भारत में संघीय ढाँचे की उभरती गतिशीलता पर चर्चा करते हुए इसके संदर्भ में राज्यों के समक्ष आने वाले प्रमुख मुद्दों एवं चुनौतियों पर प्रकाश डालिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में संघीय ढाँचे के बारे में एक संक्षिप्त परिचय लिखिये।
- भारतीय कानून और संविधान में संघीय ढाँचे से संबंधित प्रावधान किस प्रकार आए और बढ़े इसका उल्लेख कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
भारत का संघीय ढाँचा एक प्रशासनिक तंत्र है, जो केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों और उत्तरदायित्वों को विभाजित करता है। भारत का संविधान संघ और राज्यों के बीच विधायी, प्रशासनिक और कार्यकारी शक्तियों के वितरण को तीन सूचियों में निर्दिष्ट करता है: संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची।
निकाय:
- भारत का संघीय ढाँचा ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जैसे विभिन्न कारकों के कारण विकसित हुई है। भारत के संघीय ढाँचा को आकार प्रदान करने वाली कुछ प्रमुख घटनाएँ हैं:
- भाषाई और सांस्कृतिक आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया, जिससे राज्यों की संख्या और विविधता में वृद्धि हुई और उन्हें पहचान प्राप्त हुई।
- क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ, जिसने राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व को चुनौती दी, जिससे संघीय ढाँचे में राज्यों के अधिकारों में वृद्धि हुई।
- वित्त आयोग की सिफ़ारिशों को अपनाने से राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता और संसाधनों में वृद्धि हुई और केंद्र तथा राज्यों के बीच ऊर्ध्वाधर असंतुलन कम हुआ।
- पंचायती राज और नगरपालिका अधिनियमों का कार्यान्वयन, जिसने स्थानीय सरकारों को शक्तियाँ तथा कार्य सौंपे और उन्हें दृढ़ किया।
- 73वाँ और 74वाँ संशोधन अधिनियम, 1992, जिसने स्थानीय स्वशासन के तृतीय स्तर को मान्यता दी एवं कुछ शक्तियाँ और कार्य पंचायतों तथा नगर पालिकाओं को सौंप दिये।
- 101वाँ संशोधन अधिनियम, 2016, जिसने वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रस्तुत किया और केंद्र तथा राज्यों की कराधान नीतियों के समन्वय के लिये एक GST परिषद् का निर्माण किया।
- उदाहरण के लिये GST मुआवज़ा उपकर, 1 जुलाई, 2017 को GST के कार्यान्वयन के कारण होने वाले राजस्व की क्षति पूर्ति के लिये राज्यों को पाँच वर्ष की अवधि या GST परिषद् द्वारा अनुशंसित अवधि के लिये लगाया गया है।
- राज्यों के समक्ष आने वाले प्रमुख मुद्दे और चुनौतियाँ।
- क्षेत्रवाद: राज्य कभी-कभी केंद्र या अन्य राज्यों के विपरीत जाकर अपनी क्षेत्रीय पहचान और हितों पर ज़ोर देते हैं। इससे स्वायत्तता, राज्य का दर्जा या अलगाव की मांग उठ सकती है।
- उदाहरण: तेलंगाना, गोरखालैंड, बोडोलैंड, आदि।
- राजकोषीय संघवाद: राज्यों की शिकायत है कि केंद्र पर्याप्त संसाधन साझा नहीं करता है या उनके व्यय पर शर्तें लगाता है।
- प्रतिनिधित्व: राज्यों को उनकी जनसंख्या के आधार पर राज्यसभा में प्रतिनिधित्व दिया जाता है। बड़े राज्यों में छोटे राज्यों की तुलना में अधिक सीटें और प्रभाव होता है।
- राज्यपाल: राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, जिसे केंद्र की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। राज्यपाल पर प्रायः केंद्रीय अभिकर्त्ता के रूप में कार्य करने और राज्य सरकार के मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया जाता है।
आगे की राह
- अंतर-राज्य परिषद् की भूमिका को दृढ़ करना, जो एक संवैधानिक निकाय है जो सामान्य हित के विभिन्न मुद्दों पर केंद्र और राज्यों के बीच संवाद और परामर्श की सुविधा प्रदान करती है।
- राजकोषीय संघवाद प्रणाली में सुधार, जो केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों का आवंटन निर्धारित करता है।
- राज्यसभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व बढ़ाना, जो संसद का उच्च सदन है जो राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है। राज्यों को राज्यसभा में अधिक सीटें मिलनी चाहिये और राज्यों को प्रभावित करने वाले कानून में राज्यसभा को अधिक अधिकार होना चाहिये।
- राज्यपाल को अपनी भूमिका का सम्मान करते हुए केंद्र और राज्य के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना चाहिये, न कि केंद्रीय अभिकर्त्ता के रूप में। राज्यपाल को भी राज्य सरकार के मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिये और राज्य विधानमंडल एवं मुख्यमंत्री के लोकतांत्रिक जनादेश का सम्मान करना चाहिये।