विधायी कार्यों के संचालन में व्यवस्था एवं निष्पक्षता बनाए रखने में और सर्वोत्तम लोकतांत्रिक परंपराओं को सुगम बनाने में राज्य विधायिकाओं के पीठासीन अधिकारियों की भूमिका की विवेचना कीजिये। (10)
उत्तर :
विधानसभा अध्यक्ष और विधानपरिषद् अध्यक्ष, अनुच्छेद 178 एवं182 के अनुसार अपने संबंधित सदनों के पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं। वे प्रक्रिया के नियमों के अनुसार अपने सदनों के सुचारु कामकाज़ को सुनिश्चित करते हैं।
पीठासीन अधिकारियों की भूमिका:
- व्यवस्था बनाए रखना:
- पीठासीन अधिकारियों के पास यह सुनिश्चित करने के लिये कि सदन की मर्यादा बनी रहे, सदस्यों को निष्कासित करने, आदेश मंगवाने और बैठकें स्थगित करने के अधिकार है।
- यदि असंसदीय भाषा का प्रयोग किया जाता है या व्यक्तिगत हमले किये जाते हैं तो वे हस्तक्षेप कर सकते हैं।
- वे महाराष्ट्र में सदस्यों को अयोग्य ठहराते हुए उन्हें दंडित कर सकते हैं।
- निष्पक्षता बनाए रखना:
- पीठासीन अधिकारी सभी सदस्यों और सभी दलों के लिये समान भागीदारी के अवसर सुनिश्चित करते हैं।
- जबकि पीठासीन अधिकारी पहली बार में किसी मामले पर मतदान नहीं करते हैं, मतों के बराबर होने की स्थिति में वे निर्णायक मत दे सकते हैं।
- लोकतांत्रिक प्रथाओं को सुविधाजनक बनाना:
- वे विपरीत विचारों के साथ संवाद के लिये एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करते हैं।
- वे अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने और चर्चा में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने में मदद करते हैं।
- वे इस प्रक्रिया में संवैधानिक अनुपालन सुनिश्चित करते हैं।
अपने कर्त्तव्यों की पूर्ति सुनिश्चित करके राज्य विधानमंडलों के पीठासीन अधिकारी सदनों के लोकतांत्रिक और संवैधानिक रूप से अनुपालन वाले सत्र सुनिश्चित करते हैं।