महासागरीय धाराओं के निर्माण में योगदान देने वाले प्राथमिक और द्वितीयक कारकों पर चर्चा कीजिये। ये कारक कैसे परस्पर अंतः क्रिया करते हैं तथा महासागरीय धाराओं की विशेषताओं को प्रभावित करते हैं, और इन अंतः क्रियाओं के वैश्विक निहितार्थ क्या हैं? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- एक संक्षिप्त परिचय के साथ उत्तर प्रारंभ कीजिये, और बताइये कि कारक किस प्रकार महासागरीय धाराओं और पृथ्वी की भौगोलिक प्रणाली में उनके महत्त्व का अवलोकन प्रदान करते हैं।
- महासागरीय धारा निर्माण के लिये जिम्मेदार प्राथमिक और द्वितीयक कारकों पर चर्चा कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि ये कारक किस प्रकार परस्पर अंतः क्रिया करते हैं और महासागरीय धाराओं की विशेषताओं को प्रभावित करते हैं। वैश्विक स्तर पर महासागरीय धाराओं के दूरगामी परिणामों पर प्रकाश डालिये।
- आप मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष दीजिये, जिसमें महासागरीय धाराओं तथा उसके बहुमुखी प्रभावों को समझने के महत्त्व पर ज़ोर दे सकते हैं।
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परिचय:
महासागरीय धाराएँ सागरीय जल का निरंतर, दिशात्मक प्रवाह होती हैं, जो वायु, जल के घनत्व, ज्वार, पृथ्वी के घूर्णन और महासागर बेसिन आकारमिति जैसे कारकों से आकार ग्रहण करती है। ये विश्व भर में जलवायु, पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करते हुए सतह, गहरे जल, भूगर्भिक और ज्वारीय धाराओं का निर्माण करती हैं।
निकाय:
महासागरीय धाराओं को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक:
प्राथमिक कारक:
- वायु: वायु महासागरीय धाराओं के लिये प्राथमिक प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करती है। वायु और सागरीय सतह के बीच घर्षण से गति उत्पन्न होती है, जो जल को प्रचलित वायु धाराओं की दिशा में धकेलती है।
- तापमान एवं घनत्व: तापमान और लवणता (नमक की मात्रा) में अंतर के कारण जल के घनत्व में भिन्नता होती है। शीतल जल, सघन जल के रूप में नीचे चला जाता है, जबकि ऊष्ण जल कम सघन जल के रूप में ऊपर उठ जाता है। ये घनत्व अंतर, जिन्हें तापीय परिसंचरण के रूप में जाना जाता है, गहरी सागरीय धाराओं को संचालित करती हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों में शीतल जल का सघन जल के रूप में नीचे जाना और भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में ऊष्ण जल का ऊपर आना इस प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण घटक हैं।
द्वितीयक कारक:
- कोरिओलिस प्रभाव: कोरिओलिस प्रभाव प्रत्येक गोलार्द्ध में सागरीय धाराओं की दिशा को प्रभावित करता है। कोरिओलिस प्रभाव के कारण सागरीय धाराएँ उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि जल का द्रव्यमान अधिक गोलाकार प्रारूप में चलता है, जिससे विश्व के महासागरों में प्रमुख वलय (Gyre) (वृत्तीय धाराएँ) बनते हैं, जैसे कि उत्तरी अटलांटिक वलय और दक्षिण प्रशांत वलय।
- महाद्वीपीय सीमाएँ: महाद्वीपों का आकार महासागरीय धाराओं को निर्देशित और संशोधित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिये, जब महासागरीय धाराएँ किसी महाद्वीप से टकराती हैं, तो वे विक्षेपित हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप तटीय धाराएँ या भंवर बनते हैं।
- ज्वार: ज्वारीय बल, जो मुख्य रूप से चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के कारण उत्पन्न होते हैं, महासागरीय स्तर में जल के ऊपर उठने और नीचे गिरने का कारण बनते हैं। ये ज्वारीय परिवर्तन तटीय क्षेत्रों में ज्वारीय धाराएँ उत्पन्न करते हैं, जिससे स्थानीय महासागर परिसंचरण पैटर्न (local ocean circulation pattern) प्रभावित होता है।
विशेषताओं पर अंतः क्रिया और प्रभाव:
- ये कारक जटिल तरीकों से परस्पर क्रिया करते हैं। उदाहरण के लिये, वायु संचालित सतही धाराएँ ऊष्ण या शीतल जल को विभिन्न क्षेत्रों में पहुँचा सकती हैं, जिससे स्थानीय जलवायु प्रभावित होती है।
- कोरिओलिस प्रभाव इन धाराओं की दिशा और गति को प्रभावित करता है, जबकि तापमान और घनत्व अंतर ऊर्ध्वाधर गति उत्पन्न करते हैं, जो गहरी, धीमी चलने वाली धाराओं को प्रभावित करते हैं।
- महाद्वीपीय सीमाएँ और ज्वार इन पैटर्नों को और संशोधित कर सकते हैं।
वैश्विक निहितार्थ:
- जलवायु: महासागरीय धाराएँ ऊष्णता और आर्द्रता का स्थानांतरण करती हैं, जिससे क्षेत्रीय जलवायु प्रभावित होती है। ऊष्ण धाराएँ वाष्पीकरण और वर्षा को बढ़ाती हैं, जबकि शीतल धाराएँ उन्हें कम करती हैं। ये जलवायु पैटर्न और अल नीनो-दक्षिणी दोलन जैसी घटनाओं को भी प्रभावित करती हैं।
- पारिस्थितिकी: महासागरीय धाराएँ सागरीय पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करते हुए पोषक तत्वों और जीवों का परिवहन करती हैं। ऊपर उठने वाली धाराएँ पोषक तत्वों से भरपूर जल को सतह पर लाकर जैव विविधता का समर्थन करती हैं। अधोवर्त्ती धाराएँ ऑक्सीजन के स्तर को बनाए रखती हैं। ये सागरीय जीवन के प्रसरण, कनेक्टिविटी और विविधता को बढ़ाने में सहायता करती हैं।
- अर्थव्यवस्था: महासागरीय धाराएँ संसाधन और अवसर प्रदान करती हैं। ये मत्स्य पालन का समर्थन करती हैं, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की पेशकश करती हैं, और यात्रा के समय ईंधन की खपत को कम करके सागरीय परिवहन में सहायता करती हैं।
निष्कर्ष:
महासागरीय धाराओं का निर्माण प्राथमिक और द्वितीयक कारकों की एक जटिल परस्पर अंतः क्रिया है, जिसका जलवायु, पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु पैटर्न पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। संचलित जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों के परिणामों की भविष्यवाणी करने और उन्हें अपनाने के लिये इन गतिशीलता को समझना महत्त्वपूर्ण है।