प्राचीन भारत के विकास की दिशा में भौगोलिक कारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द, यूपीएससी मेन्स 2023)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- एक संक्षिप्त परिचय के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये जो आपके उत्तर के लिये संदर्भ निर्धारित करता है। प्राचीन भारत में इतिहास के पाठ्यक्रम को आकार देने में भूगोल के महत्त्व का उल्लेख कीजिये।
- भारत की भौगोलिक विशेषताओं का एक संक्षिप्त अवलोकन प्रदान कीजिये और चर्चा कीजिये कि प्रत्येक भौगोलिक कारक ने प्राचीन भारत के विकास में कैसे योगदान दिया।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
प्राचीन भारत के विकास को आकार देने में भौगोलिक कारकों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन कारकों में देश के विविध इलाके, जलवायु और प्राकृतिक संसाधन शामिल थे, जिन्होंने बदले में निपटान पैटर्न, कृषि प्रथाओं, व्यापार मार्गों आदि को प्रभावित किया।
मुख्य भाग:
प्रमुख भौगोलिक कारक और उनके प्रभाव:
- नदी प्रणालियाँ: सिंधु और गंगा जैसी बारहमासी नदियों ने हड़प्पा जैसी शहरी सभ्यताओं को बढ़ावा दिया, कृषि का समर्थन किया, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की और भारत में व्यापार एवं संचार को बढ़ावा दिया।
- पर्वत शृंखलाएँ: उत्तर में हिमालय ने प्राकृतिक सुरक्षा के रूप में काम किया, नदियों के लिये जल की आपूर्ति की और जलवायु को प्रभावित किया फिर भी खैबर तथा बोलन जैसे दर्रों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान एवं प्रवासन को बढ़ावा दिया।
- तटीय मैदान: अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के तटों ने दक्षिण-पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया तथा अफ्रीका के साथ व्यापार को बढ़ावा दिया। लोथल एवं मुज़िरिस जैसे शहर व्यापार केंद्र के रूप में विकसित हुए।
- वन क्षेत्र और पठार: घने वनों के परिणामस्वरूप लकड़ी, औषधि की आपूर्ति सहित जानवरों के लिये उचित परिवेश निर्माण हुआ। छोटानागपुर जैसे खनिज समृद्ध क्षेत्रों ने धातु विज्ञान और खनन को बढ़ावा दिया। नालंदा तथा बोधगया जैसे वन क्षेत्र बौद्ध केंद्रों के रूप में विकसित हुए।
- रेगिस्तानी और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र: थार रेगिस्तान ने आक्रमणों के खिलाफ एक प्राकृतिक बाधा के रूप में काम किया तथा अपनी शुष्क परिस्थितियों के बावजूद बीकानेर और जैसलमेर जैसे व्यापार केंद्रों को बढ़ावा दिया।
निष्कर्ष:
प्राचीन भारत के भूगोल ने इसकी सभ्यता, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और समाज को आकार दिया, दुनिया के साथ संबंधों को प्रभावित किया और इसकी विरासत को समृद्ध किया।