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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    गरीबी के आकलन हेतु केवल मौद्रिक उपायों पर निर्भर रहने की सीमाओं पर चर्चा कीजिये। बहुआयामी दृष्टिकोण से किस प्रकार गरीबी की अधिक व्यापक समझ हो सकती है? (250 शब्द)

    07 Feb, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मौद्रिक उपायों तथा गरीबी आकलन के बारे में बताइये।
    • गरीबी के आकलन में बहुआयामी दृष्टिकोण के लाभों का उल्लेख कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    गरीबी एक जटिल घटना है जो लोगों के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है। केवल आय या उपभोग के आधार पर गरीबी को मापने से लोगों के अभावों की सीमा एवं गहनता का पता नहीं चल सकता है।

    मुख्य भाग:

    गरीबी का आकलन करने के लिये आय या उपभोग जैसे मौद्रिक उपायों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, लेकिन इसकी कई सीमाएँ हैं:

    • संकीर्ण फोकस: इससे गरीबी के केवल एक पहलू (वित्तीय संसाधनों) को ध्यान में रखा जाता है। गरीबी बहुआयामी है, जिसमें स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, स्वच्छता, सामाजिक समर्थन एवं अन्य आवश्यक चीजों तक पहुँच की कमी होना शामिल है।
    • मनमानी रेखाओं का निर्धारण: गरीबी रेखाएँ एक विशिष्ट संदर्भ में मान्यताओं एवं तुलनाओं के आधार पर निर्धारित की जाती हैं। इससे इस सीमा से बाहर के समूहों के समक्ष अभाव को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है या इससे विभिन्न क्षेत्रों में जीवन निर्वहन की लागत में अंतराल का पता लगाना मुश्किल हो सकता है।
    • परिवार संबंधी पूर्वाग्रह: इससे घरेलू स्तर पर गरीबी का आकलन किया जाता है और परिवार के अंदर सभी के बीच समान संसाधन वितरण माना जाता है। इससे व्यक्तिगत असमानताएँ (विशेषकर घरों में महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों की असुरक्षा) नज़रअंदाज़ होती हैं।
    • स्थिर परिदृश्य: मौद्रिक उपायों से किसी निश्चित समय पर एक स्थिर परिदृश्य मिलता है जिससे अक्सर गरीबी की गतिशील प्रकृति एवं व्यक्तियों तथा समुदायों पर इसके चक्रीय प्रभाव का पता लगाने में मुश्किल होती है।
    • निर्वाह अर्थव्यवस्थाओं में मापन में कठिनाई: वस्तु विनिमय एवं आत्मनिर्भरता की बहुलता वाली पारंपरिक अर्थव्यवस्थाओं में इसके तहत गरीबी आकलन मुश्किल हो जाता है।
    • सामाजिक बहिष्कार की उपेक्षा: केवल आय पर ध्यान केंद्रित करने से गरीबी के सामाजिक आयाम की अनदेखी होती है, जिसमें भेदभाव एवं अवसरों तक सीमित पहुँच शामिल है।

    बहुआयामी दृष्टिकोण के लाभ:

    बहुआयामी दृष्टिकोण से गरीबी के बारे में समग्र जानकारी मिलती है:

    • व्यापक दायरा: इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता एवं जीवन स्तर जैसे कई आयामों पर विचार होता है, जिससे वंचना की अधिक सूक्ष्म तस्वीर मिलती है।
    • भेद्यता को समझना: इससे विभिन्न अभावों के आधार पर गरीबी में शामिल होने के जोखिम वाले व्यक्तियों एवं समूहों की पहचान होती है, जिससे लक्षित हस्तक्षेप में सहायता मिलती है।
    • विविधता को पहचानना: इससे विभिन्न क्षेत्रों, संदर्भों एवं सामाजिक समूहों में गरीबी की विविधता को समझकर अधिक न्यायसंगत नीति समाधान प्राप्त होते हैं।
    • गतिशील समझ: इसके तहत समय के साथ विभिन्न आयामों में होने वाले परिवर्तनों को ट्रैक किया जाता है, जिससे गरीबी की जटिल प्रकृति को समझना आसान होता है।
    • सामाजिक बहिष्कार पर ध्यान देना: इससे गरीबी में योगदान देने वाले सामाजिक एवं राजनीतिक कारकों पर विचार होता है, जिससे आय सृजन से परे इनके समाधान का मार्ग प्रशस्त होता है।

    बहुआयामी उपागम के उदाहरण:

    • गरीबी के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण का एक उदाहरण बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) है, जिसमें तीन मुख्य क्षेत्रों: स्वास्थ्य, शिक्षा एवं जीवन स्तर को कवर करने वाले 10 संकेतकों का उपयोग होता है।
    • MPI में प्रासंगिकता तथा उपलब्धता के अनुसार संकेतक जोड़कर या संशोधित करके विभिन्न संदर्भों एवं देशों के साथ इसे अनुकूलित किया जा सकता है।
      • उदाहरण के लिये भारत ने अपने राष्ट्रीय MPI में दो नए संकेतक जोड़े हैं: मातृ स्वास्थ्य और बैंक खाते।
    • MPI से नीति निर्माताओं को सबसे वंचित क्षेत्रों एवं समूहों की पहचान करने, संसाधनों को अधिक कुशलता से आवंटित करने तथा समय के साथ गरीबी में होने वाले बदलाव को ट्रैक करने में मदद मिल सकती है।

    निष्कर्ष:

    हालाँकि मौद्रिक उपायों का अपना महत्त्व है लेकिन केवल उन पर ही निर्भर रहने से गरीबी की अधूरी तस्वीर सामने आ सकती है। बहुआयामी दृष्टिकोण के तहत अभाव एवं भेद्यता के विभिन्न पहलुओं पर विचार किये जाने से गरीबी की अधिक व्यापक समझ के साथ इसकी वास्तविक जटिलता को दूर करने के लिये प्रभावी हस्तक्षेप का मार्ग प्रशस्त होता है।

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