बदलती वैश्विक शक्ति संरचना में एशिया नए शक्ति केंद्र के रूप में उभर रहा है। इस कथन के संदर्भ में क्या आप मानते हैं कि भारत को अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है? तर्क सहित व्याख्या कीजिये।
22 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
प्रश्न-विच्छेद
हल करने का दृष्टिकोण
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21वीं सदी के दूसरे दशक में वैश्विक शक्ति संरचना में वृहत् परिवर्तन आकार ले रहा है। अब शक्ति का नया केंद्र एशिया की मुख्य भूमि की ओर स्थानांतरित हो रहा है जिसका प्रतिनिधित्व इस महाद्वीप के दो विशाल देश भारत और चीन कर रहे हैं। दोनों ही देश परमाणु शक्ति संपन्न होने के साथ-साथ विश्व की सबसे तेज़ विकास करती अर्थव्यवस्थाएँ भी हैं।
भारत की विदेश नीति समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व के लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित रही है। यह अभी तक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा अथवा समूह में हथियारों को नष्ट किये जाने की सहमति, समुद्री सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सुधार तक ही सीमित है, जबकि वर्तमान में वैश्विक शक्ति समीकरण एक नए एवं व्यापक परिवर्तन की ओर बढ़ रहे हैं, जहाँ अटलांटिक तट आधारित चिंताओं से अधिक महत्त्वपूर्ण हिंद-प्रशांत रणनीतिक मुद्दे हो गए हैं। अतः भारत की विदेश नीति में विशेष रूप से पड़ोसी राष्ट्रों के संदर्भ में एक नए परिप्रेक्ष्य की आवश्यकता है।
वर्तमान में जब एशिया-प्रशांत पदावली को गौण करते हुए हिंद-प्रशांत का मुद्दा उभर रहा है और हिंद महासागर में नए वैश्विक शक्ति समीकरण बन रहे हैं, ऐसे में भारत को हिंद-प्रशांत गठजोड़ की इस नई अवधारणा को स्पष्ट एवं स्वीकार करने की ज़रूरत है जो पारस्परिकता के आधार पर चीनी दृष्टिकोण को भी समायोजित करती है। वैश्विक आर्थिक व सैन्य सक्रियता में हिंद महासागर की केंद्रीयता और प्राथमिकता को यदि हम चिह्नित करें तो भारत इंडोनेशिया के साथ साझेदारी करके मलक्का स्ट्रेट की निगरानी कर सकता है जहाँ से चीन और पूर्वी एशिया का 80 प्रतिशत ट्रैफिक गुज़रता है।
एशियाई क्षेत्र में पश्चिमी शक्तियों के घटते प्रभाव और चीन के मज़बूत उभार की स्वीकार्यता नई वैश्विक वास्तविकता है। यद्यपि भारत में यह क्षमता है और उसके पास अवसर भी है कि वह एक ‘उत्तरदायी और प्रभावशाली वैश्विक शक्ति’ के रूप में उभर सकता है परंतु हार्डवेयर क्षमता और मानसिकता के परिप्रेक्ष्य में भारत अभी एक क्षेत्रीय शक्ति ही माना जाता है और कई एशियाई देश इस मामले में भारत से आगे हैं। इसके लिये ज़रूरत है कि भारत पड़ोसी देशों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद तक सीमित अपने दृष्टिकोण को विस्तारित कर वैश्विक मुद्दों पर उच्च प्राथमिकता से मुखर हो।
भारत को यह समझना होगा कि तथाकथित बहुध्रुवीय विश्व में वह केवल मूकदर्शक बनकर ही नहीं रह सकता या केवल सांकेतिक भागीदार या एक ध्रुव नहीं बना रह सकता, जैसे चीन ने भारत के सभी पड़ोसी देशों से मित्रता की केंद्रीयता को समझा और उसे कार्यान्वित करते हुए इन सभी देशों को बेल्ट एण्ड रोड इनिशिएटिव (BRI) में शामिल कर लिया।
अतः भारत को इस नए वैश्विक शक्ति प्रतिमान में एक हितधारक बनने के लिये कल्पनाशील होकर प्रयास करना होगा। इसके लिये उसे अल्पभाषित और निष्क्रिय कूटनीति को छोड़ना होगा तथा बिना धमकी या ज़ोर के अपने पड़ोसियों को प्रभाव में रखने की कला सीखनी होगी।