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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा को बताते हुए भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में इसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)

    30 Jan, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • शक्ति पृथक्करण की अवधारणा का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
    • भारतीय लोकतंत्र के लिये इसके महत्त्व का उल्लेख कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा लोकतांत्रिक शासन का मौलिक सिद्धांत है, जिसे विभिन्न प्राधिकरणों के बीच शक्ति संतुलन स्थापित करने हेतु डिज़ाइन किया गया है। विधायी, कार्यकारी और न्यायिक प्राधिकरणों के रूप में सरकार के कार्यों को तीन शाखाओं में विभाजित किया गया है: प्रत्येक की अलग-अलग भूमिकाएँ एवं ज़िम्मेदारियाँ हैं।

    मुख्य भाग:

    • भारतीय लोकतंत्र के लिये महत्त्व:
      • सत्ता के दुरुपयोग को रोकना: विभिन्न शाखाओं के बीच शक्तियों के पृथक्करण से सत्ता के दुरुपयोग से सुरक्षा प्राप्त होती है। इससे सुनिश्चित होता है कि कोई भी शाखा अत्यधिक प्रभावशाली न हो जाए या अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न कर सके।
      • जाँच और संतुलन: प्रत्येक शाखा के पास अन्य शाखाओं के कार्यों की जाँच करने एवं संतुलित करने का अधिकार होता है। उदाहरण के लिये विधायिका चर्चा, सवालों और मतदान के माध्यम से कार्यपालिका पर नियंत्रण कर सकती है तथा उसे जवाबदेह ठहरा सकती है। न्यायपालिका कानूनों और कार्यकारी कार्यों की संवैधानिकता की समीक्षा कर सकती है।
      • जवाबदेहिता: शक्तियों के पृथक्करण से सरकार की जवाबदेहिता में वृद्धि होती है। प्रत्येक शाखा अपने विशिष्ट कार्यों के लिये जवाबदेह होती है तथा न्यायपालिका की स्वतंत्रता यह सुनिश्चित करती है कि कार्यकारी या विधायी शाखाओं के हस्तक्षेप के बिना कानूनी मानकों को बरकरार रखा जा सके।
      • लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था: भारत जैसे लोकतंत्र में (जहाँ सत्ता लोगों से प्राप्त होती है) शक्तियों का पृथक्करण लोकतांत्रिक लोकाचार को दर्शाता है। इससे सत्ता के केंद्रीकरण पर नियंत्रण के साथ यह सुनिश्चित होता है कि निर्णय प्रतिनिधित्व एवं जवाबदेहिता को ध्यान में रखकर लिये जाएँ।
      • संवैधानिक ढाँचा: भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में विधायी, कार्यकारी एवं न्यायिक शाखाओं के बीच शक्तियों और कार्यों को स्पष्ट रूप से विभाजित किया गया है। यह संवैधानिक ढाँचा भारतीय लोकतंत्र की एक अनिवार्य विशेषता के रूप में शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को बनाए रखता है।

    निष्कर्ष:

    शक्तियों का पृथक्करण भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला है, जो नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए जवाबदेह एवं कुशल प्रशासन हेतु रूपरेखा प्रदान करता है। यह लोकतांत्रिक मूल्यों, विधि के शासन एवं अनियंत्रित सरकारी प्राधिकरण पर नियंत्रण के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

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