उत्तर :
जीवन, स्वास्थ्य एवं विकास हेतु ताज़ा जल उपलब्ध होना आवश्यक है। हालाँकि आज विश्व ताज़े जल के संकट का सामना कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2 अरब से अधिक लोग ताज़े जल के अभाव वाले देशों में रहते हैं।
ताज़े जल के संसाधनों में गिरावट का प्रमुख कारण:
- जलवायु परिवर्तन: जलीय चक्र को बाधित करने में ग्लोबल वार्मिंग की प्रमुख भूमिका है, जिसके कारण वर्षा में बदलाव एवं ग्लेशियर पिघलने के साथ सूखा एवं बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे ताज़े जल के संसाधनों को नुकसान होता है।
- वर्ष 2018 में केप टाउन का "डे ज़ीरो" ऐसी ही स्थिति को दर्शाता है, जब लगातार वर्षों से पड़ रहे सूखे के कारण शहर में जल लगभग खत्म हो गया था।
- अति-निष्कर्षण: सिंचाई, खनन और अन्य माध्यमों से जल के अत्यधिक दोहन के कारण ताज़े जल में कमी आती है।
- सिंचाई प्रतिरूप में परिवर्तन के कारण वर्तमान में अरल सागर (जो कभी विश्व की चौथी सबसे बड़ी झील थी) विलुप्ति की कगार पर है।
- प्रदूषण: अनुपचारित अपशिष्ट जल, औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि अपवाह तथा ठोस अपशिष्ट के कारण ताज़ा जल प्रदूषित होने से इसकी उपलब्धता कम हो जाती है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 80% से अधिक अपशिष्ट जल अनुपचारित छोड़ दिया जाता है।
- प्राकृतिक जलाशयों की क्षति: जल भंडारण तथा निस्पंदन को नियंत्रित करने वाले आर्द्रभूमि, जंगलों एवं जलभृतों सहित पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होने से ताज़े जल की कमी होती है।
- आंध्र प्रदेश में कोल्लेरू झील ताज़े जल की सबसे बड़ी झीलों में से एक है, लेकिन यह तेज़ी से संकुचित होती जा रही है।
सुधार हेतु कुछ उपाय:
- वर्षा जल संचयन जैसी प्रथाओं को बढ़ावा देना (तमिलनाडु की 'नम्मा ऊरू-नम्मा वीतू' पहल)।
- संरक्षित कृषि जैसी कुशल कृषि पद्धतियों को अपनाया जाना चाहिये ताकि अधिक जल की बचत हो।
- स्मार्ट सिंचाई प्रणालियों के साथ उन नवीन समाधानों का उपयोग करना चाहिये जिनमें जल की बर्बादी कम हो। (जैसे- 'सर्वजल' परियोजना के तहत सौर ऊर्जा संचालित जल ATMs की स्थापना)।
- जल के उपयोग को कम करने के साथ जल फुटप्रिंट को कम करना।