मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद और नैतिक अहंकारवाद के बीच अंतर स्पष्ट कीजिये। मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद किस प्रकार से नैतिक अहंकारवाद के समक्ष चुनौती उत्पन्न करता है? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद और नैतिक अहंकारवाद की अवधारणाओं पर संक्षेप में चर्चा करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद एवं नैतिक अहंकारवाद के बीच अंतर बताने के साथ चर्चा कीजिये कि मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद किस प्रकार से नैतिक अहंकारवाद के लिये चुनौती प्रस्तुत करता है।
- मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद और नैतिक अहंकारवाद दो अलग-अलग सिद्धांत हैं जो मानवीय कार्यों के पीछे की प्रेरणाओं और नैतिक निर्णय लेने का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांतों को संबोधित करते हैं। दोनों अवधारणाओं में स्व-हित की धारणा शामिल होने के साथ यह अपने उद्देश्य और निहितार्थ में भिन्न हैं।
मुख्य भाग:
मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद और नैतिक अहंकारवाद के बीच अंतर:
मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद |
नैतिक अहंकारवाद |
- इससे संबंधित विभिन्न सिद्धांतों में दावा किया गया है कि व्यक्ति हमेशा अधिकतम खुशी या कल्याण की इच्छा से प्रेरित होकर, अपने स्वयं के हित में कार्य करते हैं।
- यह मुख्य रूप से मानव व्यवहार का वर्णन करने से संबंधित है, न कि यह निर्धारित करने से कि व्यक्तियों को कैसे व्यवहार करना चाहिये।
- इसके अनुसार प्रतीत होता है कि परोपकारी कार्य अंततः स्व-हित से प्रेरित होते हैं, क्योंकि इससे व्यक्ति आंतरिक संतुष्टि का अनुभव कर सकते हैं या दूसरों की मदद करने से व्यक्तिगत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
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- इससे संबंधित मानक सिद्धांत यह निर्धारित करते हैं कि व्यक्तियों को अपने स्वहित में कार्य करना चाहिये, आत्म-केंद्रित कार्यों की नैतिक शुद्धता पर जोर देना चाहिये।
- मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद के विपरीत, नैतिक अहंकारवाद नैतिक दावों से संबंधित है, जिसमें निहित है कि व्यक्तियों का नैतिक कर्त्तव्य है कि वे अपनी भलाई और हितों को दूसरों से ऊपर प्राथमिकता दें।
- इसमें सुझाया गया है कि अपने स्वार्थ में कार्य करना न केवल एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है बल्कि नैतिक रूप से भी सही है।
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मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद द्वारा नैतिक अहंकारवाद के समक्ष उत्पन्न चुनौती: मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद, नैतिक अहंकारवाद के लिये निम्नलिखित तरीकों से चुनौती प्रस्तुत करता है:
- मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद द्वारा नैतिक अहंकारवाद के लिये चुनौती प्रस्तुत करने का एक तरीका नैतिक विकल्प की संभावना को सीमित करना है।
- यदि मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद सत्य है, तो लोग अपने स्वार्थ के अलावा कोई अन्य कार्य नहीं कर सकते हैं।
- इसका तात्पर्य यह है कि नैतिक अहंकारवाद मानवीय कार्यों के लिये कोई मार्गदर्शन या औचित्य प्रदान नहीं कर सकता है, क्योंकि लोग पहले से ही वही कर रहे हैं जो उन्हें लगता है कि उनके लिये सबसे उचित है।
- नैतिक अहंकारवाद उस दशा में निरर्थक या अप्रासंगिक होगा जहाँ मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद सत्य है।
- स्व-हित की अवधारणा की सुसंगतता पर सवाल उठाना भी एक ऐसा आयाम है जिससे मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद, नैतिक अहंकारवाद के लिये चुनौती प्रस्तुत करता है।
- यदि मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद सत्य हो तो लोगों को इस बात का स्पष्ट या सुसंगत बोध नहीं हो सकता है कि उनका स्वार्थ क्या है और वे ऐसे आवेगों, भावनाओं या आदतों में संलग्न हो सकते हैं जो उनके दीर्घकालिक कल्याण के लिये अनुकूल नहीं हैं।
निष्कर्ष:
मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद में अंतर्निहित स्वार्थ को महत्त्व दिया जाता है जबकि नैतिक अहंकारवाद इसे नैतिक रूप से सही बताता है। मनोवैज्ञानिक अहंकारवाद और नैतिक अहंकारवाद के बीच की व्याख्या के बीच संघर्ष से तनाव उत्पन्न होता है, जिससे स्व-हित की आवश्यकता एवं इसके नैतिक आधार के बारे में सवाल उठता है।