सामाजिक सशक्तीकरण की अवधारणा का आलोचनात्मक परीक्षण करते हुए इसके विविध आयामों एवं भारत में समावेशी विकास प्राप्त करने में इसके महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सामाजिक सशक्तीकरण का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- समावेशी विकास प्राप्त करने के लिये सामाजिक सशक्तीकरण के विभिन्न आयामों का उल्लेख कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
|
परिचय:
सामाजिक सशक्तीकरण समाज के हाशिये पर रहने वाले और वंचित वर्गों को जीवन के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भाग लेने में सक्षम बनाने की प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य उनकी आत्मनिर्भरता, गरिमा और कल्याण को बढ़ाना तथा उनके सामने आने वाली असमानताओं एवं भेदभाव को कम करना है।
मुख्य भाग:
- भारत में सामाजिक सशक्तीकरण के कुछ आयाम:
- महिला सशक्तीकरण: महिला सशक्तीकरण का तात्पर्य शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, निर्णय लेने और कानूनी सुरक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति एवं अधिकारों को बढ़ाना है। महिला सशक्तीकरण के लिये सरकार की पहल बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना, उज्ज्वला योजना, महिला शक्ति केंद्र आदि हैं।
- अनुसूचित जाति (SC) सशक्तीकरण: जाति-आधारित भेदभाव, हिंसा और अत्याचार को खत्म करने एवं शिक्षा, रोज़गार, भूमि तथा न्याय तक उनकी पहुँच सुनिश्चित करने के लिये SC का सशक्तीकरण आवश्यक है। अनुसूचित जाति के सशक्तीकरण के लिये सरकारी योजनाएँ राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम, डॉ. अंबेडकर पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति, अनुसूचित जाति के लिये वेंचर कैपिटल फंड आदि हैं।
- अनुसूचित जनजाति (ST) सशक्तीकरण: अनुसूचित जनजाति सशक्तीकरण, उनकी सांस्कृतिक पहचान, प्राकृतिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने तथा उनकी आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शासन को बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है। अनुसूचित जनजाति सशक्तीकरण के लिये सरकारी कार्यक्रम वनबंधु कल्याण योजना, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ आदि हैं।
- विकलांग व्यक्तियों (PwD) का सशक्तीकरण: विकलांग व्यक्तियों का सशक्तीकरण, उनके सामने आने वाली बाधाओं को दूर करने और उन्हें शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच प्रदान करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। PwD सशक्तीकरण के लिये सरकारी पहल विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, राष्ट्रीय ट्रस्ट, दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना आदि हैं।
- सामाजिक सशक्तीकरण कई कमियों के साथ आता है, जिसमें शामिल हैं:
- प्रमुख समूहों का विरोध: सामाजिक सशक्तीकरण प्रायः मौजूदा संरचनाओं और मानदंडों को चुनौती देता है जो समाज में प्रमुख समूहों, जैसे- उच्च जाति, पुरुष, बहुसंख्यक धर्म, आदि का पक्ष लेते हैं।
- संसाधनों और अवसरों की कमी: सामाजिक सशक्तीकरण के लिये वंचित वर्गों तक पहुँच और उपयोग के लिये पर्याप्त संसाधनों एवं अवसरों की आवश्यकता होती है। हालाँकि भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, भूमि आदि जैसे संसाधनों तथा अवसरों की कमी है।
- विविधता और विषमता: भारत एक विविधता और विषमता वाला देश है, जिसमें विभिन्न सामाजिक समूहों की अलग-अलग पहचान, संस्कृतियाँ, भाषाएँ, धर्म आदि हैं। यह सामाजिक सशक्तीकरण के लिये एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है क्योंकि विशिष्ट आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को संबोधित करना मुश्किल हो सकता है। प्रत्येक समूह और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनका प्रतिनिधित्व तथा भागीदारी सुनिश्चित करना शामिल है।
- कार्यान्वयन में कमियाँ और भ्रष्टाचार: सार्वजनिक सेवाओं एवं लाभों के वितरण में प्रायः कार्यान्वयन में कमियाँ और भ्रष्टाचार होते हैं, जो सशक्तीकरण कार्यक्रमों की पहुँच तथा गुणवत्ता को कम कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिये इच्छित लाभार्थियों को छात्रवृत्ति, पेंशन, सब्सिडी आदि के वितरण में देरी या अनियमितताएँ हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
भारत में सामाजिक सशक्तीकरण के लिये शिक्षा, आर्थिक संभावनाओं, राजनीतिक भागीदारी, लैंगिक समानता, सामाजिक समावेशन, स्वास्थ्य देखभाल, तकनीकी पहुँच और पर्यावरणीय स्थिरता को कवर करने वाली एक समग्र रणनीति की आवश्यकता है। समावेशी विकास विविध आवश्यकताओं को स्वीकार करने और उन्हें पूरा करने वाली नीतियों पर निर्भर करता है, जिसमें कोई भी समूह पीछे न रहे। सामाजिक सशक्तीकरण सिर्फ एक विकासात्मक उपकरण नहीं है, बल्कि इसका लक्ष्य एक निष्पक्ष एवं न्यायसंगत समाज को बढ़ावा देना है।