समावेशी विकास की अवधारणा बताते हुए सामाजिक-आर्थिक विकास के क्षेत्र में इसकी प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- समावेशी विकास के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- सामाजिक-आर्थिक विकास में समावेशी विकास के सिद्धांतों का उल्लेख कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
OECD के अनुसार, समावेशी विकास का आशय ऐसे आर्थिक विकास से है जिसके लाभ पूरे समाज में उचित रूप से वितरित होते हों और इसमें सभी को अवसर प्राप्त हों। इसमें विकास के पारंपरिक उपागमों से परे सामाजिक संकेतकों को ध्यान में रखने के साथ यह सुनिश्चित किया जाता है कि हाशिये पर रहने वाले समूह सक्रिय रूप से विकास प्रक्रिया में भाग लें और इससे लाभान्वित हों।
मुख्य भाग:
समावेशी विकास के सिद्धांत:
- भागीदारी: इसमें यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सभी लोग (आय, लिंग, जातीयता, विकलांगता या स्थान से परे) आर्थिक गतिविधि में योगदान दे सकें और उससे लाभ उठा सकें।
- समानता: आय, धन और अवसरों में असमानताओं को कम करने के साथ सामाजिक गतिशीलता एवं समावेशन को बढ़ावा देना।
- विकास: उत्पादकता, प्रतिस्पर्द्धात्मकता और नवाचार को बढ़ाना, जिससे अधिक एवं बेहतर रोज़गार सृजित हो सकें।
- स्थिरता: आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय उद्देश्यों को संतुलित करना, जिससे भावी पीढ़ियों के लिये प्राकृतिक संसाधनों एवं पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित किया जा सके।
- स्थिरता: व्यापक आर्थिक स्थिरता हासिल करना, जिससे राजकोषीय उत्तरदायित्व के साथ आर्थिक असंतुलन के प्रति अनुकूलन बनाए रखा जा सके।
सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्त्व:
- निर्धनता में कमी के साथ साझा समृद्धि को बढ़ावा: इससे समावेशी विकास को बढ़ावा मिलने के साथ निर्धनता में कमी आती है।
- बेहतर रोज़गार सृजन, सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा मिलने तथा मानव विकास में निवेश होने से हाशिये पर रहने वाले समूहों को आर्थिक भागीदारी के साथ बेहतर जीवन स्तर प्राप्त हो सकेगा।
- सामाजिक स्थिरता और एकजुटता: असमानताओं को दूर करने तथा न्यायसंगत अवसरों को बढ़ावा देने से सामाजिक तनाव कम होने के साथ निष्पक्षता एवं सामाजिक एकजुटता की भावना को बढ़ावा मिल सकता है। जिससे दीर्घकालिक स्तर पर सतत् विकास हेतु अधिक स्थिर वातावरण प्राप्त होता है।
- उत्पादकता में वृद्धि एवं नवाचार: कुशल और स्वस्थ कार्यबल की शिक्षा तथा प्रौद्योगिकी तक बेहतर पहुँच होने से अर्थव्यवस्था में उत्पादकता एवं नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है। इससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने के साथ समावेशी विकास को बढ़ावा मिलता है।
- सतत् विकास: इससे पर्यावरण संरक्षण एवं आर्थिक विकास के बीच संतुलन होने से सतत् विकास सुनिश्चित होता है।
- यह संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य गरीबी को समाप्त करना, पृथ्वी की रक्षा करना तथा सभी के लिये शांति एवं समृद्धि सुनिश्चित करना है।
निष्कर्ष:
सतत् विकास हेतु समावेशी विकास महत्त्वपूर्ण है, जिससे एक ऐसे न्यायपूर्ण समाज का आधार तैयार होता है जिसमें होने वाली प्रगति से सभी को लाभ होने के साथ समानता और समृद्धि को बढ़ावा मिलता है।