राज्यपाल का पद अक्सर राजनीतिक विवादों में घिरा रहता है। भारतीय संघीय व्यवस्था में इसकी तटस्थता एवं प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के उपाय बताइये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- राज्यपाल के बारे में संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- ऐसी घटनाओं के हालिया उदाहरणों का उल्लेख कीजिये, जहाँ राज्यपाल राजनीतिक विवादों में पड़ गए।
- राज्यपाल के पद की तटस्थता एवं प्रभावशीलता बनाए रखने के लिये शमनकारी उपायों का उल्लेख कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
राज्यपाल भारत में किसी राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, जिसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। एक राज्यपाल राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है, कुछ मामलों को छोड़कर जहाँ वह विवेक का प्रयोग कर सकता है। औपनिवेशिक काल से ही राज्यपाल की भूमिका विवादास्पद रही है, क्योंकि इसे प्रायः केंद्र सरकार के लिये राज्य सरकारों के मामलों में हस्तक्षेप करने के एक साधन के रूप में देखा जाता है।
मुख्य भाग:
राज्यपाल की भूमिका से जुड़े कुछ विवाद इस प्रकार हैं:
- तमिलनाडु: सितंबर, 2022 में राज्य विधानमंडल द्वारा पारित NEET छूट विधेयक को मंज़ूरी न देने के कारण तमिलनाडु के राज्यपाल का राज्य सरकार के साथ विवाद हो गया, जिसमें तमिलनाडु के छात्रों को राष्ट्रीय मेडिकल प्रवेश परीक्षा से छूट देने की मांग की गई थी।
- राज्य सरकार ने उन पर केंद्र सरकार के अभिकर्त्ता के रूप में कार्य करने और संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया।
- केरल: इसी तरह, केरल के राज्यपाल को राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कुछ विधेयकों, जैसे कि केरल प्रोफेशनल कॉलेज (मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश का नियमितीकरण) विधेयक, 2023, के अनुमोदन में देरी के लिये राज्य सरकार की आलोचना का सामना करना पड़ा।
- राज्य सरकार ने उनके कार्यों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी और आरोप लगाया कि वह राज्य की विधायी और कार्यकारी शक्तियों का अतिक्रमण कर रहे हैं।
- पश्चिम बंगाल: पश्चिम बंगाल के राज्यपाल भी राज्य सरकार से भिड़ गए, जहाँ कानून-व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार जैसे विभिन्न मुद्दों पर उनका प्रायः राज्य सरकार के साथ टकराव होता रहता था।
- उन्होंने राज्य सरकार पर सूचना और परामर्श के उनके अनुरोधों की अनदेखी करने तथा संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करने का भी आरोप लगाया। दूसरी ओर, राज्य सरकार ने उन पर पक्षपातपूर्ण होने, हस्तक्षेप करने और केंद्र सरकार के मुखपत्र के रूप में कार्य करने का आरोप भी लगाया।
राज्यपाल के पद की तटस्थता और प्रभावशीलता बनाए रखने के लिये कुछ संभावित उपाय इस प्रकार हैं:
- राज्यपाल की नियुक्ति और निष्कासन की प्रक्रिया में सुधार: राज्यपाल की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये, राज्यपाल की नियुक्ति और निष्कासन की प्रक्रिया पारदर्शी, योग्यता-आधारित और परामर्शात्मक होनी चाहिये।
- वेंकटचेलैया आयोग (2002) के अनुसार, राज्यपालों की नियुक्ति एक समिति को सौंपी जानी चाहिये, जिसमें प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री शामिल हों।
- वर्तमान नियुक्ति और निष्कासन प्रक्रिया में सुधार: राज्यपाल की नियुक्ति और निष्कासन प्रक्रिया को बदलने के लिये संविधान में संशोधन किया जा सकता है।
- इसमें अधिक पारदर्शी और परामर्शी तंत्र शामिल हो सकता है, जैसे कि कॉलेजियम या संसदीय समिति, जो योग्यता और उपयुक्तता के आधार पर उम्मीदवारों का चयन कर सकती है।
- राज्य विधानमंडल के प्रस्ताव या न्यायिक जाँच की आवश्यकता के द्वारा राज्यपालों का निष्कासन और भी कठिन बनाया जा सकता है। बीपी सिंघल बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निष्कासन मनमाने, मनमौजी या अनुचित आधार पर नहीं हो सकता।
- न्यायिक हस्तक्षेप: सर्वोच्च न्यायालय राज्यपालों के आचरण की निगरानी करना जारी रख सकता है और यह सुनिश्चित करने के लिये निर्देश या टिप्पणियाँ जारी कर सकता है, कि वे संविधान और कानून के अनुसार कार्य करें। इससे राज्यपालों की मनमानी या पक्षपातपूर्ण कार्रवाइयों को रोकने और भारतीय राजनीति के संघीय सिद्धांत को बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
- उन्हें एक निर्वाचित प्रतिनिधि बनाना: राज्यपाल को केंद्र सरकार के नामित व्यक्ति के बजाय राज्य का एक निर्वाचित प्रतिनिधि बनाया जा सकता है।
- इससे कार्यालय की जवाबदेही और वैधता बढ़ सकती है और केंद्र द्वारा हस्तक्षेप या प्रभाव की गुंजाइश कम हो सकती है।
- राज्यपाल का चुनाव राज्य विधानमंडल या राज्य के लोगों द्वारा किया जा सकता है, जैसा कि राष्ट्रपति के मामले में होता है।
निष्कर्ष:
भारतीय राज्यों में राज्यपालों की भूमिका केंद्र सरकार के हस्तक्षेप की धारणाओं से उत्पन्न विवादों से चिह्नित रही है। पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रियाओं और बढ़ी हुई राज्य स्वायत्तता जैसे शमन उपाय, इस संवैधानिक पद की तटस्थता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने, राज्यों तथा केंद्र के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के लिये जरूरी हैं।