संसद की प्रभावी कार्यप्रणाली में योगदान देने वाले तंत्रों एवं कार्यों का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- एक विधायी निकाय के रूप में संसद का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- उन तंत्रों एवं कार्यों का उल्लेख कीजिये जो संसद के प्रभावी कामकाज में योगदान करते हैं।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारत की संसद भारतीय गणराज्य की सर्वोच्च विधायी निकाय है और इसमें दो सदन होते हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। संसद के पास विभिन्न कार्य तथा शक्तियाँ होती हैं जैसे विधायी, कार्यकारी, वित्तीय, चुनावी एवं संवैधानिक।
मुख्य भाग:
- विधायी कार्य:
- संसद संघ सूची और संविधान की समवर्ती सूची में सूचीबद्ध विषयों पर कानून बनाती तथा पारित करती है। यह कुछ परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है जैसे राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान या दो या दो से अधिक राज्यों की सहमति से।
- कार्यकारी प्रकार्य:
- संसद विभिन्न उपकरणों जैसे- अविश्वास प्रस्ताव, बजट अनुमोदन, प्रश्नकाल, बहस और चर्चा के माध्यम से कार्यपालिका को लोगों के प्रति जवाबदेह ठहरा सकती है। कार्यपालिका संसद के प्रति उत्तरदायी होती है और उसे संसद सदस्यों द्वारा विघटित किया जा सकता है।
- संवैधानिक कार्य:
- संसद के पास संविधान एवं अन्य महत्त्वपूर्ण कानूनों जैसे- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन करने की शक्ति है।
- संसद नए राज्यों का सृजन कर सकती है और राज्यों की सीमाओं एवं नाम को बदल सकती है।
- प्रतिनिधिक कार्य:
- संसद भारत के लोगों और राज्यों के हितों एवं आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। संसद के सदस्य लोगों द्वारा या राज्य विधानमंडलों द्वारा चुने जाते हैं।
- संसद भारतीय समाज की विविधता और बहुलवाद को भी प्रतिबिंबित करती है।
निष्कर्ष:
संसद के ये कार्य उसे लोकतंत्र के संरक्षक एवं नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभाने में सक्षम बनाते हैं। संसद विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श, बहस तथा आम सहमति बनाने के मंच के रूप में भी कार्य करती है। इस प्रकार संसद भारतीय राजनीति के प्रभावी कामकाज हेतु एक महत्त्वपूर्ण संस्था है।