महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर में शिक्षा और राष्ट्रवाद के प्रति सोच में क्या अंतर था? (150 शब्द, यूपीएससी मेन्स 2023)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत महात्मा गांधी और रबींद्रनाथ टैगोर के संक्षिप्त परिचय से कीजिये।
- महात्मा गांधी और टैगोर के बीच वैचारिक मतभेदों पर चर्चा कीजिये।
- अपनी तुलना के मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिये।
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परिचय:
ब्रिटिश शासन से आज़ादी के एक समान लक्ष्य के बावजूद भारत की आज़ादी के प्रमुख व्यक्तित्व गांधी और टैगोर का शिक्षा एवं राष्ट्रवाद के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण था।
मुख्य भाग:
महात्मा गांधी और टैगोर के बीच मतभेद:
शिक्षा:
- गांधी: गांधी 'नई तालीम' या 'बुनियादी शिक्षा' की अवधारणा में विश्वास करते थे।
- उन्होंने एक समग्र शिक्षा की वकालत की जो व्यावहारिक, बौद्धिक और नैतिक कौशल को बढ़ावा देती है।
- उन्होंने अभिजात वर्ग-सामान्य जन के बीच के अंतर को समाप्त करने तथा व्यावहारिक शिक्षा को बढ़ावा देने पर बल दिया।
- टैगोर: टैगोर ने अधिक उदार और विश्वव्यापी शिक्षा का समर्थन किया।
- उन्होंने कला, रचनात्मकता और सांस्कृतिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये शांतिनिकेतन की स्थापना की।
- उनका दर्शन व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास पर ज़ोर देता है ताकि विश्व की विविध संस्कृतियों को समृद्ध बनाया जा सके।
राष्ट्रवाद:
- गांधी: उनके राष्ट्रवाद की विशेषता अहिंसा और 'सत्याग्रह' थी।
- गांधी का राष्ट्रवाद आत्मनिर्भरता और स्वराज के विचार में गहराई से निहित था।
- उन्होंने ब्रिटिश शासन को कमज़ोर करने के तरीके के रूप में ब्रिटिश वस्तुओं और संस्थानों के बहिष्कार के विचार को बढ़ावा दिया।
- टैगोर: रविंद्ररनाथ टैगोर का दृष्टिकोण परंपरावादी कम और तर्कसंगत ज़्यादा हुआ करता था।
- उन्होंने सांस्कृतिक एकता और सद्भाव पर ध्यान केंद्रित करते हुए सीमाओं से परे राष्ट्रवाद की कल्पना की।
- उन्होंने भारत की विरासत को पूर्व और पश्चिम के बीच एक पुल के रूप में देखा, उनका मानना था कि भारत को एकजुट करना चाहिये, अलग-थलग नहीं करना चाहिये।
निष्कर्ष:
गांधी ने अपने राष्ट्रवाद को आकार देने में व्यावहारिक शिक्षा और अहिंसा पर ध्यान केंद्रित किया। दूसरी ओर, टैगोर उदारवादी अवधारणा के साथ राष्ट्रवाद के बारे में सार्वभौमिक दृष्टिकोण रखते थे।