निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव आयोग भारतीय लोकतंत्र की गरिमा को सुनिश्चित करने हेतु संवैधानिक एजेंसी के रूप में प्रतिस्थापित है परंतु हाल ही में उभरे अनेक विवादों ने इसकी शक्ति एवं निष्पक्षता के विषय में कई सवाल खड़े किये हैं। इन विवादों पर चर्चा करते हुए बताएँ कि चुनाव आयोग को कैसे
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- भारतीय चुनाव आयोग की शक्तियों तथा कार्यों का उल्लेख करें।
- हाल के विवादों के विषय में बताएं जो इसकी निष्पक्षता और शक्ति के ऊपर सवाल खड़े करते हैं।
- चुनाव आयोग को सशक्त बनाने के उपायों की चर्चा करें ।
- निष्कर्ष।
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अनुच्छेद 324 के तहत भारतीय चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जो कि भारत में चुनाव कार्य को निष्पक्ष रूप से संपन्न कराने के लिये उत्तरदायी है। इसे जनवरी 1950 में स्थापित किया गया था तथा संसद, राज्य विधायिका और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पद हेतु चुनाव कार्य संपन्न कराने का ज़िम्मा दिया गया।
कार्य तथा शक्तियाँ:
- यह को प्रत्येक चुनाव में राजनीतिक दलों के लिये आदर्श आचार संहिता लागू करता है ताकि लोकतंत्र की गरिमा कायम रहे।
- यह राजनीतिक दलों को विनियमित करता है तथा उन्हें चुनाव लड़ने के लिये पंजीकृत करता है।
- यह प्रत्येक चुनाव में प्रत्याशी द्वारा धन खर्च किये जाने की सीमा तय करता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि सभी राजनीतिक दल अपनी वार्षिक एवं आर्थिक रिपोर्ट जमा करें।
- आयोग ओपिनियन पोल को रोक सकता है चुनाव के बाद दिशा-निर्देशों के उल्लंघन के मामले में यह सदस्यों को अयोग्य ठहरा सकता है।
- सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालय किसी प्रत्याशी को दोषी करार दिये जाने के मामले में आयोग से सलाह ले सकते हैं।
- चुनाव आयोग ने हालाँकि समय के साथ निष्पक्ष चुनावों का आयोजन करके लोकतंत्र की सफलता सुनिश्चित की है परंतु हाल के कुछ विवादों ने इसकी निष्पक्षता एवं शक्ति के ऊपर सवाल खड़े किये हैं जैसे किः
- कानूनी अनुमोदन के अभाव में आदर्श आचार संहिता का बारंबार उल्लंघन।
- चुनाव में नकदी तथा बाहुबल के प्रयोग को रोक पाने में असफलता।
- कानून का उल्लंघन करने पर दंडित करने की सीमित शक्तियाँ।
- सोशल मीडिया द्वारा चुनाव के 48 घंटे पूर्व चुनाव प्रचार का उल्लंघन।
- पेड न्यूज के बढ़ते मामले तथा जनसंपर्क एजेंसियाँ नई चुनौतियाँ खड़ी कर रही हैं।
- हाल में संवेदनशील क्षेत्रें में शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न कराने की चुनौती।
- हाल में ईवीएम मशीन में छेड़छाड़ के आरोप से चुनावों की निष्पक्षता पर सवालिया निशान खड़े हुए हैं।
- केंद्र सरकार द्वारा चुनाव आयोग की सलाह के बिना जनप्रतिनिधि अधिनियम में संशोधन करना।
सुधार हेतु सुझावः
- मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति एक पैनल द्वारा किये जाने की आवश्यकता है जिसमें प्रधानमंत्री प्रतिपक्ष का नेता तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाए।
- कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात् पुनर्नियुक्ति का प्रावधान न हो।
- आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के संबंध में कार्रवाई हेतु पर्याप्त शक्तियाँ प्रदान की जाएँ।
- चुनावी व्यय का लेखापरीक्षण।
- सरकार द्वारा चुनावों का वित्तपोषण।
- भ्रष्टाचार तथा आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे जनप्रतिनिधियों के लिये फास्ट ट्रैक न्यायालयों की स्थापना।
- चुनाव आयोग को वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की जाए तथा इसके लिए आवंटित बजट को संचित निधि से जारी किया जाए।
भारत में मुक्त तथा निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने में भारतीय चुनाव आयोग को विश्व भर में स्वर्ण मानक के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसने प्रभावी सहज तथा पेशेवर तरीके से चुनाव संपन्न कराने में अपने मानकों को सदैव उच्चता प्रदान की है तथा नवीन तकनीकों को लागू करने और चुनावी प्रक्रिया एवं व्यवस्था के मध्य सामंजस्य बिठाने में सदैव अग्रणी रहा है। यहाँ तक कि ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोपों को सिद्ध करने के लिये चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को खुली चुनौती दी थी। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत में प्रयुक्त ईवीएम के सुरक्षा मानकों की प्रशंसा की जाती है। सभी ईवीएम के साथ मशीनों को लगाए जाने के लिये धन जारी कर दिया गया है। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से यह भी कहा है कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता तथा सत्यनिष्ठता सभी हितधारकों की साझी ज़िम्मेदारी है।