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प्रश्न :
आधुनिक भारत में सुधार आंदोलनों के उद्भव में योगदान देने वाले सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक कारकों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
12 Feb, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- आधुनिक भारत के सुधार आंदोलनों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- आधुनिक भारत के सुधार आंदोलनों के उद्भव में योगदान देने वाले सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक कारकों का उल्लेख कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
आधुनिक भारत में 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में शुरू हुए सुधार आंदोलन औपनिवेशिक शासन, सामाजिक अन्याय, शिक्षा के प्रसार एवं राष्ट्रवादी उत्साह आदि से प्रेरित थे। उनका लक्ष्य दोषपूर्ण रीति-रिवाजों और सामाजिक कुरीतियों को त्यागकर धर्मों को आधुनिक बनाना तथा भारतीय धर्मों की शुद्धता को पुनर्जीवित करना था।
मुख्य भाग:
आधुनिक भारत में सुधार आंदोलन के उद्भव में योगदान देने वाले कुछ सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारक:
- सामाजिक-राजनीतिक कारक
- अंग्रेजों ने अंग्रेजी भाषा तथा स्वतंत्रता, लोकतंत्र एवं न्याय के आधुनिक विचार प्रस्तुत किये थे। उदाहरण के लिये ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राम मोहन राय, बौद्धिक एवं फ्रांसीसी क्रांति के विचारों से प्रभावित होने के साथ तर्क एवं मानवतावाद पर आधारित सामाजिक तथा धार्मिक सुधारों की वकालत करते थे। उन्होंने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों, जैसे प्रेस पर कर लगाने आदि का भी विरोध किया।
- भारतीय समाज में व्याप्त धार्मिक और सामाजिक कुरीतियाँ, जैसे अंधविश्वास, जाति व्यवस्था एवं महिलाओं पर अत्याचार। उदाहरण के लिये, यंग बंगाल आंदोलन के एक प्रमुख नेता ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने बाल विवाह के उन्मूलन एवं विधवा पुनर्विवाह को वैध बनाने के लिये संघर्ष किया तथा महिलाओं एवं निम्न जातियों के लिये स्कूलों की भी स्थापना की।
- राष्ट्रवादी भावनाओं के विकास एवं नई आर्थिक शक्तियों के उदय से ब्रिटिश शासन को चुनौती मिलने के साथ भारतीयों के लिये अधिक अधिकारों एवं प्रतिनिधित्व की मांग की गई। उदाहरण के लिये, होम रूल आंदोलन के एक प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक ने स्व-शासन एवं स्वराज की वकालत की तथा ब्रिटिश शोषण के खिलाफ किसान और श्रमिक आंदोलनों का भी समर्थन किया।
- आर्थिक कारक
- ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के प्रभाव से भारतीय उद्योगों, कृषि और व्यापार का पतन हुआ। उदाहरण के लिये, भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के एक प्रमुख नेता दादाभाई नौरोजी ने भारत से ब्रिटेन को होने वाले धन के अंतरण की गणना की और भारत के ब्रिटिश शोषण को उजागर किया।
- अंग्रेजों द्वारा भारतीय संसाधनों का शोषण किया गया, जिसके परिणामस्वरूप गरीबी, अकाल के साथ ऋणग्रस्तता की स्थिति हुई। उदाहरण के लिये, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नेता महात्मा गांधी ने अंग्रेजों की दमनकारी कराधान और भूमि राजस्व नीतियों के विरोध के साथ अकाल एवं सूखे से पीड़ित किसानों का समर्थन करने के लिये चंपारण एवं खेड़ा सत्याग्रह की शुरूआत की।
- शिक्षित, शहरी और पेशेवर के रूप में सामाजिक और आर्थिक सुधार चाहने वाले एक नए मध्यम वर्ग का उदय हुआ था। उदाहरण के लिये, भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के एक प्रमुख नेता गोपाल कृष्ण गोखले ने संवैधानिक सुधारों की वकालत करने के साथ लोक सेवा एवं सामाजिक कल्याण के लिये भारतीयों को प्रशिक्षित करने हेतु सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की थी।
- सांस्कृतिक कारक
- शिक्षा के प्रसार और विश्व में जागरूकता बढ़ने से भारत के अतीत के गौरव पर गर्व की भावना एवं इसकी वर्तमान स्थिति में सुधार की इच्छा पैदा हुई। उदाहरण के लिये, रामकृष्ण मिशन के संस्थापक स्वामी विवेकानन्द ने वेदांत एवं हिंदू धर्म के संदेश का प्रचार करने के साथ समाज सेवा एवं राष्ट्रीय उत्थान की आवश्यकता पर भी बल दिया।
- आधुनिक पश्चिमी विचारों एवं संस्कृति के प्रभाव से भारतीय समाज के पारंपरिक मूल्यों एवं रीति-रिवाजों को चुनौती मिली। उदाहरण के लिये, शांति निकेतन के संस्थापक रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शिक्षा की एक नई प्रणाली शुरू की जो स्वतंत्रता, रचनात्मकता एवं सद्भाव के सिद्धांतों पर आधारित थी तथा इसमें पूर्व एवं पश्चिम के सर्वोत्तम तत्वों का मिश्रण भी शामिल था।
- प्राचीन भारतीय परंपराओं और विचारों के पुनरुद्धार से सुधारकों को भारतीय धर्मों की शुद्धता एवं प्रामाणिकता को बहाल करने की प्रेरणा मिली। उदाहरण के लिये, आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती ने वेदों की ओर लौटने के साथ हिंदू धर्म के सुधार एवं पुनरुद्धार की वकालत की, तथा हिंदू धर्म को दूषित करने वाले मूर्तिपूजा, जातिवाद और कर्मकांड का विरोध किया। इसी तरह, अलीगढ़ आंदोलन के संस्थापक सैयद अहमद खान ने इस्लाम में सुधार एवं इसके पुनरुद्धार की वकालत की।
निष्कर्ष:
आधुनिक भारत में सुधार आंदोलन सामाजिक अन्याय का समाधान करने, तर्कसंगतता को बढ़ावा देने तथा राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा देने में सहायक साबित हुए थे। इन्होंने स्वतंत्रता के लिये भारत के संघर्ष की नींव रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और समकालीन सामाजिक परिवर्तन एवं प्रगति को प्रेरित किया।
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