क्या आप सोचते हैं कि, आधुनिक भारत में विवाह एक संस्कार के रूप में अपना मूल्य खोता जा रहा है? (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये, यूपीएससी मुख्य परीक्षा- 2023)
उत्तर :
विवाह, कानूनी और सामाजिक रूप से मान्यता प्राप्त एक समझौता है जिसका उद्देश्य परिवार जैसी संस्था एवं सामाजिक मानदंडों का पालन करना है, भारतीय संस्कृति तथा धर्म में इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। हालाँकि आधुनिक भारत में एक संस्कार के रूप में इसका महत्त्व बढ़ रहा है।
वैवाहिक मूल्यों में कमी लाने वाले तर्क:
- बदलते मानदंड: वर्तमान में समाज पारंपरिक विवाह पर कम ज़ोर देते हुए विविध संबंधों को स्वीकार करता है। हाल के आँकड़ों से ज्ञात होता है कि वर्ष 2019 में 'कभी विवाह न करने वाली' युवा आबादी में 26.1% की वृद्धि हुई है।
- व्यक्तिगत स्वायत्तता: व्यक्तिगत स्वतंत्रता संबंधों में स्वायत्त विकल्पों की ओर ले जाती है, लिव-इन संबंधों के माध्यम से व्यवस्थित विवाह को चुनौती देती है और एकल जीवनशैली को बढ़ावा देती है।
- तलाक की घटनाओं में वृद्धि: तलाक की बढ़ती घटनाएँ विवाह की पवित्रता और स्थायित्व में गिरावट का संकेत देती हैं।
- आर्थिक स्वतंत्रता: महिला सशक्तीकरण का आह्वान पारंपरिक विवाह से परे विकल्पों का विस्तार करता है, पितृसत्ता को चुनौती देता है और इससे वैवाहिक पवित्रता संबंधी मूल्यों में कमी आती है।
वैवाहिक मूल्यों का समर्थन करने वाले तर्क:
- सामाजिक स्थिरता: विवाह पारिवारिक जीवन के लिये एक संरचित ढाँचा प्रदान कर सामाजिक स्थिरता के लिये आधार बनाता है।
- कानूनी सुरक्षा: यह विरासत, संपत्ति तथा चिकित्सा संबंधी निर्णयों में महत्त्वपूर्ण कानूनी अधिकार प्रदान करता है।
- धार्मिक महत्त्व: कई लोग विवाह को पवित्र, अपने धर्म से जुड़ी, नैतिक मूल्यों को स्थापित करने वाली व्यवस्था मानते हैं।
- मनोवैज्ञानिक सुरक्षा: विवाह अलगाव को कम करने, मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
संक्षेप में विवाह आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप है, यह समकालीन भारत में उभरती सामाजिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।