बाल श्रम भारत की ही नहीं बल्कि विश्वव्यापी समस्या बन चुका है। इसके कारणों की चर्चा करते हुए स्थायी समाधानों पर प्रकाश डालिये।
20 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय
प्रश्न-विच्छेद
हल करने का दृष्टिकोण
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बाल श्रम की समस्या भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिये एक चुनौती बनती जा रही है। विभिन्न देशों द्वारा बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाने के लिये समय-समय पर विभिन्न प्रकार उठाए गए हैं। दुनिया भर में बालश्रम की क्रूरता को समाप्त करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करने के लिये हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है,जिसकी शुरुआत अंतर्राष्टीय श्रम संगठन द्वारा 2002 में की गयी थी। इस समस्या पर नियंत्रण के लिये विभिन्न देशों द्वारा प्रयास किये जाने के बाद भी इस स्थिति में सुधार न होना चिंता का विषय है।
बाल श्रम आमतौर पर मज़दूरी के भुगतान के बिना या भुगतान के साथ बच्चों से शारीरिक कार्य कराना है। दुनिया भर में बाल श्रम में शामिल 152 मिलियन बच्चों में से 73 मिलियन बच्चे खतरनाक काम करते हैं। इस तरह के कामों में मैनुअल सफाई, निर्माण, कृषि, खदानों, कारखानों तथा फेरी वाला एवं घरेलू सहायक इत्यादि के रूप में काम करना शामिल है। यूनिसेफ की रिपोर्ट में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों का खतरनाक उद्योग धंधों में कार्य करना बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन व इसे मानवीय सभ्यता के विरुद्ध अपराध की संज्ञा दी है।
वस्तुतः किसी भी काम में बच्चों का नियोजन इसलिये किया जाता है क्योंकि उनका आसानी से शोषण किया जा सकता है। बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं उनमें आमतौर पर गरीबी प्रमुख है। इसके अलावा जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों का लागू न होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता (वे अपने बच्चों को स्कूल की बजाय काम पर भेजने के इच्छुक होते हैं, ताकि परिवार की आय बढ़ सके) आदि अन्य कारण भी हैं।
भारत में आदिकाल से ही बच्चों को ईश्वर का रूप माना जाता रहा है लेकिन विडंबना यह है किन वर्तमान परिदृश्य इस सोच से काफी भिन्न है। बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। गरीब बच्चे स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने की उम्र में मज़दूरी कर रहे हैं। यद्यपि इस संबंध में भारत का संविधान मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों की विभिन्न धाराओं के माध्यम से कहता है कि-
इस दिशा में अन्य प्रयासों में बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986, जो 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी अवैध पेशे और 57 प्रक्रियाओं में (जिनका उल्लेख कानून की अनुसूची में है और जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिये अहितकर माना गया है) नियोजन को निषिद्ध करता है। कारखाना अधिनियम 1948 भी जहाँ 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिद्ध करता है वहीं 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्ट्री में तभी नियुक्त किये जा सकते हैं जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो, का प्रावधान करता है। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिये हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गई है और उनके रात में काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
इस समस्या के समाधान के लिये प्रशासनिक, सामाजिक तथा व्यक्तिगत सभी स्तरों पर प्रयास किया जाना आवश्यक है। इसके लिये आवश्यक है कि कुछ विशिष्ट योजनाएँ बनाई जाएँ तथा उन्हें कार्यान्वित किया जाए जिससे लोगों का आर्थिक स्तर मजबूत हो सके और उन्हें अपने बच्चों को श्रम के लिये विवश न करना पड़े। प्रशासनिक स्तर पर सख्त-से-सख्त निर्देशों की आवश्यकता है जिससे बाल श्रम को रोका जा सके। व्यक्तिगत स्तर पर बाल श्रम की समस्या का निदान हम सभी का नैतिक दायित्व है। इसके प्रति हमें जागरूक होना चाहिये तथा इसके विरोध में सदैव आगे आना चाहिये।
बाल श्रम की समस्या के मूल में निर्धनता और अशिक्षा है, जब तक देश में भुखमरी रहेगी तथा देश के नागरिक शिक्षित नहीं होंगे तब तक इस प्रकार की समस्याएँ ज्यों-की-त्यों बनी रहेंगी। अतः इस संबंध में आवश्यकता है एक सामाजिक क्रांति की ताकि लोग अपने निहित स्वार्थों के लिये देश के इन भावी निर्माताओं व कर्णधारों के भविष्य पर प्रश्न चिह्न न लगा सकें।