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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (ECCE) की वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन कीजिये। देश में बच्चों का समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने हेतु आप कौन से सुधार सुझाएँगे? (250 शब्द)

    04 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर की शुरुआत परिचय के साथ कीजिये, जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करता है।
    • भारत में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) की वर्तमान स्थिति पर चर्चा कीजिये।
    • देश में बच्चों के लिये समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने के लिये सुधारों को सुझाइये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) में दशकों से न्यूनतम निवेश एवं न्यूनतम अन्वेषण दोनों ही रहा है, बावजूद इसके कि यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भारत के बच्चे आर्थिक निवेश के लायक हैं जबकि देश का ध्यान जनसांख्यिकीय लाभांश, शिक्षा एवं नौकरियों पर है।

    मुख्य भाग:

    ECCE की वर्तमान स्थिति:

    • निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा: संविधान राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (DPSP) के अनुच्छेद 45 के तहत निम्नलिखित प्रावधान करता है कि, "राज्य संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बच्चों के लिये चौदह वर्ष की उम्र पूरी होने तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा।"
    • सकल नामांकन अनुपात (GER) में सुधार: भारतीय विकासशील राज्य ने शिक्षा के लिये माता-पिता की आकांक्षाओं को बढ़ावा दिया है और उन्हें पूर्ण किया है, प्राथमिक स्तर पर 100% GER को पार करते हुए, पहली पहुँच को लक्षित किया है।
    • सीखने के परिणामों में दुविधाएँ: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) (75वें दौर) के डेटा और NCERT (राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण, 2023) के सीखने के परिणामों के अध्ययन से पता चलता है कि भारत के बच्चे प्राथमिक स्तर पर नहीं सीख रहे हैं तथा जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं उच्च स्तर पर, वे पाठ्यक्रम से निपटने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
    • छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये बढ़ाया गया फोकस: सरकार ने जीवन चक्र में पहले से भी ध्यान केंद्रित करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, यानी छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये, ‘संख्यात्मक ज्ञान के साथ, पठन में निपुणता के लिये राष्ट्रीय पहल’ (NIPUN) मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता के लिये भारत मिशन एवं कार्यक्रम-पोषण भी पढ़ाई भी आँगनवाड़ी प्रणाली के माध्यम से ECCE गुणवत्ता में सुधार के लिये है।

    भारत में ECCE के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ:

    • किफायती: हालिया शोध के अनुसार, भारत में 3 से 17 वर्ष की आयु के एक बच्चे को निजी स्कूल में शिक्षित करने की कुल लागत 30 लाख रुपये है। इन खर्चों का वित्तीय बोझ ECCE में निवेश में बाधा डालता है।
      • NSSO की 75वें दौर की रिपोर्ट से पता चलता है कि लगभग 37 मिलियन बच्चों को सार्वजनिक या निजी विकल्पों की परवाह किये बिना किसी भी प्रकार की प्रारंभिक शिक्षा सेवा तक पहुँच नहीं है।
    • अभिगम्यता:
      • भौगोलिक स्थिति या पारंपरिक बाल्यावस्था प्रथाओं जैसे कारकों के कारण प्री-स्कूल और डेकेयर जैसे पारंपरिक प्रारंभिक शिक्षा प्रारूप सदैव सभी परिवारों के लिये सुलभ नहीं होते हैं। इसके अतिरिक्त भारत को अधिक कुशल प्रारंभिक शिक्षा, शिक्षकों और आवश्यक बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है।
    • उपलब्धता:
      • भारत में ECCE में सरकारी निवेश में वृद्धि हुई है, जिसमें डिजिटल लैब और बुनियादी ढाँचे की स्थापना भी शामिल है, लेकिन चुनौतियाँ बरकरार हैं। देश में ECCE नियामक अंतराल, विखंडन और लक्षित पहल की आवश्यकता से चिह्नित है, जो वृद्धि के अवसरों को रेखांकित करता है।
    • माता-पिता की कम व्यस्तता:
      • माता-पिता बच्चे के पहले शिक्षक होते हैं, वे अपने बच्चे को कई तरीकों से सीखने में मदद कर सकते हैं, जिसमें उनका पढ़ना, लिखना और गिनना सिखाना आदि शामिल है। वे घर पर या बाहर समुदाय में एक साथ समय बिताकर सामाजिक कौशल विकसित करने में भी मदद कर सकते हैं।
      • उन्हें प्रायः अपने बच्चों की शिक्षा में शामिल होने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे कि कार्यात्मक शेड्यूल जो काम से ज़्यादा समय तक दूर रहने की अनुमति नहीं देता है; परिवहन की कमी; न्यूनतम साक्षरता कौशल; यह जानकारी में नहीं है कि प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा कार्यक्रमों के बारे में जानकारी कहाँ या कैसे प्राप्त करेंगे।
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम, (RTE) 2009 में खामियाँ:
      • वर्ष 2002 में पारित 86वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 21A के तहत प्राथमिक शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बना दिया। इस संशोधन का उद्देश्य छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना था।
      • इस अधिनियम में 6 वर्ष तक के आयु वर्ग के बच्चों के लिये मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता एवं प्रारंभिक बाल्यावस्था की देखभाल एवं शिक्षा के लिये पर्याप्त प्रावधान शामिल नहीं थे।
    • न्यूनतम सार्वजनिक व्यय:
      • इंचियोन घोषणा, जिस पर भारत एक हस्ताक्षरकर्त्ता है, से यह उम्मीद है कि सदस्य देश इस घोषणा के SDG-4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) को प्राप्त करने के लिये अपने सकल घरेलू उत्पाद का 4-6% शिक्षा पर व्यय करेंगे।
      • केंद्रीय बजट, 2024 का बजट शिक्षा के लिये सकल घरेलू उत्पाद का केवल 2.9% आवंटित करता है, जो वैश्विक औसत 4.7% से काफी कम है।

    ECCE में सुधार के लिये कुछ सुझाव:

    • NEP, 2020 के अधिदेश को प्रभावी ढंग से लागू करना: NEP, 2020 के अनुसार, बच्चे के मस्तिष्क का 85% से अधिक संचयी विकास पहले छह वर्षों में होता है, जो बच्चे के समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिये शुरुआती वर्षों में मस्तिष्क को सही देखभाल और उत्तेजना प्रदान करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
      • अद्यतन नीति में कहा गया है कि सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित घरों के बच्चों पर विशेष ध्यान देने के साथ, सभी छोटे बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाले ECCE तक राष्ट्रव्यापी पहुँच प्रदान करना तत्काल आवश्यक है।
        • मूलभूत शिक्षण पाठ्यक्रम: पाठ्यक्रम को 3 से 8 वर्ष की उम्र के लिये दो खंडों में विभाजित किया गया है: जिसमें 3-6 वर्ष की उम्र के ECCE छात्रों के लिये बुनियादी शिक्षण पाठ्यक्रम और 6 से 8 वर्ष की उम्र के प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिये कक्षा I तथा II शामिल है।
        • सार्वभौमिक पहुँच: 3 से 6 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को प्री-स्कूलों, आँगनबाड़ियों और बालवाटिका में मुफ्त, सुरक्षित एवं उच्च गुणवत्ता वाली ECCE तक पहुँच प्राप्त है।
        • प्रारंभिक कक्षा: प्रत्येक बच्चे को पाँच वर्ष की आयु से पहले "प्रारंभिक कक्षा" या "बालवाटिका" (कक्षा 1 से पहले) में स्थानांतरित कर दिया जाएगा, जहाँ ECCE-योग्य शिक्षक खेल-आधारित शिक्षा प्रदान करेंगे।
        • बहुआयामी शिक्षण: मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) के निर्माण के लिये खेल, गतिविधि और पूछताछ-आधारित शिक्षा पर भारी ज़ोर देने वाली एक लचीली शिक्षण पद्धति का निर्माण करना।
    • आँगनवाड़ी केंद्रों में निवेश: हालिया शोध केंद्र और राज्यों द्वारा आवंटन एवं व्यय को बढ़ाने का तथा कारण प्रदान करते हैं।
      • अंतरिम बजट, 2024 में सक्षम आँगनवाड़ियों के उन्नयन में तेज़ी लाने और आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (आशा) एवं सहायकों के लिये आयुष्मान भारत सेवाएँ प्रदान करने का वादा उत्साहजनक है।
    • डिजिटल पेनीट्रेशन का उपयोग:
      • आकर्षक और उम्र के अनुरूप सामग्री प्रदान करता है: स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिविटी की उपलब्धता उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। डिजिटल शिक्षण प्लेटफॉर्म विशेष रूप से प्रारंभिक शिक्षार्थियों के लिये गतिशील उपकरण के रूप में उभर रहे हैं।
        • ये एप्स आकर्षक और आयु-उपयुक्त सामग्री प्रदान करते हैं, जो युवा मस्तिष्कों के लिये एक समृद्ध शैक्षिक अनुभव सुनिश्चित करते हैं।
      • समावेशिता और पहुँच को बढ़ावा देता है: क्रियात्मक गतिविधियों, जीवंत दृश्यों और अनुरूप पाठ्यक्रम के माध्यम से, ये मंच आकार प्रदान करते हैं कि बच्चे अपनी सीखने की यात्रा कैसे शुरू करते हैं।
        • डिजिटलीकरण के माध्यम से पेश किये गए शिक्षण मॉड्यूल लागत-प्रभावशीलता एवं लगभग कहीं से भी सुविधाजनक पहुँच प्रदान करते हैं, जो विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के बच्चों और योग्य शिक्षकों तक पहुँचते हैं।
    • बुनियादी ढाँचे की कमियों को भरना: इसके लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे में निवेश के साथ-साथ स्थापित संस्थानों के माध्यम से व्यापक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम और कॅरियर प्रगति रणनीतियाँ प्रारंभ करने की आवश्यकता है।
      • इसके अतिरिक्त, ECCE को शुरुआती शिक्षार्थियों के लिये विशेष प्रयोगशालाएँ, आधुनिक शिक्षण केंद्र, खेल क्षेत्र, डिजिटल संसाधन और नवीन शिक्षण सामग्री बनाने से काफी लाभ होगा।
    • दृष्टिकोण में विविधता को पहचानना: प्रारंभिक बाल्यावस्था की शिक्षा बहुमुखी है, विभिन्न पारिवारिक परिस्थितियों और प्राथमिकताओं को समायोजित करती है। इसमें संभावनाओं की एक संपूर्ण शृंखला शामिल है, जिसमें घर पर देखभाल और शिक्षा प्रदान करने वाले माता-पिता से लेकर अनौपचारिक या औपचारिक खेल शिक्षण विधियों का लाभ उठाना शामिल है।
      • बड़े प्री-स्कूल सेटअप भी संरचित शिक्षण अनुभव प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दृष्टिकोणों में इस विविधता को पहचानना बच्चों की देखभाल और प्रारंभिक शिक्षा के लिये एक व्यापक एवं समावेशी ढाँचा बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

    निष्कर्ष:

    ECCE में निवेश भारत के भविष्य के लिये महत्त्वपूर्ण है, फिर भी इसे वर्षों से नज़रअंदाज़ किया गया है। ECCE के लिये हालिया बजटीय आवंटन एक सकारात्मक प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है, लेकिन बेहतर संज्ञानात्मक कौशल तथा शैक्षिक उपलब्धि जैसे लाभों को देखते हुए और भी अधिक की आवश्यकता है।

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