अंतरिक्ष नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भारत की उपलब्धियों एवं सबंधित चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत परिचय के साथ कीजिये, जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करता है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की उल्लेखनीय उपलब्धियों का वर्णन कीजिये।
- अंतरिक्ष नेतृत्व की खोज में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों को बताइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
जब भारत ने वर्ष 1960 के दशक में अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया, तो यह सीमित संसाधनों वाला एक विकासशील देश था, इसने अपने सामाजिक एवं आर्थिक विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये अंतरिक्ष का उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित किया। हालाँकि विगत दशक में अंतरिक्ष कार्यक्रम का विस्तार हुआ है और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने कई मील के पत्थर हासिल किये हैं जिसने वैश्विक आकर्षण एवं प्रशंसा प्राप्त की है।
मुख्य भाग:
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में कुछ हालिया मील के पत्थर शामिल हैं:
- चंद्रयान 3 मिशन: चंद्रयान-3 द्वारा चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की खोज भारत के अंतरिक्ष प्रयासों में एक नए युग का प्रतीक है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास भारत की सफल सॉफ्ट लैंडिंग राष्ट्रीय गौरव का क्षण है, जिससे देश चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के इतनी निकटता में अंतरिक्ष यान उतारने की उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करने वाला पहला देश बन गया है।
- मार्स ऑर्बिटर मिशन (मंगलयान): मिशन ने भारत को ग्रह पर पहुँचने वाला पहला एशियाई देश और रोस्कोस्मोस, नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) तथा यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद दुनिया का चौथा देश बना दिया।
- आदित्य-एल1: यह 1.5 मिलियन किलोमीटर की पर्याप्त दूरी से सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन है।
- प्रक्षेपण यान विकास कार्यक्रम: ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट प्रक्षेपण यान (GSLV), और अगली पीढ़ी के GSLV मार्क-III प्रक्षेपण यान मिशन प्रक्षेपण यान विकास कार्यक्रम का हिस्सा हैं।
- पृथ्वी अवलोकन कार्यक्रम: इसमें अत्याधुनिक भारतीय रिमोट सेंसिंग (IRS) उपग्रह जैसे रिसोर्ससैट, कार्टोसैट, ओशनसैट, रडार इमेजिंग सैटेलाइट, जियो-इमेजिंग सैटेलाइट और मौसम/जलवायु उपग्रह जैसे INSAT-3DR मिशन शामिल हैं।
- इन-स्पेस: इसे निजी कंपनियों को भारतीय अंतरिक्ष बुनियादी ढाँचे का उपयोग करने के लिये समान अवसर प्रदान करने के लिये लॉन्च किया गया था।
- न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): यह इसरो की वाणिज्यिक शाखा है और इसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय उद्यमों को उच्च-प्रौद्योगिकी अंतरिक्ष-संबंधित संचालन में शामिल होने में सक्षम बनाना है।
- इसरो के भावी अंतरिक्ष कार्यक्रम:
- चंद्रयान-4: चंद्र विकास के पथ पर आगे बढ़ना।
- LUPEX: लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन (LUPEX) मिशन, इसरो और JAXA (जापान) के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास, चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों का पता लगाने के लिये तैयार है।
- XPoSat (एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट): यह चरम स्थितियों में उज्ज्वल खगोलीय एक्स-रे स्रोतों की विभिन्न गतिशीलता का अध्ययन करने वाला भारत का पहला समर्पित पोलारिमेट्री मिशन है।
- NASA-ISRO SAR (NISAR): NISAR, 12 दिनों में संपूर्ण विश्व का मानचित्रण करेगा और पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तनों को समझने के लिये स्थानिक एवं अस्थायी रूप से सुसंगत डेटा प्रदान करेगा।
- गगनयान: इस मिशन का उद्देश्य मनुष्यों को अंतरिक्ष में भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना है।
- शुक्रयान 1: यह सूर्य से दूसरे ग्रह शुक्र पर एक ऑर्बिटर भेजने का एक नियोजित मिशन है।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम मिशन में प्रमुख चुनौतियाँ:
- सीमित बजट आवंटन: भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम अन्य प्रमुख अंतरिक्ष-संबंधी देशों की तुलना में अपेक्षाकृत मामूली बजट पर संचालित होता है।
- भारत का अंतरिक्ष बजट उसकी GDP का केवल 0.05% है। इसके विपरीत, अमेरिका अपने सकल घरेलू उत्पाद का 0.25% अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये आवंटित करता है।
- तकनीकी चुनौतियाँ: संचालित उपग्रहों के मामले में भारत विश्व स्तर पर 7वें नंबर पर है। यह शीर्ष दो अंतरिक्ष यात्रा शक्तियों अमेरिका और चीन से पीछे है।
- भारत प्रक्षेपण वाहनों, अंतरिक्ष यान और उपग्रहों के लिये महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये पश्चिम पर निर्भर है।
- व्यावसायीकरण और बाज़ार पहुँच: भारत की अंतरिक्ष विनिर्माण, मानव अंतरिक्ष परिवहन, अंतरिक्ष पर्यटन और उच्च ऊँचाई वाले प्लेटफॉर्मों में सीमित उपस्थिति है। विश्व अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 2.6% है।
- अंतरिक्ष नीति और विधान: अंतरिक्ष क्षेत्र की उभरती आवश्यकताओं को संबोधित करने वाली व्यापक अंतरिक्ष नीतियाँ और कानून विकसित करना महत्त्वपूर्ण है। अंतरिक्ष नीति के पारित होने में विलंब बड़ी परेशानी बनती जा रही है।
- भू-राजनीतिक पुनर्गठन: संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ आर्टेमिस समझौते में भारत की भागीदारी को बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में चीन के प्रतिकार के रूप में देखा गया है।
- सामाजिक लाभ के लिये अंतरिक्ष अनुप्रयोग: रिमोट सेंसिंग और उपग्रह संचार जैसे अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के सामाजिक लाभों को अधिकतम करने के लिये कृषि, आपदा प्रबंधन और पर्यावरण निगरानी जैसे विभिन्न क्षेत्रों के साथ प्रभावी एकीकरण की आवश्यकता है।
अग्रिम मार्ग के रूप में कई उपायों पर विचार किया जा सकता है:
- पर्याप्त निवेश: "मितव्ययी इंजीनियरिंग" से अधिक महत्त्वपूर्ण निवेश और महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं की ओर बदलाव आवश्यक है। बड़े मिशनों को आगे बढ़ाने के लिये विभाग को बजटीय आवंटन बढ़ाने हेतु विज्ञान समुदाय की ओर से निरंतर आग्रह किया गया है।
- मानव अंतरिक्ष उड़ान में विशेषज्ञता हासिल करना: भारत को मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों, अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण और चालक दल के मिशन के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करना चाहिये।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी: वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप, जहाँ अंतरिक्ष कार्यक्रमों में वाणिज्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, निजी क्षेत्र को शामिल करना महत्त्वपूर्ण है।
- भू-राजनीतिक संवाद: अंतरिक्ष तक विस्तृत महान शक्ति प्रतिद्वंद्विता के साथ, भारत को रणनीतिक रूप से संवाद और सहयोग करना चाहिये, विशेषतः चीन के साथ अपने संबंधों को ध्यान में रखते हुए।
- कानूनी ढाँचा: जैसे-जैसे अंतरिक्ष में गतिविधियाँ बढ़ती हैं, भारत को अंतरिक्ष व्यवसाय को विनियमित करने और बढ़ावा देने के लिये व्यापक घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की आवश्यकता होती है। उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये वैश्विक शासन सुधार आवश्यक हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना को पुनः जागृत करना: भारत की अंतरिक्ष आकांक्षाओं के लिये अन्य देशों के साथ सहयोग आवश्यक है। भारत को सहयोग की भावना को पुनः जागृत करने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बाह्य अंतरिक्ष संपूर्ण मानवता के लिये एक साझा डोमेन बना रहे।
- सार्वजनिक समर्थन: सरकार को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिये सार्वजनिक जागरुकता एवं उत्साह उत्पन्न करने के लिये आउटरीच और शिक्षा में संलग्न होना होगा।
निष्कर्ष:
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नवीन ऊँचाइयों पर ले जाने के लिये सार्वजनिक भागीदारी पहल के साथ-साथ रणनीतिक वित्तीय योजना और सक्रिय अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।