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प्रश्न :
"अधिकतम लोगों का अधिकतम कल्याण" मात्रात्मक उपयोगितावाद का एक मूलभूत सिद्धांत है। सार्वजनिक नीति निर्माण में व्यक्तिगत अधिकारों पर मात्रात्मक परिणामों को प्राथमिकता देने के नैतिक निहितार्थों की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
21 Dec, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मात्रात्मक उपयोगितावाद की संक्षिप्त व्याख्या के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- व्यक्तिगत अधिकारों पर मात्रात्मक परिणामों को प्राथमिकता देने के नैतिक निहितार्थों पर चर्चा कीजिये।
- सार्वजनिक नीति निर्माण में सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता को दोहराते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
"मात्रात्मक उपयोगितावाद का उद्देश्य समग्र कल्याण को अधिकतम करना होता है। फिर भी इस सिद्धांत को सार्वजनिक नीति में लागू करने से नैतिक चिंताओं को बढ़ावा मिलता है, खासकर जब इसमें मात्रात्मक परिणामों के लिये व्यक्तिगत अधिकारों से समझौता होता हो।
मुख्य भाग:
नैतिक निहितार्थ:
- व्यक्तिगत अधिकारों की उपेक्षा: समग्र कल्याण को अधिकतम करना, व्यक्तिगत अधिकारों की उपेक्षा या उल्लंघन का कारण बन सकता है। कुछ मामलों में बहुसंख्यकों के कथित कल्याण के लिये अल्पसंख्यक समूहों या व्यक्तियों के अधिकारों का बलिदान किया जा सकता है।
- अन्याय की संभावना: उपयोगितावादी निर्णय-प्रक्रिया उन कार्यों को उचित ठहरा सकती है, जो बहुसंख्यकों के लिये फायदेमंद होते हुए भी, कुछ व्यक्तियों या अल्पसंख्यक समूहों के लिये अन्यायपूर्ण या अनुचित माने जा सकते हैं। इससे लाभ के समान वितरण के संबंध में नैतिक चिंताएँ पैदा होती हैं।
- अल्पसंख्यकों के हितों की अनदेखी: केवल बहुसंख्यकों के कल्याण के परिणामस्वरूप अल्पसंख्यक हितों, जरूरतों या सांस्कृतिक मूल्यों को हाशिये पर रखा जा सकता है। इससे सामाजिक न्याय एवं सार्वजनिक नीतियों की समावेशिता पर प्रश्न उठता है।
- दीर्घकालिक परिणाम: उपयोगितावाद से अक्सर अल्पकालिक परिणामों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है जिससे तत्काल खुशी अधिकतम होती है। इससे संभावित दीर्घकालिक परिणामों को नजरअंदाज किया जा सकता है जिससे ऐसे निर्णयों की स्थिरता एवं इसके नैतिक निहितार्थों के संबंध में प्रश्न उठ सकते हैं।
निष्कर्ष:
मात्रात्मक उपयोगितावाद को, अधिकतम कल्याण को सुनिश्चित करते हुए मात्रात्मक परिणामों एवं व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन के साथ लागू किया जाना चाहिये। एक न्यायसंगत समाज हेतु मानवीय अनुभवों एवं मूल्यों की जटिलताओं को स्वीकार करते हुए, सक्षम नैतिक निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।
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