खपत पैटर्न और विपणन दशाओं में परिवर्तन के संदर्भ में, भारत में फसल प्रारूप (क्रॉपिंग पैटर्न) में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिये। ( 250 शब्द, UPSC मुख्य परीक्षा 2023)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- फसल पैटर्न की अवधारणा तथा कृषि में इसके महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक कारकों सहित, फसल पैटर्न को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों पर चर्चा कीजिये।
- उत्तर में चर्चा किये गए मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष लिखिये।
|
परिचय:
फसल प्रारूप में परिवर्तन उपभोक्ताओं की उभरती मांग, विपणन गतिशीलता और आर्थिक कारकों को दर्शाते हैं, साथ ही ये खपत पैटर्न तथा विपणन गतिशीलता के साथ निकटता से संबंधित हैं।
मुख्य भाग:
विपणन दशाओं में परिवर्तन का फसल प्रारूप पर प्रभाव:
- बेहतर सड़क और रेल कनेक्टिविटी के माध्यम से किसानों का बेहतर बाज़ार तक पहुँच में विस्तार हुआ है और इससे कुछ फसलों की कृषि को प्रोत्साहन भी मिला है।
- अल्फांसो आम, बासमती चावल जैसी कुछ फसलों के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच होने से उनकी कृषि में वृद्धि हुई है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तंत्र जैसी सरकारी पहल किसानों को इसके अंतर्गत आने वाली फसलें उगाने के लिये प्रोत्साहित करती है।
- राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ई-NAM) का उद्देश्य फसल उत्पादकों को बेहतर मूल्य के साथ बाज़ार तक आसान पहुँच प्रदान करना है।
खपत पैटर्न में परिवर्तन का फसल प्रारूप पर प्रभाव:
- आय में वृद्धि और शहरीकरण के साथ प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों, फलों, सब्जियों, डेयरी, पोल्ट्री आदि की मांग में भी वृद्धि हुई है।
- स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण जैविक और पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ी है।
- रसायन-मुक्त भोजन की मांग में वृद्धि के साथ, हाइड्रोपोनिक्स और एरोपोनिक्स फसलों में वृद्धि के कारण विदेशी भोजन की मांग में भी वृद्धि देखी जा सकती है।
निष्कर्ष:
उपभोक्ता की प्राथमिकता, विपणन दशाएँ, सरकारी नीतियाँ, तकनीकी प्रगति सहित अन्य कई कारक फसल प्रारूप में परिवर्तन को आकार देते हैं।