ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय कला पर उपनिवेशवाद के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- ब्रिटिश भारत के दौरान भारत में उपनिवेशवाद का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- भारतीय कला पर उपनिवेशवाद के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय कला पर उपनिवेशवाद का गहरा और बहुआयामी प्रभाव देखा गया, जिसमें संरक्षण, विषयवस्तु, शैली तथा सामाजिक-आर्थिक संदर्भ जैसे विभिन्न पहलू शामिल थे। भारत में ब्रिटिश शासन की अवधि, 19वीं शताब्दी के मध्य से वर्ष 1947 तक, ने भारतीय कला के प्रक्षेप पथ को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।
मुख्य भाग:
- संरक्षण और संस्थागत परिवर्तन:
- औपनिवेशिक काल में कला के लिये पारंपरिक संरक्षण प्रणाली में बदलाव देखा गया, जो पहले शाही न्यायालयों और स्थानीय शासकों के आसपास केंद्रित थी। ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों ने यूरोपीय स्वाद (tastes) और सौंदर्यशास्त्र के साथ संरेखित रूपों की ओर धन एवं समर्थन को पुनर्निर्देशित किया।
- कलात्मक विद्यालय और अकादमियाँ जैसी संस्थाएँ ब्रिटिश प्रभाव में स्थापित की गईं।
- इन संस्थानों का उद्देश्य औपचारिक प्रशिक्षण प्रदान करना था, उन्होंने प्रायः पश्चिमी कलात्मक सिद्धांतों को बढ़ावा दिया, जिससे भारतीय कला के शैक्षिक परिदृश्य में बदलाव आया।
- विषयवस्तु और प्रतिनिधित्व:
- औपनिवेशिक कला ने भारतीय कला की विषयवस्तु को प्रभावित किया। ऐतिहासिक घटनाएँ, औपनिवेशिक अधिकारियों के चित्र और ब्रिटिश औपनिवेशिक उपस्थिति को दर्शाने वाले दृश्य इस कला में प्रमुख बन गए।
- ब्रिटिश राज के दौरान कला में भारतीय विषयों को प्रायः यूरोकेंद्रित दृष्टिकोण से चित्रित किया जाता था।
- समन्वयवाद और अनुकूलन:
- उपनिवेशवाद के द्वारा उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, समन्वयवाद और अनुकूलन इसके उदाहरण थे।
- कुछ भारतीय कलाकारों ने अपने काम में पश्चिमी तकनीकों और शैलियों को शामिल किया, जिससे कलात्मक अभिव्यक्ति का एक मिश्रित रूप तैयार हुआ।
- अवनींद्रनाथ टैगोर और नंदलाल बोस जैसी शख्सियतों के नेतृत्व में बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट ने पश्चिमी कला के तत्त्वों को शामिल करते हुए पारंपरिक भारतीय कलात्मक रूपों को पुनर्जीवित करने की मांग की।
- इस आंदोलन का उद्देश्य औपनिवेशिक प्रभावों के परिप्रेक्ष्य में सांस्कृतिक पहचान की भावना पर ज़ोर देना था।
- कलात्मक तकनीकों और सामग्रियों पर प्रभाव:
- पश्चिमी कलात्मक तकनीकों, सामग्रियों की शुरुआत का भारतीय कला पर स्थायी प्रभाव पड़ा।
- उदाहरण के लिये, ऑइल पेंटिंग ने टेम्परा जैसे पारंपरिक माध्यमों का स्थान लेते हुए प्रमुखता प्राप्त की। सामग्रियों में इस बदलाव ने भारतीय कला के दृश्यात्मक सौंदर्यशास्त्र को प्रभावित किया।
- आर्थिक कारक और कला बाज़ार:
- औपनिवेशिक काल में महत्त्वपूर्ण आर्थिक परिवर्तन हुए, जिसका प्रभाव कला बाज़ार पर पड़ा। पारंपरिक संरक्षण प्रणालियाँ कम हो गईं और कलाकारों को प्रायः परिवर्तित बाज़ार की मांगों के अनुरूप ढलना पड़ा। इस परिवर्तन का प्रभाव विषयों और कलात्मक शैलियों की रुचि पर पड़ा।
निष्कर्ष:
ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय कला पर उपनिवेशवाद का जटिल प्रभाव देखा गया, जिसमें अनुकूलन, प्रतिरोध और संवाद का मिश्रण शामिल था। हालाँकि इससे पारंपरिक कलात्मक प्रथाओं के समक्ष चुनौतियाँ के साथ बदलाव देखे गए, लेकिन इसने कलात्मक अभिव्यक्ति के नवीन रूपों के उद्भव का मार्ग भी प्रशस्त किया, जिसने औपनिवेशिक संदर्भ में सांस्कृतिक पहचान की जटिलताओं को दूर करने का प्रयास किया।