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प्रश्न :
संसदीय समितियाँ भारतीय लोकतंत्र का एक अनिवार्य हिस्सा हैं, जबकि उन्हें अपने कामकाज में कई चुनौतियों और सीमाओं का सामना करना पड़ता है। भारतीय संसदीय समितियों की भूमिका और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
31 Oct, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत संसदीय समितियों के संक्षिप्त परिचय से कीजिये और उनके अधिकार के लिये संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख कीजिये।
- शासन के विभिन्न पहलुओं में संसदीय समितियों की भूमिका एवं महत्त्व का वर्णन कीजिये।
- संसदीय समितियों के सामने आने वाली चुनौतियों एवं सीमाओं पर प्रकाश डालिये।
- संसदीय समितियों की कार्यप्रणाली और प्रभावशीलता में सुधार के लिये कुछ उपाय सुझाइये।
परिचय:
संसदीय समिति सांसदों का एक पैनल है जिसे सदन द्वारा नियुक्त या निर्वाचित किया जाता है या अध्यक्ष/सभापति द्वारा नामित किया जाता है। वे अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 118 से अपना अधिकार प्राप्त करते हैं। वे भारतीय लोकतंत्र का एक अनिवार्य हिस्सा हैं क्योंकि वे विभिन्न भूमिकाएँ और कार्य करते हैं जो विधायी प्रक्रिया की गुणवत्ता एवं प्रभावशीलता को बढ़ाते हैं।
मुख्य भाग
- संसदीय समितियों की कुछ भूमिकाएँ और कार्य:
- वे सरकार द्वारा प्रस्तावित बिलों और नीतियों को विधायी विशेषज्ञता व सुझाव प्रदान करती हैं।
- वे विधेयकों की विस्तार से जाँच करती हैं और अपने निष्कर्षों एवं सिफारिशों के आधार पर संशोधन का सुझाव देती हैं।
- वे एक लघु संसद के रूप में कार्य करती हैं, जो विभिन्न दलों, क्षेत्रों और समाज के वर्गों के विचारों तथा हितों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- वे सांसदों के बीच विचार-विमर्श, परामर्श और आम सहमति बनाने के लिये एक मंच प्रदान करती हैं।
- वे कार्यकारी शाखा की देख-रेख करती हैं और उसे उसके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराती हैं।
- वे मंत्रालयों और विभागों द्वारा कानूनों, नीतियों, योजनाओं और बजट के कार्यान्वयन की निगरानी करती हैं।
- वे सार्वजनिक हित और महत्त्व के मामलों की भी जाँच करती हैं।
- वे विधायी प्रक्रिया में सार्वजनिक भागीदारी और पारदर्शिता की सुविधा प्रदान करती हैं।
- वे विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय और सुझाव देने के लिये विशेषज्ञों, हितधारकों, समाजिक समूहों और नागरिकों को आमंत्रित करती हैं।
- संसदीय समितियों के समक्ष चुनौतियाँ एवं सीमाएँ:
- ‘पुअर रेफरल’ दर: केवल कुछ बिल ही आगे की जाँच के लिये समितियों को भेजे जाते हैं। कई विधेयक सदन में पर्याप्त जाँच या चर्चा के बिना पारित कर दिये जाते हैं।
- अनुशंसात्मक प्रकृति: समितियों के पास अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिये पर्याप्त शक्तियाँ नहीं हैं। सरकार इन सिफारिशों व सुझावों को मानने या लागू करने के लिये बाध्य नहीं है, समितियों के पास अपनी सिफारिशों की स्थिति पर नज़र रखने के लिये कोई अनुवर्ती तंत्र भी नहीं है।
- समय और संसाधनों की कमी: समितियों को सीमित समय के अंदर बड़ी संख्या में बिलों एवं संबंधित मुद्दों की जाँच करनी होती है। व्यापक जाँच के लिये उनके पास अक्सर पर्याप्त कर्मचारियों, अनुसंधान सहायता, आँकड़ों और जानकारी का अभाव होता है।
- सांसदों की कम उपस्थिति: समिति की बैठकों में सांसदों की उपस्थिति अक्सर विभिन्न कारणों से कम होती है, जैसे- परस्पर विरोधी कार्यक्रम, राजनीतिक दबाव, रुचि या प्रोत्साहन की कमी।
- एक समिति के अंतर्गत कई मंत्रालय: विभागीय स्थायी समितियों को कई मंत्रालयों और विषयों की देख-रेख करनी होती है जो संबंधित या सुसंगत नहीं हैं। इससे समिति के कार्य प्रति फोकस, गहन अध्ययन और विशेषज्ञता में कमी आती है।
संसदीय समितियों की कार्यप्रणाली में सुधार के कुछ संभावित उपाय:
- रेफरल दर में वृद्धि: विस्तृत जाँच और अध्ययन के लिये अधिक बिलों को समितियों को भेजा जाना चाहिये। सभी विधेयकों को समितियों के पास भेजना अनिवार्य या वांछनीय बनाने हेतु नियमों एवं प्रक्रियाओं में संशोधन किया जाना चाहिये।
- शक्तियों में वृद्धि: समितियों को अपनी सिफारिशों को लागू करने या सरकार से प्रतिक्रियाएँ मांगने के लिये अधिक शक्तियाँ प्रदान की जानी चाहिये। समिति की सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिये सरकार को भी जवाबदेह बनाया जाना चाहिये।
- अधिक समय और संसाधन उपलब्ध कराना: समितियों को अपना कार्य प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिये अधिक समय और संसाधन दिये जाने चाहिये। उन्हें पर्याप्त कर्मचारी, अनुसंधान सहायता, डेटा और जानकारी प्रदान की जानी चाहिये। उन्हें कार्य करने के लिये आधुनिक तकनीक और उपकरणों का उपयोग करने की भी अनुमति दी जानी चाहिये।
- सांसदों की उपस्थिति में सुधार: प्रोत्साहन, दंड या मान्यता प्रदान करके समिति की बैठकों में सांसदों की उपस्थिति में सुधार किया जाना चाहिये। सांसदों को समिति के कार्य के महत्त्व और लाभों से भी अवगत कराया जाना चाहिये।
- समिति के तहत मंत्रालयों की संख्या को तर्कसंगत बनाना: समिति के कार्य के प्रति फोकस, गहन अध्ययन और विशेषज्ञता सुनिश्चित करने हेतु एक समिति के तहत मंत्रालयों और विषयों की संख्या को कम किया जाना चाहिये या उन्हें तर्कसंगत बनाया जाना चाहिये। विषयों को उनकी प्रासंगिकता या सुसंगतता के अनुसार समूहीकृत किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
संसदीय समितियाँ भारतीय लोकतंत्र के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। इन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन संसदीय समितियों में संशोधन कर भारतीय लोकतंत्र में संसद की भूमिका एवं प्रासंगिकता को पुनर्जीवित और बेहतर बनाया जा सकता है।
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