तेल प्रदूषण क्या है? समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके क्या प्रभाव हैं? भारत जैसे देश के लिये किस तरह से तेल प्रदूषण विशेष रूप से हानिकारक हैं?
उत्तर :
तेल प्रदूषण, जिसे तेल संदूषण अथवा तेल रिसाव के रूप में भी जाना जाता है, तेल टैंकरों, पाइपलाइनों, अपतटीय ड्रिलिंग या अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं से जुड़ी दुर्घटनाओं के कारण जल निकायों में कच्चे तेल या परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के निष्कासन को संदर्भित करता है।
तेल प्रदूषण का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
- समुद्री जीव-जंतुओं को नुकसान: समुद्री पक्षियों के पंखों, फर पर तेल फैलने अथवा लग जाने तथा त्वचा के उपरी भाग पर तेल लगने से उन्हें शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में समस्या पैदा हो सकती है, जिससे वे हाइपोथर्मिया के शिकार हो जाते है।
- विषाक्तता: कच्चे तेल के घटक समुद्री जीवों के लिये ज़हरीले होते हैं और वे उनके अंगों को नुकसान पहुँचाते हैं तथा प्रजनन प्रणाली को प्रभावित करते हैं।
- पर्यावास की क्षति: तेल रिसाव समुद्री जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण प्रवाल भित्तियों, समुद्री घास के मैदानों और दलदलों को नुकसान पहुँचाता है।
- खाद्य शृंखला में व्यवधान: जैवविविधता के नुकसान का व्यापक प्रभाव हो सकता है क्योंकि इसके तहत विभिन्न प्रजातियाँ एक दूसरे पर निर्भर होती हैं। उदाहरण के लिये, तेल संदूषण खाद्य शृंखला प्राथमिक उत्पादक पादपप्लवक को काफी क्षति पहुँचा सकता है।
तेल प्रदूषण का भारत जैसे देश पर प्रभाव:
- आर्थिक प्रभाव: भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि देश और तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है। तेल प्रदूषण मत्स्य पालन और पर्यटन उद्योगों को बाधित कर सकता है।
- पर्यावरणीय परिणाम: भारत समुद्री पारिस्थितिक विविधताओं वाला देश है, जिनमें प्रवाल भित्तियाँ, मैंग्रोव आदि शामिल हैं, तेल प्रदूषण जैवविविधता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: भारत की तटरेखा 7500 कि.मी. से अधिक लंबी है। तेल का रिसाव तटीय समुदायों और समुद्री भोजन पर निर्भर लोगों के लिये एक बड़ा स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
तेल प्रदूषण भारत के लिये चिंता का विषय है, देश के तटीय पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और तटीय समुदायों के कल्याण के लिये तेल रिसाव के प्रभावों को निम्नीकृत करने हेतु प्रयास किया जाना अत्यंत आवश्यक हैं।