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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    लोक ऋण को परिभाषित करते हुए, भारत में लोक ऋण प्रबंधन से संबंधित प्राथमिक चिंताओं पर चर्चा कीजिये। इन चिंताओं को दूर करने के उपाय बताइये। (250 शब्द)

    14 Feb, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • लोक ऋण और लोक ऋण प्रबंधन का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
    • भारत में लोक ऋण प्रबंधन से संबंधित मुद्दों और चिंताओं का उल्लेख कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    लोक ऋण वह कुल राशि है, जो एक सरकार अपने लेनदारों, जैसे- व्यक्तियों, बैंकों, निगमों या अन्य सरकारों को देती है। लोक ऋण को परिपक्वता, जारीकर्त्ता, स्थान या विपणन क्षमता के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। लोक ऋण का अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ सकते है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसका उपयोग एवं प्रबंधन कैसे किया जाता है। लोक ऋण प्रबंधन (PDM) आवश्यक धनराशि एकत्रित करने, अपने जोखिम और लागत उद्देश्यों को प्राप्त करने तथा किसी भी अन्य ऋण प्रबंधन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये सरकार के ऋण के प्रबंधन हेतु एक रणनीति तैयार करने एवं लागू करने की प्रक्रिया है।

    मुख्य भाग:

    भारत में PDM से जुड़ी कुछ प्राथमिक चिंताएँ हैं:

    • उच्च ऋण-से-GDP (Debt-to-GDP) अनुपात:
      • मार्च 2023 के अंत में भारत का लोक ऋण-से-GDP अनुपात 85.1% था, जो उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के औसत (60.9%) और वैश्विक औसत (62.5%) से अधिक है।
      • उच्च ऋण-से-GDP अनुपात सरकार के लिये आघातों का जवाब देने और विकासात्मक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिये राजकोषीय स्थान को सीमित करता है, ऋण संकट तथा डिफॉल्ट का जोखिम भी बढ़ाता है।
    • बढ़ता ब्याज भुगतान:
      • ब्याज भुगतान सरकार के राजस्व व्यय का सबसे बड़ा घटक है, जो 2020-2023 में केंद्र सरकार की राजस्व प्राप्तियों का 24.5% और उसके राजस्व व्यय का 35.4% है।
      • ब्याज भुगतान बढ़ने से स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढाँचे जैसे अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिये उपलब्ध संसाधन कम हो जाते हैं, राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिये ऋण लेने पर निर्भरता भी बढ़ जाती है।
    • ऋण स्थिरता संबंधी चुनौतियाँ:
      • ऋण स्थिरता से तात्पर्य किसी देश की अपनी विकास संभावनाओं और राजकोषीय स्थिरता से समझौता किये बिना अपने ऋण दायित्वों को पूरा करने की क्षमता से है।
      • भारत को उच्च ब्याज दर-विकास अंतर के कारण ऋण स्थिरता संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो लोक ऋण पर नाममात्र ब्याज़ दर और नाममात्र GDP विकास दर के बीच का अंतर है।
      • IMF ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2024 में भारत की ब्याज दर-वृद्धि का अंतर 2.6% हो सकता है, जो उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के औसत (0.9%) और वैश्विक औसत (0.4%) से अधिक है।
    • लोक ऋण प्रबंधन एजेंसी का अभाव
      • लोक ऋण प्रबंधन एजेंसी (PDMA) एक स्वतंत्र और विशिष्ट संस्था है, जो केंद्र तथा राज्य सरकारों के साथ-साथ अन्य सार्वजनिक संस्थाओं के लोक ऋण पोर्टफोलियो के प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार है।
      • वर्ष 2017 में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) पर एन. के. सिंह समिति की सिफारिश के बावजूद भारत में अभी तक PDMA नहीं है।

    भारत में लोक ऋण प्रबंधन की चिंताओं को दूर करने के लिये कुछ संभावित उपाय हैं:

    • राजकोषीय समेकन:
      • राजकोषीय समेकन का तात्पर्य मध्यम से लंबी अवधि में राजकोषीय घाटे और ऋण-से-GDP अनुपात को कम करने की प्रक्रिया से है।
      • सरकार ने वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटा GDP का 4.5% और वर्ष 2030-312 तक ऋण-से-GDP अनुपात 60% हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
    • राजस्व संग्रहण:
      • राजस्व संग्रहण से तात्पर्य कर आधार को व्यापक बनाने, कर संरचना को तर्कसंगत बनाने, कर अनुपालन और प्रशासन में सुधार तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म एवं डेटा एनालिटिक्स का लाभ उठाकर सरकार की राजस्व संग्रह क्षमता को बढ़ाने की प्रक्रिया से है।
    • व्यय दक्षता:
      • व्यय दक्षता से तात्पर्य पूंजी और विकासात्मक व्यय पर ध्यान केंद्रित करके, व्यर्थ एवं अनुत्पादक सब्सिडी को कम करने तथा लोक सेवाओं व योजनाओं की डिलीवरी और निगरानी में सुधार करके लोक व्यय की गुणवत्ता तथा प्रभावशीलता को प्राथमिकता देने की प्रक्रिया से है।
    • परिसंपत्ति मुद्रीकरण और निजीकरण:
      • परिसंपत्ति मुद्रीकरण और निजीकरण गैर-रणनीतिक एवं घाटे में चल रहे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) की पहचान करने तथा उन्हें विभाजित करने, सरकार व PSU के स्वामित्व वाली अधिशेष और कम उपयोग की गई भूमि एवं अन्य परिसंपत्तियों के मूल्य को अनलॉक करने तथा निजी निवेशकों को दीर्घकालिक पट्टे के लिये बुनियादी ढाँचा परिसंपत्तियों के एक मार्ग निर्माण की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
    • लोक ऋण प्रबंधन एजेंसी:
      • लोक ऋण प्रबंधन एजेंसी (PDMA) एक स्वतंत्र और विशिष्ट संस्था है, जो केंद्र तथा राज्य सरकारों के साथ-साथ अन्य सार्वजनिक संस्थाओं के लोक ऋण पोर्टफोलियो के प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार है।
      • PDMA लोक ऋण की लागत और जोखिम को कम करने, निवेशक आधार में विविधता लाने, घरेलू ऋण बाज़ार को विकसित करने तथा विभिन्न हितधारकों के बीच बेहतर समन्वय एवं संचार सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।

    निष्कर्ष:

    लोक ऋण प्रबंधन राजकोषीय नीति का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, जो भारत की आर्थिक वृद्धि और स्थिरता को प्रभावित करता है। उच्च ऋण, बढ़ते ब्याज भुगतान, ऋण स्थिरता और PDMA की कमी की चुनौतियों का समाधान करने हेतु, सरकार को व्यापकता प्रदान करता है।

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