समसामयिक भू-राजनीतिक संदर्भ में 'न्यायसंगत युद्ध' की अवधारणा से जुड़े नैतिक आयामों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- 'न्यायसंगत युद्ध' की अवधारणा और इसके ऐतिहासिक संदर्भ को परिभाषित करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- ''न्यायसंगत युद्ध' सिद्धांत के मूल सिद्धांतों पर चर्चा कीजिये।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और संघर्ष के समाधान को निर्देशित करने के लिये नैतिक विचारों की आवश्यकता पर एक विचारशील प्रतिबिंब के साथ निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
'न्यायसंगत युद्ध' की अवधारणा सैन्य नैतिकता का एक सिद्धांत है जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि एक युद्ध कई मानदंडों के माध्यम से नैतिक रूप से उचित है, जैसे कि कोई उचित कारण, वैध अधिकार, सही इरादा, सफलता का उचित मौका और बल का संतुलित उपयोग आदि। विभिन्न धार्मिक तथा दार्शनिक परंपराओं में इस की अवधारणा का एक लंबा इतिहास रहा है।
मुख्य भाग :
न्यायसंगत युद्ध सिद्धांत (जस्ट वॉर थ्योरी) के तत्त्व:
- न्यायसंगत युद्ध सिद्धांत को तीन भागों में बाँटा गया है जिनके लैटिन नाम हैं। ये भाग हैं:
- जूस एड बेलम: पहले चरण में युद्ध का सहारा लेने के न्याय के बारे में।
- जूस इन बेल्लो: यह युद्ध के दौरान आचरण के न्याय के बारे में है।
- जूस पोस्ट बेलम: यह शांति समझौतों के न्याय और युद्ध की समाप्ति के चरण के बारे में है।
आधुनिक विश्व में 'न्यायसंगत युद्ध' पर चर्चा करते समय कई प्रमुख नैतिक आयामों पर विचार किया जाना चाहिये।
- जूस एड बेलम: युद्ध छेड़ने का अधिकार: यह सिद्धांत युद्ध में शामिल होने के औचित्य पर केंद्रित है। समकालीन संदर्भ में चर्चा अक्सर आत्मरक्षा, आक्रामकता की रोकथाम, मानवीय हस्तक्षेप और सुरक्षा का उत्तरदायित्त्व (R2P) जैसे मुद्दों पर केंद्रित होती है।
- उदाहरण के लिये प्रीमेप्टिव युद्ध, जैसा कि 2003 के इराक आक्रमण के मामले में देखा गया, अत्यधिक विवादास्पद हैं, क्योंकि वे आत्मरक्षा की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देते हैं।
- आनुपातिकता और आवश्यकता: 'न्यायसंगत युद्ध' सिद्धांत का एक अनिवार्य तत्त्व बल का समुचित प्रयोग और सैन्य कार्रवाई की आवश्यकता है। यहाँ नैतिक चिंता यह है कि क्या हिंसा का स्तर खतरे या हासिल किये जाने वाले लक्ष्यों से उचित है। ड्रोन हमलों एवं बमबारी जैसे हमले से होने वाली नागरिक क्षति तथा अत्यधिक बल और रणनीतिक प्रयोग आधुनिक युद्ध में गहरी नैतिक दुविधाओं को जन्म देते है।
- गैर-लड़ाकू प्रतिरक्षाः आधुनिक युद्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण नैतिक आयामों में से एक गैर-लड़ाकू आयामों की सुरक्षा है। गैर-राज्य अभिनेताओं के उदय और विषम युद्ध जैसी परिस्थितियों ने नागरिकों के बीच की रेखाओं को धुँधला कर दिया है। आनुपातिकता तथा आतंकवाद जैसी रणनीति के उपयोग के सवाल अधिकारों की रक्षा के मुद्दे को जटिल बनाते हैं।
- निवारक युद्ध और रोकथाम: निवारक युद्ध की अवधारणा जहाँ एक राज्य संभावित भविष्य के खतरे को रोकने के लिये सैन्य कार्रवाई में संलग्न होती है, नैतिक दुविधाएँ पैदा करती है। जिसका एक उदाहरण वर्ष 2003 में इराक पर हुआ आक्रमण है, क्योंकि यह एक खतरे की आशंका पर आधारित था जो बाद में निराधार साबित हुआ।
- मानवाधिकार और अंतर्राष्ट्रीय कानून: समकालीन भू-राजनीतिक संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा मानवाधिकार मानदंडों का पालन महत्त्वपूर्ण है। नैतिक आयाम इस बात में निहित है कि क्या राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और समझौतों, जैसे कि जिनेवा कन्वेंशन तथा इन कानूनों को बनाए रखने में महान शक्तियों की ज़िम्मेदारी का सम्मान करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन, जैसे कि रासायनिक हथियारों का उपयोग महत्त्वपूर्ण नैतिक चिंताएँ हैं।
- युद्ध और प्रौद्योगिकी: सैन्य प्रौद्योगिकियाँ, जैसे- स्वायत्त हथियार और साइबर युद्ध, नई नैतिक चुनौतियाँ पेश करती हैं। इन तकनीकों के उपयोग से उत्तरदायित्त्व, आनुपातिकता तथा आधुनिक युद्ध क्षेत्र में अनपेक्षित परिणामों की संभावना के बारे में सवाल खड़े होते है।
निष्कर्ष:
हाल ही में चल रहे रूस-यूक्रेन तथा इज़रायल-फिलिस्तीन युद्ध के साथ समकालीन भू-राजनीतिक संदर्भ में 'न्यायसंगत युद्ध' की अवधारणा के नैतिक आयाम जैसे हस्तक्षेपवाद, रक्षा का उत्तरदायित्व और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन के बारे में चल रही बहस के साथ-साथ वैश्विक मानवाधिकार हमेशा की तरह प्रासंगिक हैं। जैसे-जैसे युद्ध होता है, नैतिक विचारों को युद्ध की बदलती प्रकृति तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये संभावित परिणामों के अनुकूल होना चाहिये।