जिससे गहरी असमानताएँ पैदा होती हैं। उच्च शिक्षा में निवेश ने बुनियादी एवं प्रारंभिक शिक्षा की उपेक्षा में योगदान किया है, जिससे असमानताएँ और बढ़ गई हैं।
    • शैक्षिक असमानताएँ और औद्योगिक गतिहीनता: भारत की शिक्षा प्रणाली गहरी असमानताओं को परिलक्षित करती है, जहाँ मानव पूंजी में निवेश अभिजात वर्ग के पक्ष में झुका हुआ है। इसके कारण बड़े पैमाने पर उद्यमशीलत उद्यमों का अभाव है जो चीन से उलट स्थिति है।
      • स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा की भिन्न गुणवत्ता असमान श्रम बाज़ार परिणामों में योगदान करती है, जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों तथा छोटे शहरों के पहली पीढ़ी के स्नातकों को प्रभावित करती है।
    • औद्योगीकरण में सांस्कृतिक कारक: औद्योगीकरण के लिये एक प्रमुख सांस्कृतिक शर्त है जन शिक्षा, जिसका भारत में अभाव है। जोएल मोकिर (Joel Mokyr) का मानना है कि तकनीकी प्रगति एवं विकास के लिये उपयोगी ज्ञान का उदय महत्त्वपूर्ण है।
      • भारत में विनिर्माण के लिये आवश्यक कुछ व्यवसायों का सांस्कृतिक अवमूल्यन, साथ ही व्यावसायिक कौशल का अवमूल्यन, जैविक नवाचार और औद्योगिक प्रगति में बाधा उत्पन्न करता है।
    • रोज़गार सृजन में चुनौतियाँ: भारत का श्रम बाज़ार निम्न वेतन वाली और अनौपचारिक नौकरियों से चिह्नित होता है। अधिकांश MSMEs असंगठित क्षेत्र में हैं, जिनमें रोज़गार सृजन के लिये लचीलेपन का अभाव है। चीन का अनुभव रोज़गार सृजन के लिये विनिर्माण क्षेत्र में ‘स्केल’ या पैमाने के महत्त्व को रेखांकित करता है।
      • भारत के 63 मिलियन MSMEs में से 99% से अधिक असंगठित क्षेत्र में हैं जिनमें उत्पादक रोज़गार सृजन के लिये बहुत कम लचीलापन है। उनका निर्वाह अस्तित्त्व नौकरियों या पैमाने के लिये कोई नुस्खा नहीं है। चीन का उदाहरण अधिक से अधिक नौकरियों के लिये विनिर्माण में पैमाने के प्रभाव का सुझाव देता है।
        • नियमित एवं व्यापक डेटा के अभाव में मेक-इन-इंडिया (MII) के प्रभाव का आकलन करना चुनौतीपूर्ण है। जबकि उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI) उच्च-स्तरीय विनिर्माण को लाभ पहुँचाती है, पारंपरिक विनिर्माण क्षेत्र आम लोगों के मध्य रोज़गार सृजन के लिये महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं।
    • संरक्षणवाद की चिंताएँ और अतीत के अनुभव: 1970 और 1980 के दशक में संरक्षणवाद के पिछले अनुभवों ने कमी और रेंट-सीकिंग (rent-seeking) व्यवहार का रास्ता खोला, जिससे उपभोक्ताओं की तुलना में उत्पादकों को अधिक लाभ प्राप्त हुआ। ऐसी आशंकाएँ हैं कि MII के तहत संरक्षणवादी उपायों के सदृश परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
      • वर्ष 2011 की राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (National Manufacturing Policy- NMP) ने विनिर्माण क्षेत्र में अवसंरचना, विनियमन एवं जनशक्ति में व्याप्त बाधाओं को उजागर किया। MII का लक्ष्य NMP के उद्देश्यों के आधार पर विनिर्माण के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान को 25% तक बढ़ाना और 100 मिलियन नौकरियाँ पैदा करना है, लेकिन स्थिति निराशाजनक बनी हुई है।

    भारत में गहन औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिये सुझाव:

    • गहन औद्योगीकरण के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण: भारत को अपने समाज को मौलिक रूप से बदलने के लिये गहन औद्योगीकरण की आवश्यकता है, न कि केवल सेवा क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने की। इसमें व्यावसायिक कौशल और कारीगर ज्ञान के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव के साथ-साथ श्रम, उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी का पुनर्मूल्यांकन करना शामिल होगा।
      • गहन औद्योगीकरण न केवल आर्थिक विकास को गति देगा बल्कि जाति और वर्ग में निहित सामाजिक विभाजन को भी संबोधित करेगा।
    • नई औद्योगिक नीति (NIP '23) की भूमिका: NIP का मसौदा (जो फिलहाल रोक कर रखा गया है) उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना को पूरकता प्रदान करने का लक्ष्य रखता है। इसका उद्देश्य निवेश आकर्षित करना, दक्षता बढ़ाना और भारतीय निर्माताओं को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाना है (विशेष रूप से खिलौने, परिधान एवं जूते जैसे क्षेत्रों में)।
      • इसे संबंधित राज्य सरकारों की स्थानीय आधारित आकांक्षाओं और विनिर्माण विशेषज्ञता का अनुसरण करते हुए शामिल एवं कार्यान्वित किया जाना चाहिये।
    • समावेशी रोज़गार सृजन के लिये औद्योगिक नीति: भारत जैसे श्रम-प्रचुर देश में, औद्योगिक नीति को आम लोगों, विशेष रूप से महिलाओं के लिये रोज़गार सृजन को प्राथमिकता देनी चाहिये। उत्पादक रोज़गार सृजित करने और ‘स्केल’ हासिल करने के लिये श्रम-गहन विनिर्माण महत्त्वपूर्ण है।
    • नीति निर्माण में डेटा का महत्त्व: आर्थिक नीति निर्माण के लिये डेटा व्याख्या और नैतिक दिशा-निर्देश दोनों की आवश्यकता होती है। PLI के प्रभाव पर उच्च-आवृत्ति डेटा के अभाव में नीति निर्माताओं को औद्योगिक नीति को प्रभावी ढंग से आकार देने के लिये व्यापक सिद्धांतों पर भरोसा करना चाहिये।
    • आर्थिक विकास में IR 4.0 को एकीकृत करना: इसकी विशेषता यह है कि डिजिटल, भौतिक एवं जैविक दुनिया के बीच की सीमाओं को धुंँधला करने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है और यह डेटा द्वारा संचालित होता है।
      • प्रमुख तकनीकों में क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डेटा, स्वायत्त रोबोट, साइबर सुरक्षा, सिमुलेशन, एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) शामिल हैं।
    • आर्थिक विकास रणनीतियों पर पुनर्विचार करना: कुछ अर्थशास्त्री विनिर्माण-आधारित विकास से उच्च-कौशल, सेवा-संचालित विकास की ओर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव देते हैं।
      • इसके साथ ही, इस दृष्टिकोण को वर्तमान औद्योगिक नीतियों के साथ तालमेल में होना चाहिये ताकि इसकी प्रभावशीलता का प्रभावी ढंग से दोहन किया जा सके।

    निष्कर्ष:

    भारत में गहन औद्योगीकरण से स्थायी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, रोज़गार के अवसर सृजित करने, तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देने तथा अपने नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार करने की क्षमता है। हालाँकि पर्यावरणीय स्थिरता और समावेशी विकास जैसी चुनौतियों का समाधान करते हुए इसके पूर्ण लाभों को प्राप्त करने के लिये सावधानीपूर्वक योजना, नीति समर्थन एवं बुनियादी ढाँचे तथा मानव पूंजी में निवेश की आवश्यकता है।

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