भारत-मालदीव संबंधों के महत्त्व का आकलन कीजिये। इस द्विपक्षीय संबंध में निहित चुनौतियों की पहचान करते हुए उन्हें दूर करने की रणनीतियाँ बताइये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत परिचय के साथ कीजिये, जो प्रश्न के लिये एक संदर्भ निर्धारित करता है।
- भारत-मालदीव संबंधों के महत्त्व का वर्णन कीजिये।
- इस द्विपक्षीय संबंधों में चुनौतियों पर का वर्णन कीजिये।
- द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने के लिये रणनीतियाँ सुझाइये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारत और मालदीव प्राचीन समय से जातीय, भाषाई, सांस्कृतिक, धार्मिक और वाणिज्यिक संबंध साझा करते हैं तथा घनिष्ठ, सौहार्दपूर्ण एवं बहुआयामी संबंधों का आनंद लेते हैं। मालदीव 'प्रथम पड़ोसी नीति (Neighbourhood First Policy)' के तहत भारत सरकार की प्राथमिकताओं का केंद्र बिंदु है।
मुख्य भाग:
भारत-मालदीव संबंधों का महत्त्व:
- सामरिक महत्त्व: मालदीव की भारत के पश्चिमी तट से निकटता और हिंद महासागर से होकर गुज़रने वाले वाणिज्यिक समुद्री मार्गों के केंद्र में इसकी स्थिति इसे भारत के लिये महत्त्वपूर्ण रणनीतिक महत्त्व प्रदान करती है।
- आर्थिक व्यस्तताएँ: भारत मालदीव में पर्यटकों के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है, जो अपनी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिये पर्यटन पर बहुत अधिक निर्भर है।
- वर्ष 2023 में भारत लगभग 11.8% बाज़ार की हिस्सेदारी के साथ मालदीव में सबसे अधिक संख्या में पर्यटक (2,09,198) भेजने में शीर्ष पर रहा।
- व्यापार समझौते: भारत वर्ष 2022 में मालदीव के दूसरे सबसे बड़े व्यापार भागीदार के रूप में उभरा। द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021 में पहली बार 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर का आँकड़ा पार कर गया था।
- बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ: अगस्त, 2021 में एक भारतीय कंपनी एफकॉन्स ने मालदीव में अब तक की सबसे बड़ी बुनियादी ढाँचा परियोजना के लिये एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये, जो ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) के रूप में कार्यरत है।
- सांस्कृतिक जुड़ाव: भारत और मालदीव प्राचीन समय से जातीय, भाषाई, सांस्कृतिक एवं धार्मिक संबंध साझा करते हैं। मानवविज्ञानियों के अनुसार, धिवेही (मालदीवियन भाषा) की उत्पत्ति संस्कृत और पाली से हुई है।
- मालदीव में भारतीय प्रवासी समुदाय की संख्या लगभग 27,000 है। मालदीव में अधिकांश प्रवासी शिक्षक भारतीय नागरिक हैं।
भारत-मालदीव संबंधों में प्रमुख मुद्दे:
- चल रहा लक्षद्वीप मुद्दा: यह विवाद तब शुरू हुआ जब मालदीव के तीन उप मंत्रियों ने लक्षद्वीप की हालिया यात्रा के बाद भारत और भारत के प्रधानमंत्री के बारे में अपमानजनक टिप्पणियाँ कीं।
- इस विवाद के कारण कई भारतीयों को मालदीव में अपनी छुट्टियों की बुकिंग रद्द करनी पड़ी। यह घटना क्षेत्र में अतिराष्ट्रवाद के संकट को रेखांकित करती है।
- मालदीव में इंडिया आउट अभियान: 'इंडिया आउट' पहल का उद्देश्य मालदीव में भारत के निवेश, दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी और क्षेत्र में भारत के सुरक्षा प्रावधानों के बारे में संदेह उत्पन्न करके दुश्मनी को बढ़ाना है।
- संप्रभुता और सुरक्षा दुविधा: मालदीव में लोकतांत्रिक व्यवस्था अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, जो प्रमुख वैश्विक अभिकर्त्ताओं से प्रभावित क्षेत्रीय सामाजिक-राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही है।
- मालदीव में विपक्ष दृढ़ता के साथ यह महसूस करता है, कि मालदीव में भारतीय सैन्य उपस्थिति देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता के लिये खतरा है।
- हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण समझौते को रद्द करना: मालदीव को आशंका है कि भारत हाइड्रोग्राफिक गतिविधि के माध्यम से खुफिया जानकारी संग्रह कर सकता है।
- मालदीव ने अपने जल क्षेत्र में संयुक्त हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण के लिये भारत के साथ समझौते को रद्द करने का हालिया निर्णय लिया है, जिससे भारतीय रणनीतिक हलकों में चिंता उत्पन्न हो गई है।
- हिंद महासागर क्षेत्र में चीन फैक्टर: मालदीव दक्षिण एशिया में चीन के "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण 'मोती' के रूप में उभरा है।
- मालदीव में बड़े पैमाने पर चीनी निवेश है और वह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में भागीदार बन गया है।
अग्रिम मार्ग के रूप में कई उपायों पर विचार किया जा सकता है:
- भारत में पर्यटन स्थलों की खोज करना और उनका विकास करना: भारत की तटरेखा प्रसिद्ध और अनदेखे सागरीय तट स्थलों के मिश्रण से सुशोभित है। यह भारत के तट के सम्मुख अज्ञात और छिपे हुए खजानों की संभावनाओं का पता लगाने एवं विकसित करने के लिये उपयुक्त है।
- संभावित गंतव्यों में गोवा, केरल, लक्षद्वीप और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह जैसे स्थान शामिल हो सकते हैं।
- स्थानीय लोगों के साथ राजनीतिक जुड़ाव: वर्तमान में 'इंडिया आउट' अभियान को सीमित आबादी का समर्थन प्राप्त है, लेकिन इसे भारत सरकार द्वारा हल्के में नहीं लिया जाना चाहिये।
- द्विपक्षीय संबंधों की मज़बूती, साझेदार सरकार की अपनी नीतियों के लिये जनता का समर्थन जुटाने की क्षमता पर निर्भर करती है।
- सरकार को प्रभावी सार्वजनिक कूटनीति में संलग्न होना चाहिये, जिसमें न केवल विदेशी सरकारों के साथ बल्कि अपने नागरिकों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ भी संवाद करना शामिल है।
- क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के लिये अटूट समर्थन: एक विकास भागीदार के रूप में, भारत को मालदीव को व्यापक-आधारित सामाजिक-आर्थिक विकास और क्षेत्र में लोकतांत्रिक एवं स्वतंत्र संस्थानों को मज़बूत करने की उनकी आकांक्षाओं को साकार करने में अटूट समर्थन प्रदान करना चाहिये।
- सागरीय सुरक्षा को बढ़ाना: भारत को हिंद महासागर में समग्र सुरक्षा स्थापत्य में योगदान करते हुए महत्त्वपूर्ण सागरीय मार्गों में नेविगेशन की सुरक्षा और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के प्रयासों में भाग लेना चाहिये।
- संसाधनों को बढ़ाना: भारत को मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेकर क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखनी चाहिये। भारत, चीनी आक्रामकता का सामना करने के लिये QUAD के माध्यम से सक्रिय रूप से शामिल हो सकता है।
निष्कर्ष:
पारस्परिक रूप से लाभप्रद साझेदारी को मज़बूत करने के लिये भारत की 'प्रथम पड़ोसी नीति (Neighbourhood First Policy)' और मालदीव के 'इंडिया फर्स्ट' दृष्टिकोण के बीच समन्वित तालमेल आवश्यक है।