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प्रश्न :
‘नैतिक अंतर्ज्ञान’ से ‘नैतिक तर्कशक्ति’ का अंतर स्पष्ट करते हुए उचित उदाहरण दीजिये। (150 शब्द)
07 Dec, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- नैतिक अंतर्ज्ञान और नैतिक तर्क दोनों अवधारणाओं को संक्षेप में परिभाषित करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- उपयुक्त उदाहरणों की सहायता से इनके बीच अंतर स्पष्ट कीजिये।
- मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष लिखिये।
परिचय:
नैतिक अंतर्ज्ञान का आशय सही या गलत की तत्काल और सहज भावना से है, जिसका हम तब सामना करते हैं जब हम किसी नैतिक दुविधा में होते हैं जबकि नैतिक तर्क किसी नैतिक निर्णय को उचित ठहराने या उसकी आलोचना करने के लिए उचित तर्कों और सिद्धांतों का उपयोग करने की प्रक्रिया है।
मुख्य भाग:
नैतिक अंतर्ज्ञान नैतिक तर्कशक्ति इसमें सचेत विचार-विमर्श के बिना नैतिक दुविधाओं के लिये तत्काल, अंतःस्तरीय प्रतिक्रियाएँ शामिल होती हैं। इसमें नैतिक विकल्पों का सचेत और तर्कसंगत मूल्यांकन शामिल होता है। गहराई से समाहित नैतिक मूल्यों और भावनाओं पर निर्भर करता है। नैतिक निर्णय पर पहुँचने के लिये तार्किक तर्कों और सिद्धांतों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण सहानुभूति महसूस करना और सड़क पर बेघर व्यक्ति की बिना सोचे-समझे सहायता करना। इसके प्रभाव और प्रभावशीलता पर शोध करने के बाद किसी चैरिटी को दान देने का निर्णय लेना। पर्यावरण की रक्षा के प्रति ज़िम्मेदारी का एहसास स्वतः ही होने लगता है। प्रस्तावित पर्यावरण नीति के फायदे और नुकसान पर चर्चा करने के लिये एक संरचित बहस में शामिल होना। किसी मित्र से वादा तोड़ने के बाद अपराध बोध का अनुभव करना। किसी विशिष्ट स्थिति में वादा तोड़ने के परिणामों और नैतिक निहितार्थों का विश्लेषण करना। बड़ों की गरिमा का सहज आदर करना। गरिमा के सिद्धांतों को उचित ठहराने के लिये दार्शनिक चर्चा में संलग्न होना। किसी भेदभावपूर्ण कृत्य को देखकर गुस्से से प्रतिक्रिया करना। कानूनी और नैतिक तर्क का उपयोग करके भेदभावपूर्ण प्रथाओं के खिलाफ तर्क तैयार करना। बिना सोचे-समझे LGBTQIA+ व्यक्तियों के प्रति स्वचालित रूप से असुविधा या घृणा महसूस होना। व्यक्ति तत्काल भावनात्मक असुविधा का अनुभव किये बिना, जान-बूझकर LGBTQIA+ व्यक्तियों के प्रति अपने दृष्टिकोण का आकलन कर सकते हैं। निष्कर्ष:
नैतिक अंतर्ज्ञान अक्सर उन स्थितियों में अधिक तार्किक होता है जहाँ त्वरित निर्णय की आवश्यकता होती है या जब स्पष्ट नैतिक नियम आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। जटिल, अपरिचित या नैतिक रूप से अस्पष्ट स्थितियों में नैतिक तर्क आवश्यक है।
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