भारत में मानव विकास आर्थिक विकास के साथ कदमताल करने में विफल क्यों हुआ? ( 250 शब्द, UPSC मुख्य परीक्षा 2023)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- आर्थिक विकास एवं मानव विकास की अवधारणा का संक्षेप में परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि भारत में मानव विकास एवं आर्थिक विकास के बीच समन्वय क्यों नहीं हो पाया है।
- इस बात पर प्रकाश डालते हुए निष्कर्ष दीजिये कि भारत ने कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद मानव विकास में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
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परिचय:
मानव विकास का तात्पर्य शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, लैंगिक समानता और जीवन की समग्र गुणवत्ता के माध्यम से लोक कल्याण को बढ़ावा देना है जबकि आर्थिक विकास का तात्पर्य विकास, रोज़गार और स्थायी संसाधन दक्षता के माध्यम से समृद्धि के लिए निरंतर प्रयास करने से है।
मुख्य भाग:
भारत में आर्थिक विकास एवं मानव विकास के बीच असमानता का पता कई जटिल और परस्पर संबंधी कारकों से लगाया जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं:
- आय असमानता: भारत में लगातार आय असमानता धनाढ्य लोगों को असंगत रूप से लाभ पहुँचाती है, जिससे आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के लिये स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और बुनियादी सेवाओं तक समान पहुँच में बाधा उत्पन्न होती है।
- शिक्षा संबंधी असमानताएँ: आर्थिक विकास के बावजूद भारत को उच्च ड्रॉपआउट दर, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और खराब गुणवत्ता, मानव पूंजी विकास तथा कार्यबल भागीदारी को सीमित करने जैसी शिक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- स्वास्थ्य देखभाल असमानताएँ: असमान स्वास्थ्य देखभाल पहुँच, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च बीमारी के बोझ और बाल मृत्यु दर में योगदान करती है, मानव विकास संकेतकों को प्रभावित करती है, जो स्वच्छ पानी तथा स्वच्छता तक सीमित पहुँच से जुड़ी है।
- लैंगिक असमानता: भारत में लैंगिक असमानता महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और आर्थिक अवसरों तक पहुँच को प्रतिबंधित करती है, जबकि लिंग आधारित हिंसा और भेदभाव उनके विकास में और बाधा डालते हैं।
- सामाजिक बहिष्कार: भारत की जाति व्यवस्था और सामाजिक पदानुक्रम ऐतिहासिक रूप से विभिन्न समुदायों को हाशिये पर रखते हैं, उनके अवसरों को सीमित और मानव विकास परिणामों को प्रभावित करते हैं।
- अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा संजाल: भारत के कल्याण कार्यक्रम अक्सर कमज़ोर आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने, गरीबी और कुपोषण के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहते हैं।
- पर्यावरणीय क्षरण: आर्थिक विकास के लिये सतत् विकास और पर्यावरणीय क्षरण के दीर्घकालिक परिणाम होते हैं, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और संसाधनों की क्षीणता से स्वास्थ्य को खतरा होता है।
- शासन की चुनौतियाँ: कमज़ोर शासन व्यवस्था, भ्रष्टाचार और अक्षम नौकरशाही नीतियों एवं कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा बन सकती है।
निष्कर्ष:
हालाँकि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हासिल की है और मानव विकास भी आर्थिक विकास की ओर गतिशील है, उदहारण के लिये वर्ष 1990 में भारत का HDI स्कोर 0.429 था, जो वर्ष 2021 तक बढ़कर 0.633 हो गया।