भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- स्वतंत्रता संघर्ष पर सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रभाव का उल्लेख कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
सविनय अवज्ञा आंदोलन जो वर्ष 1930-1934 तक भारत में चला, देश के स्वतंत्रता संग्राम में अत्यधिक महत्त्व रखता है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में इस अहिंसा विरोधी अभियान का उद्देश्य ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को चुनौती देना और आत्मनिर्भरता, असहयोग एवं अहिंसा विरोधी सिद्धांतों को बढ़ावा देना था।
मुख्य भाग:
आंदोलन के महत्त्व के कुछ मुख्य बिंदु:
- जन लामबंदी और एकता:
- यह आंदोलन किसानों, श्रमिकों, छात्रों, महिलाओं एवं शहरी मध्यम वर्ग सहित भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने में सफल रहा। इस व्यापक भागीदारी ने एकता और राष्ट्रीय चेतना की भावना को बढ़ावा दिया।
- ब्रिटिश सत्ता को चुनौती:
- सविनय अवज्ञा ने जानबूझकर नमक कानून, वन कानून, मद्य निषेध और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार जैसे दमनकारी ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन किया। सविनय अवज्ञा के इस कृत्य ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की वैधता और अधिकार को चुनौती दी।
- पूर्ण स्वतंत्रता का समर्थन:
- ब्रिटिश नीतियों की शोषणकारी प्रकृति को उजागर करके, आंदोलन ने भारतीय जनता के बीच पूर्ण स्वतंत्रता या "पूर्ण स्वराज" की मांग को प्रज्वलित किया।
- एक शक्तिशाली साधन के रूप में अहिंसा:
- आंदोलन ने जनता को शस्त्र के रूप में अहिंसा की शक्ति प्रदान की, जिसके परिणामस्वरूप इसकी प्रभावशीलता का प्रदर्शन हुआ। ब्रिटिश सेना के क्रूर दमन और हिंसा का सामना करने के बावजूद, भारतीयों ने अहिंसावादी सिद्धांतों का पालन करके नैतिक श्रेष्ठता एवं साहस बनाए रखा।
- बाद की घटनाओं पर प्रभाव:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन का स्वतंत्रता आंदोलन और ब्रिटिश सरकार के साथ समन्वय को लेकर काफी प्रभाव देखा गया। इसने अंग्रेज़ों को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन को एक महत्त्वपूर्ण और वैध शक्ति के रूप में स्वीकार करने के लिये मजबूर किया।
- स्वतंत्रता की राह:
- इस आंदोलन ने स्वतंत्रता के लिये भारत के संघर्ष पथ को आकार देने, गांधी-इरविन समझौता, द्वितीय गोलमेज़ सम्मेलन जैसी महत्त्वपूर्ण घटनाओं का मार्ग प्रशस्त करने और अंततः वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्रता हासिल करने में योगदान देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष:
सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर एक अमिट छाप छोड़ी। जन लामबंदी, अहिंसा विरोधी और पूर्ण स्वायत्तता की मांग के माध्यम से इसने न केवल ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी, बल्कि महत्त्वपूर्ण वार्ताओं के लिये मंच भी तैयार किया, जिससे अंततः वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ।