सीमा पार से शत्रुओं द्वारा हथियार/गोला-बारूद, ड्रग्स आदि मानवरहित हवाई वाहनों (यू.ए.वी.) की मदद से पहुँचाया जाना हमारी सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा है। इस खतरे से निपटने के लिये किये जा रहे उपायों पर टिप्पणी कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये, यूपीएससी मेन्स 2023)
उत्तर :
मानवरहित हवाई वाहन (यू.ए.वी.) "दूरस्थ रूप से संचालित या स्व-चालित विमान होते हैं जो कैमरे, सेंसर, संचार उपकरण या हथियार/गोला-बारूद, ड्रग्स के साथ अन्य पेलोड से लेस हो सकते हैं।" इनका उपयोग सीमा पार के विरोधियों द्वारा किया जा सकता है और यह आंतरिक सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा हो सकता है।
चिंता का कारण:
- ये अधिक ऊँचाई और कम गति पर उड़ सकते हैं जिससे सीमा सुरक्षा बलों के लिये इनका पता लगाना तथा इन्हें रोकना मुश्किल हो जाता है।
- इन्हें दूर से नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे घुसपैठ के प्रयासों में विरोधियों को जोखिम कम हो जाता है।
- ड्रोन का उपयोग जासूसी उद्देश्यों के लिये भी किया जा सकता है, जिससे अनधिकृत व्यक्तियों को सैन्य प्रतिष्ठानों, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और अन्य प्रमुख लक्ष्यों के बारे में संवेदनशील जानकारी एकत्रित करने में सहायता मिलती है।
खतरों के समाधान हेतु भारत सरकार द्वारा किये गये उपाय:
- तकनीकी उन्नयन: एंटी-ड्रोन हथियारों एवं डिटेक्शन सिस्टम की तैनाती जैसे रडार, जैमर आदि के साथ एंटी-ड्रोन सिस्टम जैसे स्काईवॉल 100 और ड्रोनगन टैक्टिकल चिमेरा को विकसित करने के प्रयास करना।
- सैन्य बलों द्वारा खुफिया जानकारी जुटाना: बी.एस.एफ. द्वारा गश्त एवं अवलोकन चौकियों के माध्यम से चौबीसों घंटे निगरानी करने के साथ सीमा पर फेंसिंग, लाइटिंग की व्यवस्था की गई है।
- संस्थागत पहल: गृह मंत्रालय ने विरोधी ड्रोनों का मुकाबला करने के लिये उपलब्ध तकनीक का मूल्यांकन करने हेतु एंटी ड्रोन प्रौद्योगिकी समिति का गठन किया है।
- सरकारी सहयोग: उच्च स्तरीय ड्रोन के विकास हेतु इज़राइल जैसे देशों के साथ सक्रिय सहयोग पर बल दिया गया है।
- DRDO निशांत: इसे मुख्य रूप से दुश्मन के क्षेत्र की खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। इसका उपयोग टोही, प्रशिक्षण, निगरानी एवं लक्ष्य भेदन के लिये भी किया जाता है।
- मानवरहित विमान प्रणाली को काउंटर (C-UAS) करने की रणनीति: इसमें संचार लाइनों को अवरुद्ध करना और अवांछित ड्रोन को गिराना शामिल है।
प्रौद्योगिकी के उद्भव के साथ ही आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न हुआ है। इसलिये समय की मांग है कि एक ऐसी व्यापक ड्रोन रणनीति विकसित की जाए जिसमें उच्च क्षमता वाले ड्रोन के विकास हेतु निजी क्षेत्र की भागीदारी को महत्त्व दिया जाए।