1960 के दशक में शुद्ध खाद्य आयातक से भारत विश्व में एक शुद्ध खाद्य निर्यातक के रूप में उभरा। कारण दीजिये। ( 250 शब्द, UPSC मुख्य परीक्षा 2023)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- वर्ष 1960 के दशक में भारत के शुद्ध खाद्य आयातक होने के ऐतिहासिक संदर्भ का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारत को शुद्ध आयातक से शुद्ध खाद्य निर्यातक में बदलने के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारकों पर चर्चा कीजिये।
- इससे संबंधित चुनौतियों एवं उनसे निपटने के महत्त्व पर चर्चा करते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
1960 के दशक के बाद से, जब इसे दीर्घकालिक भोजन की कमी के कारण अन्य देशों से आयात और खाद्य सहायता पर निर्भर रहने के लिये मजबूर होना पड़ा, भारत ने खाद्यान्न का उत्पादन एवं निर्यात करने की अपनी क्षमता में काफी प्रगति की है।
WTO की व्यापार सांख्यिकी समीक्षा (2022) के अनुसार, भारत वैश्विक कृषि निर्यातकों की शीर्ष 10 रैंकिंग में शामिल था।
मुख्य भाग:
प्रमुख कारक:
- हरित क्रांति: 1960 के दशक के मध्य में शुरू हुई हरित क्रांति से कृषि उत्पादकता, खाद्यान्न उत्पादन और बेहतर सिंचाई बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा मिला।
- सरकारी नीतियाँ: न्यूनतम समर्थन मूल्य, e-NAM, सब्सिडीयुक्त इनपुट, बेहतर खरीद प्रणाली जैसी सहायक सरकारी नीतियों ने किसानों को खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया।
- अनुसंधान और विकास: कृषि अनुसंधान और विकास में निवेश से बेहतर प्रौद्योगिकियों एवं तरीकों को अपनाने में सहायता मिली। उदाहरण के लिये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी: कृषि और संबद्ध क्षेत्रों जैसे- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग आदि में निजी क्षेत्र की भागीदारी से बेहतर बुनियादी ढाँचे, बाज़ार पहुँच और बाज़ार कीमतें जैसे ई-चौपाल, टाटा किसान केंद्र आदि को बढ़ावा मिलता है।
- फसलों का विविधीकरण: सरकार का ध्यान भारत की खाद्य आपूर्ति में विविधता लाने पर है, जैसे- प्रौद्योगिकी मिशन, फसल विविधीकरण कार्यक्रम (CDP) आदि शुरू करना।
- व्यापार उदारीकरण: 1990 के दशक में तथा उसके उपरांत व्यापार उदारीकरण ने भी बेहतर निर्यात में योगदान दिया।
- वैश्विक मांग: लगातार बढ़ते विश्व बाज़ारों में अधिक वैश्विक मांग ने भी भारतीय कृषि की संभावनाओं को बढ़ावा दिया है।
निष्कर्ष:
हालाँकि भारत ने शुद्ध खाद्य निर्यातक बनने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं जिनमें जलवायु परिवर्तन, सतत् कृषि, जल प्रबंधन शामिल हैं, साथ ही यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि निर्यात का लाभ छोटे एवं सीमांत किसानों तक पहुँचे।
इन चुनौतियों से निपटने से वैश्विक खाद्य बाज़ार में भारत की स्थिति और मज़बूत होने के साथ ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।