भारत में ओबीसी के उप-वर्गीकरण की आवश्यकता और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इसका मौजूदा आरक्षण नीति और सामाजिक न्याय एजेंडे पर क्या प्रभाव पड़ेगा? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- OBC और उप-वर्गीकरण को परिभाषित कीजिये। OBC के उप-वर्गीकरण के लिये संवैधानिक प्रावधानों तथा आयोग का उल्लेख कीजिये।
- भारत में OBC के उप-वर्गीकरण की आवश्यकता और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। बताइये कि यह मौजूदा आरक्षण नीति तथा सामाजिक न्याय के एजेंडे को कैसे प्रभावित करेगा।
- मुख्य बिंदुओं को संक्षिप्त रूप में लिखिये और अपने सुझाव दीजिये।
|
परिचय:
वर्ष 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट में OBC आबादी 52% होने का अनुमान लगाया गया था और इन समुदायों को पिछड़े वर्ग के रूप में पहचाना गया था। हालाँकि असमान सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण आरक्षण का लाभ भी असमान हो गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 के अनुसार, भारत का राष्ट्रपति सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं की जाँच करने के लिये तथा उनकी दशा में सुधार करने से संबंधित सिफारिश प्रदान के लिये एक आदेश के माध्यम से आयोग की नियुक्ति कर सकता है। वर्ष 2017 में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व के लिये OBC के उप-वर्गीकरण की जाँच करने हेतु न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जी. रोहिणी के नेतृत्व में पाँच सदस्यीय आयोग का गठन किया गया था।
मुख्य भाग:
OBC के उप-वर्गीकरण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है:
- वर्ष 2018 में आयोग ने पिछले वर्षों में 1.3 लाख केंद्रीय सरकारी नौकरियों और केंद्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों में OBC प्रवेश के डेटा का विश्लेषण किया था जिससे पता चला कि 97% लाभ केवल 25% OBC जातियों को मिला है। लगभग 983 OBC समुदायों (कुल का 37%) का नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में शून्य प्रतिनिधित्व था, जो उप-वर्गीकरण की आवश्यकता को उजागर करता है।
- यह सुनिश्चित करना कि आरक्षण का लाभ OBC के सबसे पिछड़े और हाशिये पर रहने वाले वर्गों जैसे कि गैर-अधिसूचित जनजातियों, खानाबदोश जनजातियों आदि तक पहुँचे।
- किसी भी दोहराव, अस्पष्टता, विसंगतियों और त्रुटियों को दूर करके OBC की केंद्रीय सूची को तर्कसंगत एवं सुव्यवस्थित करना।
OBC के उप-वर्गीकरण की चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:
- विभिन्न OBC समुदायों की जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विश्वसनीय तथा अद्यतन डेटा की कमी। सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) डेटा को आयोग द्वारा विश्वसनीय नहीं माना जाता है, जिसने अखिल भारतीय सर्वेक्षण का अनुरोध किया है।
- OBC के उप-वर्गीकरण के राजनीतिक और सामाजिक निहितार्थ। उप-वर्गीकरण आरक्षण के अपने हिस्से को लेकर विभिन्न OBC समुदायों के बीच विभाजन तथा संघर्ष पैदा कर सकता है।
- इसका उपयोग सत्तारूढ़ या विपक्षी दलों द्वारा कुछ वोट-बैंकों को खुश करने या अलग करने के लिये एक उपकरण के रूप में भी किया जा सकता है।
मौजूदा आरक्षण नीति और सामाजिक न्याय के एजेंडे पर OBC के उप-वर्गीकरण का प्रभाव:
- एक ओर, उप-वर्गीकरण यह सुनिश्चित करके सामाजिक न्याय के एजेंडे को बढ़ा सकता है कि OBC के सबसे पिछड़े और वंचित वर्गों को नौकरियों एवं शिक्षा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व तथा अवसर मिले।
- इससे कुछ उच्च जातियों के बीच नाराज़गी के कारण आंदोलन कमज़ोर हो सकता है, जो महसूस करते हैं कि आरक्षण का लाभ कुछ प्रमुख OBC समुदायों द्वारा हथिया लिया गया है।
- दूसरी ओर, उप-वर्गीकरण OBC के बीच और अधिक विखंडन तथा पदानुक्रम बनाकर मौजूदा आरक्षण नीति को कमज़ोर कर सकता है।
- यह कुछ बड़े या अधिक आबादी वाले OBC समुदायों की हिस्सेदारी को कम करके आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को भी कमज़ोर कर सकता है।
- यह समग्र रूप से OBC द्वारा सामना किये जाने वाले संरचनात्मक मुद्दों और प्रणालीगत भेदभाव से भी ध्यान भटका सकता है।
निष्कर्ष:
OBC का उप-वर्गीकरण एक जटिल और विवादास्पद मुद्दा है जिसके लिये संतुलित तथा समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। हालाँकि यह OBC के बीच अंतर-समूह असमानताओं के कुछ पहलुओं को संबोधित कर सकता है, यह आरक्षण नीति एवं सामाजिक न्याय के एजेंडे हेतु नई चुनौतियाँ व समस्याएँ भी पैदा कर सकता है। इसलिये किसी भी उप-वर्गीकरण योजना को लागू करने से पहले एक व्यापक और विश्वसनीय डेटाबेस, स्पष्ट तथा सुसंगत कानूनी ढाँचा और व्यापक एवं समावेशी परामर्श प्रक्रिया सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।