सामाजिक एकता और देश के समग्र विकास पर सांप्रदायिकता की चुनौतियों और निहितार्थों का विश्लेषण करते हुए सांप्रदायिकता से निपटने में राज्य की नीतियों की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सांप्रदायिकता को परिभाषित कीजिये।
- सांप्रदायिकता की चुनौतियाँ और निहितार्थ लिखिये।
- राज्य की नीतियों की भूमिका का उल्लेख कीजिये।
- संक्षेप में निष्कर्ष लिखिये
|
परिचय:
यह एक विचारधारा है जो दूसरों की कीमत पर अपने हितों को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति वाले अन्य समूहों के संबंध में एक धार्मिक समूह की अलग पहचान पर ज़ोर देती है। इसका उपयोग अक्सर वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देने के लिये एक राजनीतिक प्रचार उपकरण के रूप में किया जाता है।
मुख्य भाग:
सांप्रदायिकता की चुनौतियाँ और निहितार्थ:
- सामाजिक विभाजन और अलगाव
- सांप्रदायिकता विभिन्न धार्मिक या जातीय समूहों के बीच विभाजन को बढ़ावा देती है, जिससे "हम बनाम वे (Us VS Them)" की भावना पैदा होती है। इस विभाजन के परिणामस्वरूप अक्सर समुदायों के बीच अलगाव, अविश्वास पैदा होता है।
- संघर्ष और हिंसा
- सांप्रदायिक तनाव बढ़कर संघर्ष और यहाँ तक कि हिंसा में बदल सकता है, जिससे जान-माल की हानि हो सकती है।
- आर्थिक विषमताएँ
- सांप्रदायिकता आर्थिक असमानताओं को जन्म दे सकती है क्योंकि कुछ समूहों को रोज़गार और व्यापार के अवसरों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इससे देश की आर्थिक प्रगति में बाधा आ सकती है।
- राजनैतिक अस्थिरता
- सांप्रदायिक विभाजनों का राजनीतिक फायदा उठाया जा सकता है, जिससे प्रभावी शासन प्रभावित हो सकता है और अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
सांप्रदायिकता से निपटने में राज्य की नीतियों की भूमिका
- शैक्षिक सुधार:
- धर्मनिरपेक्ष शिक्षा को बढ़ावा देना जो विभिन्न समुदायों के बीच सहिष्णुता और समझ को बढ़ावा दे सकती है।
- शिक्षा में ऐसे पाठ्यक्रम शामिल करना जो विविधता को कम कर और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दे सके।
- कानूनी ढाँचा
- सभी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने के लिये भेदभाव-विरोधी कानून को लागू करना।
- सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में त्वरित और निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करना।
- गृह मंत्रालय ने सांप्रदायिक हिंसा को रोकने और उससे निपटने के लिये राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव, न्याय और क्षतिपूर्ति आयोग की स्थापना की है।
- सामुदायिक पहुँच
- अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय संवाद और सहयोग को प्रोत्साहित करना।
- सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने वाले समुदाय-स्तरीय कार्यक्रमों का समर्थन करना।
- अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने भारत में अल्पसंख्यक समुदायों की समृद्ध विरासत एवं संस्कृति को संरक्षित करने के लिये हमारी धरोहर योजना की शुरुआत की है।
- मीडिया का विनियमन
- द्वेषपूर्ण भाषण और गलत सूचना के प्रसार, जो सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकते हैं, को रोकने के लिये मीडिया को विनियमित करना।
- एकता और विविधता पर केंद्रित ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग को बढ़ावा देना।
- आर्थिक समावेशन
- हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिये समान आर्थिक अवसर सुनिश्चित करने हेतु सकारात्मक कार्रवाई नीतियाँ लागू करना।
- सांप्रदायिक संघर्ष के इतिहास वाले क्षेत्रों में विकास संबंधी परियोजनाओं में निवेश करना।
- अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिये प्रधानमंत्री का 15 सूत्रीय कार्यक्रम लागू किया गया है।
- राजनीतिक सुधार
- राजनीतिक दलों को चुनावी लाभ के लिये सांप्रदायिक विभाजन का फायदा न उठाने के लिये प्रोत्साहित करना।
- समावेशी और प्रतिनिधिक शासन संरचनाओं को बढ़ावा देना।
- भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने चुनावी लाभ के लिये धर्म और जाति के दुरुपयोग को रोकने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
निष्कर्ष
सांप्रदायिकता सामाजिक एकता और देश के समग्र विकास के लिये चुनौतियाँ पैदा करती है। सांप्रदायिकता के मूल कारणों को संबोधित कर और एकता को बढ़ावा देकर सरकारें सभी नागरिकों के लिये सतत् विकास एवं प्रगति के लिये अनुकूल वातावरण बना सकती हैं। यह ज़रूरी है कि राष्ट्र एक उज्जवल और एकजुट भविष्य सुनिश्चित करने हेतु इन नीतियों को प्राथमिकता दें।